मुरादाबाद : भाजपा को घेरने में कांग्रेस-सपा व बसपाई रणनीतिकार पसीना-पसीना

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Published By Bhawna
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कार्यकर्ताओं की सुस्ती से जूझ रहे सपा, बसपा के उम्मीदवार, आप व एआईएमआईएम के प्रचार पर सबकी नजर

आशुतोष मिश्र,अमृत विचार। महानगर में जनसंपर्क, रोड शो और संगठन की नीतियों की दुहाई देने वाले महापौर पद के उम्मीदवारों की ताकत के मूल्यांकन का दिन करीब आ चला है। चार मई यानी गुरुवार को मेयर की कुर्सी का निर्णय हो जाएगा और 13 मई को इसका ऐलान। 70 वार्ड के महानगर में शहर की सरकार के दावेदारों के वायदे की चौपाल पर बहस शुरू है। समीक्षक मानते हैं कि स्वतंत्र उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाएंगे।

महापौर पद के 12 उम्मीदवारों में छह निर्दलीय हैं। भाजपा ने निवर्तमान मेयर विनोद अग्रवाल को हैट्रिक का रिकार्ड बनाने काे मैदान में भेजा है। संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह कार्यकर्ताओं को जीत के टिप्स देकर लौट गए हैं। सोमवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लाइनपार के रामलीला मैदान में ट्रिपल इंजन की सरकार के लिए लोगों का साथ मांगने आने वाले हैं। भाजपाई शहर में रोड शो और जनसंपर्क के नियोजित अभियान को लेकर उत्साहित हैं। कांग्रेसी नियंता उम्मीदवार हाजी रिजवान कुरैशी के साल 2017 के प्रदर्शन की समीक्षा कर रहे हैं। अब भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवार के बीच ही लड़ाई हुई थी। सपा ने इस बार अपना चेहरा बदल दिया है। 

 निर्यातक रइसुद्दीन नईमी को चुनावी माहौल बनाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। कारोबार से अचानक स्थानीय निकाय की राजनीति में कूदे नईमी के चुनावी रणनीतिकारों की पेशानी पर बल देखा जा रहा है। सपा इस चुनाव में एक मंच पर नहीं दिख रही है। वैसे तो टिकट के दावेदारों का दावा है कि वह संगठन के निर्देश पर ताकत के साथ उम्मीदवार के प्रचार में जुटे हैं। लेकिन, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के बाहर सपा का प्रचार बेजान दिख रहा है। बीते चुनाव में सपा ने पूर्व विधायक हाजी यूसुफ अंसारी पर दाव लगाया था। लेकिन, वह भी कांग्रेस उम्मीदवार से पिछड़ गए थे। वैसे भी सपा के महापौर पद के दावेदार भी पांच साल चर्चा में नहीं रहे। अचानक दावेदारी करने वालों के बीच निर्यातक पर दाव लगाने वाले सपाई नियंता क्या करिश्मा करा पाएंगे? यह तो समय बताएगा।

पार्षद पद के सपाई उम्मीदवार भी बंटे-बंटे नजर आ रहे हैं। बसपा को शहर के इस चुनाव में बड़ी मुश्किल से सफलता मिल पाती है। जानकार कहते हैं कि पार्टी का परंपरागत मत शहरी क्षेत्र में कुछ कम होता है। इसमें मेयर पद के सजातीय मत से समीकरण बदलने की संभावना रहती है। पिछले चुनाव में बसपा से लाखन सिंह सैनी को मौका दिया था। शहर में सैनी बिरादरी के लोग निर्णायक स्थिति में हैं। उसके बाद भी साल 2017 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। इस बार मोहम्मद यामीन  बसपा के मेयर पद के उम्मीदवार हैं। उनको वार्डों में प्रचार और जनसंपर्क में संगठन का बेजान ढांचा परेशान कर रहा है। बसपा का चुनाव प्रचार गलियों में भी कमजोर है। 

अचानक पार्टी की सदस्यता लेकर मैदान में कूदे यामीन से कार्यकर्ताओं के समन्वय का अभाव भी दिख रहा है। कांग्रेस, सपा और बसपा महापौर पद के उम्मीदवारों के बीच सजातीय मतों के बिखराव का लाभ सीधे भाजपा को मिलता दिख रहा है। उधर, मजलिस और आप के उम्मीदवार का प्रदर्शन महापौर पद की जीत में शामिल लोगों का समीकरण आंशिक रूप से खराब कर दे तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। समीक्षकों की मानें तो भाजपा को घेरने में कांग्रेस, सपा और बसपाई रणनीतिकार पसीना-पसीना हैं। कार्यकर्ताओं के लचर प्रबंधन से सपा, बसपा के उम्मीदवार जूझ रहे हैं।

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