Malaysia : 20 साल मे दो करोड़ से अधिक मलेशियाई वन समाप्त, रोक के लिए सख्त कानून की जरूरत
कुआलालंपुर। मलेशिया के विशाल वन और उनकी जैव विविधता पर्यावरण के लिए बेहद अहम हैं और इनके दीर्घकालिक संरक्षण की बेहद जरूरत है। देश की अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए मलेशिया में जंगलों का सफाया कर दिया गया है। वर्ष 2002 से 2021 तक मलेशिया में दो करोड़ 77 लाख हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन समाप्त हो गए जिससे उसी अवधि में कुल हरित अच्छादन 33 प्रतिशत तक कम हो गया। वनों की कटाई, वन्यजीवों और जैवविविधता को नुकसान, भूमि उपयोग में अनियंत्रित परिवर्तन आदि को रोकने के लिए प्रभावी कानून की सख्त जरूरत है।
इन सभी चीजों से वन पारिस्थितिकी नष्ट होती है। हालांकि पर्यावरण संरक्षण को लेकर वैश्विक जागरुकता बढ़ने से हालात बदल रहे हैं और वनों के दोहन के बजाए संरक्षण पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। जंगलों और जैव विविधता की रक्षा के लिए तीसरी मलेशिया योजना (1976-1980) में कोशिशें प्रारंभ की गईं। पांचवीं मलेशिया योजना (1986-1990) में गड़बड़ी और नुकसान को नियंत्रित करने के लिए और कदम उठाए गए।
इस कदमों में राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य आदि का निर्माण और जंगल की सुरक्षा के तंत्र विकसित करना तथा पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट और जलवायु परिवर्तन शमन उपायों के माध्यम से निवारक दृष्टिकोण अपनाना है। वनों को अब कार्बन अवशोषक के तौर पर देखा जाता है। 12वीं मलेशिया योजना (2021-2025) में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को अमल में लाने की बात की गई है। तमाम बातों और उपायों के बावजूद मलेशिया में वनों के संरक्षण में कई अड़चनें हैं क्योंकि विभिन्न श्रेणियों के अलग-अलग कानून है और इनका जिम्मा विभिन्न सरकारी एजेंसियों के पास हैं।
मसलन प्रायद्वीप मलेशिया के वन रिजर्व ‘नेशनल फॉरेस्ट्री कानून’ 1984 के तहत आते हैं जिसे लागू करने का जिम्मा प्रायद्वीप मलेशिया के वन विभाग तथा राज्य वन विभागों का है। वन्य जीव ‘वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन’ कानून 2010 के तहत आते हैं, जबकि राष्ट्रीय उद्यान ‘नेशनल पार्क’ कानून 1980 के तहत आते हैं। दोनों की जिम्मेदारी ‘वन्यजीव तथा राष्ट्रीय उद्यान’ विभाग की है। वनों के इस खंडित प्रबंधन और संघीय और राज्य एजेंसियों के बीच जटिल संबंधों के कारण पारिस्थितिक संपर्क, वन्यजीवों के लिए भोजन और आवास की कमी, वनस्पतियों और जीवों की लुप्तप्राय प्रजातियों पर अवैध कब्जे आदि समस्याओं का जन्म हुआ है। समय-समय पर कानूनों में संशोधन हुए हैं और उनसे वनों के प्रभावी संरक्षण की कोशिश की जा रही है।
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