संपादकीय: अवसर और चुनौती
मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण किसी भी चुनाव की विश्वसनीयता की रीढ़ है। मुख्य निर्वाचन आयोग के अधिकारियों की मांग पर चुनाव आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और विविधतापूर्ण राज्य में एसआईआर की समय सीमा दो सप्ताह बढ़ाने का फैसला भले सरल प्रशासनिक निर्णय प्रतीत हो, पर इसके प्रभाव बहुत व्यापक और बहुस्तरीय हैं। मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने का लक्ष्य जितना आवश्यक है, उतना ही कठिन भी और इसीलिए यह समय वृद्धि महत्वपूर्ण अवसर के साथ चुनौती भी है।
यह तो बहुत स्पष्ट है कि यदि इसका उपयोग पूरी गंभीरता से हो तो इस अतिरिक्त समय का मतदाता सूची की शुद्धता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। प्रदेश के सभी जिलों से मिली रिपोर्टें संकेत देती हैं कि फील्ड सत्यापन में कई क्षेत्रों में देरी थी, कुछ स्थानों पर अनुपस्थित मतदाताओं की पहचान अपूर्ण थी और मृतक मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया भी धीमी चल रही थी। दो सप्ताह का अतिरिक्त समय इन खामियों को दूर करने का अवसर देगा और इससे सूची की शुद्धता में उल्लेखनीय सुधार आ सकता है। विशेषकर घनी आबादी वाले जिलों, शहरी स्लम क्षेत्रों, प्रवासी मज़दूरों के अंचलों और बाढ़-सूखा प्रभावित इलाकों में, जहां सत्यापन सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण है। इस समयवृद्धि से एसआईआर में लगे अधिकारियों व कर्मचारियों को राहत मिलेगी। एक सवाल यह भी है कि क्या इतनी विशाल जनसंख्या वाले सूबे में अधिकारी और समय की मांग कर सकते हैं? संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हर विधानसभा क्षेत्र में 8–10 प्रतिशत मतदाता अनुपस्थित हैं। ये वो लोग हैं जो या तो दूसरे राज्यों में काम करते हैं, या स्थानांतरित हो चुके हैं, या पता बदल चुके हैं।
यदि इनका सत्यापन अधूरा रह गया, तो स्थिति चुनावी गड़बड़ियों और फर्जी मतदान की आशंका को बढ़ा सकती है, क्योंकि फर्जी वोटिंग और मृत मतदाताओं के नाम से मतदान की आशंकाएं अब भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई हैं। मुख्यमंत्री का यह बयान कि विपक्ष मृत या अनुपस्थित नामों पर वोट अपने खाते में डलवा सकता है, राजनीतिक चेतावनी भी है और प्रशासनिक सावधानी भी। सिद्धांततः यह संभव तो है, पर तभी जब सूची में कमियां रह जाएं। तकनीकी निगरानी और आधार-लिंकिंग के बावजूद, यदि फील्ड स्तर पर ढील हुई तो यह खामी चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। अतः यह बयान अधिकारियों पर यह दबाव भी डालता है कि कोई चूक न रह जाए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं जिलों में अधिकारियों को फील्ड में जाकर गायब, विस्थापित और अनुपस्थित मतदाताओं की खोज का आदेश दिया है। घुसपैठियों को मतदाता सूची से दूर रखने के लिए ‘डोर-टू-डोर सत्यापन, डिजिटल फॉर्मों की ट्रैकिंग, आधार-मतदाता फोटो क्रॉस-मैचिंग, और संदिग्ध इलाकों की विशेष जांच करवानी आवश्यक होगी। कुल मिलाकर इस बढ़े समय का वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब प्रशासनिक मशीनरी में जवाबदेही बढ़े, तकनीकी तथा फील्ड- दोनों स्तरों पर सत्यापन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। मतदाता सूची चुनाव की नींव है। नींव मजबूत होगी तो लोकतंत्र भी ताकतवर होगा।
