प्रयागराज : निवारक निरोध कानून का उद्देश्य सजा देना नहीं बल्कि सुधार करना है

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Published By Pradumn Upadhyay
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अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निवारक निरोध कानून के दुरुपयोग की संभावना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत में निवारक निरोध कानून एक औपनिवेशिक विरासत है और इसके दुरुपयोग होने की काफी संभावना है। जिन कानूनों में राज्य को मनमानी शक्तियां प्रदान करने की क्षमता होती है। उनकी सभी परिस्थितियों में आलोचनात्मक जांच की जानी चाहिए और केवल दुर्लभतम मामलों में ही इसका उपयोग किया जाना चाहिए। निवारक निरोध के मामलों में हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए हिरासत में नहीं लिया जाता बल्कि उसके द्वारा किए जाने वाले संभावित अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है।

अदालतों को हमेशा हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पक्ष में संदेह का हर लाभ देना चाहिए। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति गजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने शिवबोध कुमार मिश्रा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने सभी विपक्षियों को आदेश दिया कि वह याची को उनकी अवैध हिरासत से मुक्त करें। दरअसल अंचल निदेशक, एनसीबी लखनऊ को सूचना मिली कि एक ट्रक और एक कार से चार-पांच व्यक्ति अवैध 'गांजा' की खेप लेकर याची को देने आ रहे हैं। सूचना मिलने पर एनसीबी अधिकारियों की एक टीम ने मौके पर पहुंचकर 312.045 किलोग्राम गांजा बरामद किया और एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8, 20, 29 के तहत जिला एवं सत्र न्यायाधीश, इलाहाबाद के समक्ष एक आपराधिक मामला दर्ज करवाया।

नजरबंदी आदेश पारित होने की तारीख के बाद नजरबंद को गिरफ्तार करने में देरी हुई। इस संबंध में न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में नियम निर्धारित कर रखा है कि हिरासत में लिए गए एक व्यक्ति को सुरक्षित रखने और उसे हिरासत में लेने में अनुचित और अस्पष्ट देरी से उसकी गिरफ्तारी की सजा खत्म हो जाती है। मौजूदा मामले में कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया कि अधिकारी अपने डिटेंशन आर्डर को कैसे सही ठहराएंगे। जब तक कि वे यह स्पष्ट नहीं कर देते कि कथित कार्य और डिटेंशन आर्डर को पारित करने के बीच निकट संबंध है। मालूम होगी कथित हिरासत आदेश लगभग 1 वर्ष के बाद पारित किया गया था। इस अवधि के दौरान याची के खिलाफ आईपीसी या एनडीपीएस एक्ट के तहत कोई अन्य शिकायत दर्ज नहीं हुई। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया और कहा कि निवारक निरोध समाज को सुरक्षा प्रदान करने के लिए तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को कुछ करने के लिए दंडित करना नहीं है बल्कि उसे करने से पहले रोकना है। इसके साथ ही विपक्षी को याची की सजा खत्म करने का निर्देश दिया।

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