संपादकीय: संगठन की नवीन बागडोर

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Published By Monis Khan
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बिहार सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री नितिन नवीन को भाजपा का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना राजनीतिक हलकों में निःसंदेह चौंकाने वाला रहा है। चौंकाने वाला इसलिए कि वे न तो लंबे समय से राष्ट्रीय राजनीति के चेहरे रहे हैं और न ही अब तक उन्हें पार्टी के शीर्ष संगठनात्मक ढांचे में सबसे आगे माना जाता था। फिर भी यह निर्णय अचानक नहीं, बल्कि भाजपा की सुविचारित संगठनात्मक और चुनावी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है। इस चयन में संगठन और उसके पदाधिकारियों की भूमिका का तो पता नहीं, अंतिम मुहर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ही रही। 

भाजपा में परंपरागत रूप से राष्ट्रीय अध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष जैसे पदों पर नियुक्ति में संगठनात्मक चुनाव नहीं होते, राज्यों से आए संकेत और केंद्रीय नेतृत्व की राजनीतिक प्राथमिकताएं निर्णायक होती हैं। नितिन नवीन का चयन भी इसी बहुस्तरीय प्रक्रिया का परिणाम है, जिसमें नेतृत्व ने अपेक्षाकृत कम विवादित, अनुशासित और भरोसेमंद चेहरे को आगे बढ़ाना उचित समझा। नितिन नवीन को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने के पीछे भाजपा के मंसूबे स्पष्ट हैं। पहला, पार्टी 50 वर्ष से कम आयु के नेतृत्व को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहती है। दूसरा, संगठन और सरकार के बीच संतुलन बनाने वाले ऐसे नेताओं को उभारना चाहती है, जो न केवल सत्ता-केंद्रित हों और न ही सिर्फ संगठनात्मक गुटों में उलझे रहें।

नितिन नवीन को उनके प्रशासनिक अनुभव, शांत स्वभाव और निर्णयों में अनुशासन के कारण अन्य दावेदारों पर तरजीह मिली।  छत्तीसगढ़ और असम में सह प्रभारी के रूप में उनकी संगठनात्मक अनुभव की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इन राज्यों में उन्होंने चुनावी रणनीति, बूथ प्रबंधन और संगठनात्मक समन्वय में सक्रिय भूमिका निभाई। यही अनुभव उन्हें राष्ट्रीय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देने के पक्ष में जाता है, हालांकि दक्षिण भारत में भाजपा का प्रभाव बढ़ाने की चुनौती के बीच उत्तर भारत से कार्यकारी अध्यक्ष का चयन भी चर्चा का विषय है। भाजपा की रणनीति संकेत देती है कि पार्टी क्षेत्रीय संतुलन को केवल पदों के माध्यम से नहीं, जिम्मेदारियों और मिशन आधारित कार्य-विभाजन से साधना चाहती है। नितिन नवीन को दक्षिण में संगठनात्मक विस्तार से जुड़ी जिम्मेदारियां सौंपी जा सकती हैं।

राष्ट्रीय दलों में नेतृत्व परिवर्तन का प्रभाव व्यापक राजनीतिक विमर्श और विपक्षी रणनीतियों पर भी पड़ता है। विपक्ष इस नियुक्ति को भाजपा की सामाजिक और क्षेत्रीय राजनीति के नए संकेत के रूप में देख रहा है। नितिन नवीन का सवर्ण कायस्थ समुदाय से होना भी राजनीतिक रूप से अर्थपूर्ण है। आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नितिन नवीन के लिए पहली बड़ी परीक्षा होंगे। यदि वे संगठनात्मक समन्वय, चुनावी प्रबंधन और आंतरिक संवाद को प्रभावी ढंग से साध पाए, तो उनसे लंबी पारी की उम्मीद की जा सकती है। बड़ी चुनौती यह होगी कि वे पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे में अपेक्षित ऊर्जा और आधुनिकता ला पाते हैं या नहीं। फिलहाल उनका चयन भाजपा की उस रणनीति को रेखांकित करता है, जिसमें भविष्य की राजनीति के लिए अपेक्षाकृत युवा, संतुलित और भरोसेमंद नेतृत्व को तैयार किया जा रहा है।