संपादकीय: अत्यावश्यक अभियान
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें मतदाता सूची से बाहर करने तथा प्रदेशव्यापी अभियान चलाने की घोषणा कई स्तरों पर महत्व रखती है। मुख्यमंत्री ने सुरक्षा, सामाजिक संतुलन और कानून-व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए, मतदाता सूची को शुद्ध करने की जिस जरूरत पर जोर दिया है, उसके राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों ही निहितार्थ हैं। साफ है कि सरकार मतदाता सूची को केवल तकनीकी दस्तावेज नहीं, बल्कि लोकतंत्र की केंद्रीय धुरी मानती है और इसमें किसी भी प्रकार की अशुद्धि को सीधे-सीधे सुरक्षा जोखिम तथा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर खतरे के रूप में देखती है।
यह भी स्पष्ट है कि एसआईआर के बहाने चुनावी डाटा की गहराई से समीक्षा होगी। यदि यह प्रक्रिया बिना पक्षपात, वैज्ञानिक तरीके और पारदर्शिता के साथ पूरी की जाती है, तो मतदाता सूची की गुणवत्ता में वाकई व्यापक सुधार संभव है। पिछले वर्षों में विभिन्न जिलों में फर्जी मतदाता, दोहरी प्रविष्टियों या अवैध दस्तावेजों के आधार पर बने मतदाता पहचान पत्रों की शिकायतें मिलती रही हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री का कठोर संदेश निश्चित ही प्रशासनिक मशीनरी को अधिक सतर्क करेगा और सुधार की गति तेज करेगा।
प्रदेश में घुसपैठियों की संख्या का कोई आधिकारिक, सार्वजनिक और सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, किंतु यह तथ्य सर्वविदित है कि मुरादाबाद, मेरठ और आगरा मंडलों में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या समुदायों के बसने की आशंकाएं समय-समय पर सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जताई जाती रही हैं। सीमावर्ती प्रदेश न होने के बावजूद, यूपी रोजगार, व्यापार और जनसंख्या के आकार के कारण ऐसे समूहों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि कुछ घुसपैठिए मतदाता सूची में जगह बनाने में सफल हुए।
निश्चित रूप से यह कमज़ोर दस्तावेज़ सत्यापन, स्थानीय स्तर पर निगरानी की कमी और कभी-कभी भ्रष्टाचार से जुड़ी शिथिलता का नतीजा है। राशन कार्ड, आधार, निवास प्रमाण पत्र या अन्य सरकारी दस्तावेज़ों की प्राप्ति यदि बिना कठोर जांच के संभव हो जाती है, तो मतदाता सूची में प्रवेश भी सहज बन जाता है। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक विफलता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी गंभीर है। घुसपैठियों की पहचान सिर्फ शासन-प्रशासन का काम नहीं, बल्कि समाज की भी भागीदारी आवश्यक है।
यदि स्थानीय समुदाय संदिग्ध गतिविधियों, असामान्य जनसंख्या परिवर्तनों या फर्जी दस्तावेज़ों पर सतर्क नज़र रखे, तो अभियान अधिक प्रभावी हो सकता है। जनता को जोड़ने का असर मनोवैज्ञानिक रूप से भी पड़ता है, क्योंकि इससे यह संदेश जाता है कि सुरक्षा और लोकतंत्र की रक्षा सामूहिक जिम्मेदारी है।इस अभियान के बाद उत्तर प्रदेश और उसकी मतदाता सूची घुसपैठियों से पूरी तरह मुक्त हो जाएगी, यह कहना जल्दबाजी होगी। इस दिशा में निरंतरता, पारदर्शिता, तकनीकी उन्नयन और निष्पक्ष निगरानी दीर्घकालीन अनिवार्य शर्तें हैं। यह भी ज़रूरी है कि कार्रवाई कानून-सम्मत हो, प्रशासनिक प्रक्रियाएं प्रमाण-आधारित हों।
