legal education से ‘पश्चिमी देशों के गलत विचारों’ को बाहर निकाल रहा चीन

Amrit Vichar Network
Published By Priya
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बीजिंग। चीन ने देश की कानूनी शिक्षा में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा का पूरी तरह से अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। उसने विधि संस्थानों को निर्देश दिया है कि वे ‘पश्चिमी देशों के लोकतांत्रिक सरकार, शक्तियों के विभाजन और न्यायिक स्वतंत्रता जैसे गलत विचारों का विरोध और बहिष्कार’ करें। यह आदेश चीनी संसद का वार्षिक सत्र शुरू होने से एक सप्ताह पहले बीते रविवार को जारी किया गया। इसमें कानूनी शिक्षा में शी जिनपिंग की विचारधारा का अनुपालन करने पर जोर दिया गया है, जिनके नाम का जिक्र आदेश में कम से कम 25 बार किया गया है। 

शी जिनपिंग पिछले कुछ दशकों में चीन के सबसे ताकतवर नेता बनकर उभरे हैं। उन्हें पिछले साल लगातार तीसरी बार पांच वर्ष के लिए कम्युनिस्ट पार्टी का नेता चुना गया था। यही नहीं, चीनी संसद ने राष्ट्रपति कार्यकाल की समयसीमा समाप्त कर दी थी, जिससे जिनफिंग के जीवनपर्यंत शासन करने का रास्ता साफ हो गया था। चीन में अतीत में भी इस तरह के दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं। छात्रों को उन शिक्षकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जो शासन को लेकर पश्चिमी देशों की अवधारणा के बारे में सकारात्मक बातें करते हैं। 

इस तरह के कदम शी जिनपिंग की अधिक सख्त विदेश नीति के अनुरूप हैं, जो बहुदलीय लोकतंत्र, नागरिक समाज और मानवाधिकारों की वकालत करने वाली अमेरिका नीत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती देने और बदलने की कोशिश करती है। कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय की ओर जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि विधि छात्रों एवं शिक्षकों और कानूनी कार्यकर्ताओं को ‘सिद्धांत और सही-गलत से जुड़े मुद्दों पर स्पष्ट सोच रखने और दृढ़ रुख अपनाने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए।’

दिशा-निर्देशों में ‘सही राजनीतिक दिशा का पालन करें’ शीर्षक वाला एक खंड शामिल है, जिसमें कहा गया है कि शिक्षकों और छात्रों को ‘पार्टी की शिक्षा नीति को व्यापक रूप से लागू करना चाहिए, लोगों को पार्टी और देश के बारे में शिक्षित करने पर जोर देना चाहिए और समाजवादी कानून के शासन को बढ़ावा देने वाले लोगों को तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’ इसमें कहा गया है कि ‘पश्चिमी देशों के लोकतांत्रिक सरकार, तीनों शक्तियों के विभाजन और न्यायिक स्वतंत्रता जैसे गलत विचारों का विरोध और बहिष्कार करें।’

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