SGPGI: एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया के घातक स्वरूप की पहचान संभव, भारत में पहली बार शुरू हुई जांच
- एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया से पीड़ित मरीज के जीन में होता है म्यूटेशन
- एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर से सम्बंधित बीमारी के है नाम
- म्यूटेशन होने से एनयूपी 98 एनएसडी-1 बीमारी हो जाती है और अधिक घातक
- भारत में पहली बार एसजीपीजीआई के चिकित्सकों ने एनयूपी 98 एनएसडी-1 बीमारी का लगाया पता
- जांच किट की खोज करने में भी कामयाब रहे चिकित्सक
- वयस्कों से ज्यादा बच्चों में पाई जाती है एनयूपी 98 एनएसडी-1 बीमारी
वीरेंद्र पांडे, लखनऊ। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के चिकित्सकों ने एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (AML) (blood cancer) की घातक स्वरूप का पता लगाने में कामयाबी हासिल की है। बताया जा रहा है कि एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया बीमारी तब और घातक हो जाती है जब इस बीमारी के जिम्मेदार जीन में परिवर्तन यानी कि म्यूटेशन हो जाता है।
बीमारी का पता लगाने वाले चिकित्सकों का दावा है कि भारत में अभी तक इस बीमारी के बारे में ना तो कोई जानकारी उपलब्ध थी और ना ही इसकी जांच होती थी। भारत में पहली बार एसजीपीजीआई में इस बीमारी का पता लगाने के साथ ही इसके जांच का तरीका भी खोज निकाला है। दरअसल,एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया बीमारी ब्लड कैंसर का स्वरूप है, लेकिन इस बीमारी से पीड़ित मरीज के जीन में बदलाव होने पर यह बीमारी और घातक हो जाती है।
एसजीपीजीआई स्थित क्लीनिकल हिमैटोलाजी विभाग के डॉ.सीपी. चतुर्वेदी के नेतृत्व में डॉ. अरुणिम शाह, डॉ. अखिलेश डॉ शोभिता कटियार ने एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया बीमारी के घातक स्वरूप एनयूपी 98 एनएसडी-1(न्यूप -98 एनएसडी-1) का पता लगाने में कामयाबी हासिल करने के साथ ही इसकी जांच का तरीका भी खोज निकाला है।
डॉ अरुणिम शाह के मुताबिक जिस तरह कोविड-19 की जांच के लिए आरटी पीसीआर तकनीक का इस्तेमाल होता था । उसी तरह से आरटीपीसीआर तकनीक का इस्तेमाल कर इस बीमारी की जानकारी की जा सकेगी। उन्होंने बताया कि इस जांच का नाम एनयूपी 98 एनएसडी-1 आरटीपीसीआर है।
रक्त का नमूना लेकर आरटी पीसीआर तकनीक के जरिए यह भी पता लगाया जाएगा कि जीन में कितना बदलाव हुआ है। एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया से पीड़ित 150 मरीजों में जांच की गई। जिसके बाद उनमें से 3 बच्चे और 3 वयस्क एनयूपी 98 एनएसडी-1 बीमारी से पीड़ित मिले। यह बीमारी वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में ज्यादा पाई जाती है विशेषकर उन बच्चों में जिनकी उम्र 16 साल से कम है।
एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया से पीड़ित बच्चों में से 7. 89 प्रतिशत बच्चों में यह बीमारी पाई जाती है, जबकि वयस्कों में यह संख्या 2.67 प्रतिशत के करीब है। यह शोध डायग्नोस्टिक जनरल में छप चुका है। इस बीमारी की जानकारी अभी तक भारत में नहीं थी, इसलिए जांच भी नहीं होती थी। वहीं विदेशों में भी बहुत सटीक जांच नहीं होती थी । अभी तक देश और विदेश में मिलाकर करीब 4000 लोगों की ही कुल जांच हुई है।
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