देहरादून: रक्षा मंत्रालय के प्रस्ताव के साथ कालौं का डांडा नाम से जाना जाएगा लैंसडौंन

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देहरादून, अमृत विचार। लैंसडौन के नाम को बदलने के लिए रक्षा मंत्रालय में प्रस्ताव भेजा गया है। अगर प्रस्ताव पारित होता है तो लैंसडौंन को ‘कालौं का डांडा (काले बादलों से घिरा पहाड़)’ नाम से जाना जाएगा। प्रशासन 132 साल पुराने लैंसडौन नाम को बदलने की तैयारी में है। रक्षा मंत्रालय के आर्मी हेड कवार्टर …

देहरादून, अमृत विचार। लैंसडौन के नाम को बदलने के लिए रक्षा मंत्रालय में प्रस्ताव भेजा गया है। अगर प्रस्ताव पारित होता है तो लैंसडौंन को ‘कालौं का डांडा (काले बादलों से घिरा पहाड़)’ नाम से जाना जाएगा। प्रशासन 132 साल पुराने लैंसडौन नाम को बदलने की तैयारी में है। रक्षा मंत्रालय के आर्मी हेड कवार्टर ने सब एरिया उत्तराखंड से ब्रिटिशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों, संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे नामों को बदलने के लिए प्रस्ताव मांगें हैं।

रक्षा मंत्रालय ने उनसे ब्रिटिशकाल के समय के नामों के स्थान पर क्या नाम रखे जा सकते हैं, इस बारे में भी सुझाव देने को कहा गया है। इसी के तहत लैंसडौन छावनी ने इसका नाम ‘कालौं का डांडा’ रखने का प्रस्ताव भेजा है। पहले इसे ‘कालौं का डांडा’ पुकारा जाता था। स्थानीय लोग इसका नाम यही रखने की मांग वर्षों से करते आए हैं। रक्षा मंत्रालय को भी इस बाबत कई पत्र भेजे जा चुके हैं।

1886 में गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई। पांच मई 1887 को ले.कर्नल मेरविंग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में बनी पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन चार नवंबर 1887 को लैंसडौन पहुंची। उस समय लैंसडौन को कालौं का डांडा कहते थे। 21 सितंबर 1890 तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडौन के नाम पर लैंसडौन रखा गया।

समय-समय पर क्षेत्र के लोग नाम बदलने की मांग करते रहे हैं। देश, काल और परिस्थितियों को देखकर ऐसे प्रस्तावों पर विचार किया जाता है। – अजय भट्ट, केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री

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