हल्द्वानी: बर्फबारी न हुई तो सेब और आडू की पैदावार पर पड़ेगा असर

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Published By Bhupesh Kanaujia
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भूपेश कन्नौजिया, हल्द्वानी, अमृत विचार। नए साल का आधा महीना बीत गया पर पहाड़ी क्षेत्र अभी भी बर्फबारी के इंतजार में हैं। जिले की फलपट्टी में अभी तक बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी है, जिससे काश्तकारों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। 

दरअसल सेब उत्पादन के लिए प्रसिद्ध नैनीताल जिले के रामगढ़, बेतालघाट, भीमताल, धारी विकासखंड इस बार बर्फबारी के लिए तरस रहा है। फल पट्टी के रूप में प्रसिद्ध इस क्षेत्र की फसलों पर ग्लोबल वॉर्मिंग का असर देखा जा रहा है। पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो अधिकतम तापमान में 8 डिग्री बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ऐसे हालात में सेब के पेड़ कमजोर पड़ रहे हैं।

फसलों पर रोगों के हमले की आशंका भी बढ़ गई है। आर्द्रता और चिलिंग घटने के साथ-साथ सेब का रकबा भी घट रहा है। फसलों के लिए वरदान माने जाने वाली बर्फ न गिरने से काश्तकार मायूस हैं। फल पट्टी में बर्फबारी पर नजर डालें तो 2010 में पहला हिमपात 31 दिसंबर को महज पांच इंच हुआ था। उसके बाद वर्ष 2011 में 16 फरवरी को भी लगभग इतना ही हिमपात हुआ।

2012 में 13 दिसंबर को ही पहली बर्फबारी हो गई थी, जबकि 2013 में 19 जनवरी को बर्फबारी हुई। 2014 में 14 दिसंबर को पर्वतीय क्षेत्रों में काफी बर्फबारी हुई थी। उसके बाद जनवरी 2015 में हल्का हिमपात हुआ। 2016 में भी उम्मीद से कम बर्फबारी 20 जनवरी को हुई, वर्ष 2017 में 7 जनवरी को पहला  हिमपात हुआ पर इस वर्ष भी काफी कम हिमपात होने से लोगों में मायूसी रही , लेकिन वर्ष 2018 में पहला हल्का हिमपात 9 नवंबर को हो गया था। इसके बाद हिमपात का यह सिलसिला 23 जनवरी तक चला जिससे स्रोत और बांज के कैचमेंट एरिया की भरपाई हुई। वर्ष 2019 में 13 दिसंबर को पहला हिमपात हो गया था जबकि 2020 में 5 जनवरी की रात भारी हिमपात हुआ था जो एक बार फिर प्रकृति के लिए बूस्टर डोज का काम कर गया और इस बार बर्फबारी सेब और आडू के लिए यह वरदान साबित हुई। इसके बाद  28 दिसंबर 2021 को पहली बर्फबारी हुई जो रूक-रूक कर 3 फरवरी 2022 तक हुई। 

इस बार नव वर्ष का आगमन भी हो गया और 19 जनवरी बीत चुकी है मगर बर्फबारी तो दूर बारिश तक नहीं हुई है। किसानों को आशंका है कि जनवरी में भी बर्फबारी नहीं हुई तो उनकी सेब और आडू की पैदावार चौपट हो जाएगी जबकि अन्य फसलों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। उद्यान विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो क्षेत्र में पहले ही सेब का उत्पादन भी 30 हजार मीट्रिक टन से घटकर लगभग 7 हजार मीट्रिक टन पहुंच गया है। ऐसे में फलपट्टी को बचाने वालों और पर्यावरण संरक्षण में लगे लोगों को अब धरातल में उतरकर काम करने की जरुरत है।



बर्फबारी न होने से सेब व अन्य फलदार वृक्षों सहित सब्जियों में रोग लगने की आशंका है। पौधों का विकास तो रुकेगा ही उनमें कीटों का हमला भी होगा, जिससे पैदावार को नुकसान होगा। सेब में कैंकर रोग के साथ तना छेदक, बूली एफिड रोग लग सकता है। बर्फबारी न होने से पाला अधिक गिर रहा है। इससे आडू की पैदावार में खासा असर पड़ेगा। दरअसल इन दिनों आडू के पेड़ में फ्लावरिंग शुरू होने लगी है जिसे पाला मार देता है। यदि आगामी 10 दिनों में बर्फबारी नहीं हुई तो आडू के लिए तो यह नुकसानदेह होगा। साथ ही सेब के चिलिंग आवर्स पूरे न होने से सेब की पैदावार भी खासी प्रभावित होगी। 

 - प्रभारी परिसर एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.अरूण किशोर , केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान , मुक्तेश्वर

 

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