फिल्म पर विवाद

फिल्म पर विवाद

देश में एक बार फिर फिल्म को लेकर सियासत गरमाई हुई है। केरल में हुए मतांतरण को लेकर बनी ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म पर पक्ष व विपक्ष आमने-सामने हैं। विपक्ष का कहना है कि इससे देश में घृणा व अलगाववाद का माहौल बनेगा। वहीं पक्ष का कहना है कि यह फिल्म केरल में लंबे समय से चले आ रहे महिलाओं पर अत्याचारों की सच्चाई को रूबरू कराती है।

यह विरोध ठीक उसी प्रकार व उन्हीं लोगों द्वारा किया जा रहा है जो ‘कश्मीर फाइल्स’ के विरोध में लामबंद थे। जबकि कश्मीर में हुए नरसंहार से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो। उस समय भी यही प्रोपेगंडा बनाए जाने की कोशिश की गई थी कि फिल्म से देश के माहौल व सांप्रदायिक सौहार्द को खतरा है।

फिल्म में दिए गए तथ्यों को लेकर विपक्ष का कहने है कि जितनी लड़कियों का मतांतरण होना दिखाया गया है वास्तव में उतनी लड़कियों का मतांतरण नहीं हुआ है। एक पल के लिए मान भी लिया जाए कि फिल्म में गलत आंकड़ों को प्रसारित किया जा रहा है, फिर भी इस बात से मुंह नहीं फेरा जा सकता कि केरल में युवतियों का खास मकसद के लिए बरगलाकर मतांतरण कराया गया है।

इस बात की पुष्टि केरल हाई कोर्ट द्वारा दिसंबर 2009 में दिए उस बयान से होती है जिसमें उसने कहा था कि राज्य में ‘प्रेम’ की आड़ में जबरन मतांतरण के संकेत मिले हैं और सरकार को इस तरह के निषेध के लिए एक कानून बनाने पर विचार करना चाहिए।

अदालत ने यह भी कहा कि प्यार के बहाने भ्रामक, बाध्यकारी मतांतरण के अलावा पुलिस रिपोर्टों से यह स्पष्ट था कि कुछ धार्मिक संगठनों की मदद से एक विशेष धर्म की लड़कियों को दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के ठोस प्रयास किए गए थे।

यहां गौरतलब बात है कि हाल में बीबीसी द्वारा गुजरात दगों पर एक डाक्यूमेंट्री प्रसारित की गई जिसका विरोध होने पर विपक्ष ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दी थी। जबकि गुजरात दंगों को लेकर संबंधित लोगों को कोर्ट द्वारा क्लीन चिट दी जा चुकी है और सभी आरोपियों को बरी भी किया जा चुका है।

यह बात ठीक नहीं है कि अपनी सुविधा के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मापदंड स्थापित किए जाए। अत: फिल्म में प्रसारित किए हुए आंकड़ों पर लोगों को आपत्ति हो सकती है, लेकिन यदि एक महिला के साथ भी इस तरह का अपराध हुआ है तो भी समाज व सरकारों को उस समस्या से मुंह मोड़ने बजाय उसको खत्म का करने का उपाय करने चाहिए। 

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