संपादकीय: चौधरी का चयन
उत्तर प्रदेश भाजपा की कमान पंकज चौधरी को सौंपा जाना एक संगठनात्मक नियुक्ति मात्र नहीं, बल्कि आने वाले पंचायत और विधानसभा चुनावों की दृष्टि से एक सुविचारित राजनीतिक-रणनीति का संकेत है। ऐसे समय में जब 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली, संगठन के शीर्ष पर यह बदलाव कई स्तरों पर संदेश देता है। सबसे पहले, पंकज चौधरी का निर्विरोध प्रदेश अध्यक्ष चुना जाना यह दर्शाता है कि भाजपा नेतृत्व फिलहाल किसी गुटीय संघर्ष से बचना चाहता है, हालांकि इसे संगठन के पूरी तरह गुटबाजी-शून्य होने का प्रमाण मानना अतिशयोक्ति होगी।
उत्तर प्रदेश जैसा विशाल और विविध राज्य स्वाभाविक रूप से आंतरिक समीकरणों से भरा रहता है, पर निर्विरोध चयन यह दिखाता है कि शीर्ष नेतृत्व ने संतुलन साधते हुए सर्वमान्य चेहरे पर सहमति बनाई है। मुख्यमंत्री पहले ही पूर्वांचल से हैं और अब प्रदेश अध्यक्ष भी उसी क्षेत्र से चुनना क्षेत्रीय वर्चस्व की बहस को जन्म देता है। प्रश्न यह है कि क्या इससे राजनीतिक असंतुलन पैदा होगा? वस्तुतः भाजपा का संगठनात्मक ढांचा केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि जातीय और सामाजिक संतुलन पर भी आधारित रहता है। पूर्वांचल को अध्यक्ष पद देना दरअसल उस क्षेत्र में पार्टी की पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश है, जहां 2024 में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं हुआ। पंकज चौधरी के चयन के पीछे कुर्मी समुदाय का समीकरण भी स्पष्ट दिखता है। उत्तर प्रदेश में कुर्मी मतदाता लगभग 8 प्रतिशत माने जाते हैं, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। समाजवादी पार्टी लंबे समय से पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) समीकरण के जरिए इन्हें साधने की कोशिश कर रही है। ऐसे में कुर्मी समुदाय से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह पिछड़े वर्गों में अपनी पैठ और गहरी करना चाहती है। यह रणनीति सपा के सामाजिक गठजोड़ की काट के रूप में देखी जा सकती है। इससे पहले भी कुर्मी समुदाय से भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं।
पंकज चौधरी का राजनीतिक सफर पार्षद से लेकर विधायक और सांसद तक का रहा है। उन्होंने जीत और हार-दोनों का स्वाद चखा है। यही अनुभव उन्हें जमीन से जुड़ा नेता बनाता है। संगठन और प्रशासन, दोनों का अनुभव होने से सरकार और पार्टी के बीच बेहतर समन्वय की उम्मीद की जा सकती है। संघ नेतृत्व से उनके अच्छे संबंध योगी सरकार को भी संगठनात्मक मजबूती देगा, हालांकि नए प्रदेश अध्यक्ष के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं, पंचायत चुनावों में जमीनी संगठन को सक्रिय करना, जातीय संतुलन बनाए रखना, आंतरिक असंतोष को नियंत्रित करना और विपक्ष के पीडीए नैरेटिव का प्रभावी जवाब देना। यदि पंकज चौधरी इन मोर्चों पर संतुलित और समावेशी नेतृत्व दिखा पाते हैं, तो उनके नेतृत्व में प्रदेश भाजपा के संगठनात्मक विकास और चुनावी सफलता की कामना असंगत नहीं होगी। अंततः यह नियुक्ति भाजपा की उस दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें सामाजिक विस्तार और संगठनात्मक मजबूती को साथ-साथ साधने की कोशिश साफ नजर आती है।
