संपादकीय: चेतावनी देता हादसा

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Published By Monis Khan
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मथुरा के निकट यमुना एक्सप्रेसवे पर हुई भीषण सड़क दुर्घटना, जिसमें मरे तेरह लोगों में से दस के शव तक नहीं मिले, दिल दहलाने वाली है। यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि हमारी सड़क-सुरक्षा व्यवस्था की सामूहिक विफलता का ज्वलंत और विद्रूप उदाहरण है। इसमें निर्दोष यात्रियों की जानें केवल वाहनों के टकराव से नहीं गईं हैं, बल्कि पूर्वानुमेय जोखिमों की भारी उपेक्षा से गईं। शून्य दृश्यता के बावजूद, तेज रफ्तार, भारी-हल्के वाहनों की मिली-जुली आवाजाही और किसी तरह की चौकसी का न होना, समय रहते लिए जा सकने वाले प्रशासनिक निर्णयों की अनुपस्थिति, आपराधिक लापरवाही- इन सबने मिलकर इस त्रासदी को जन्म दिया। 

कहा जा सकता है कि इसका कारण बने कोहरे का हम क्या कर सकते हैं, बेशक कोहरा प्राकृतिक है, पर उसके प्रभाव का प्रबंधन, दुर्घटना से बचाव, मानव-निर्मित प्रणालियों का दायित्व है। जब दृश्यता शून्य के करीब थी, तब हाईवे संचालन को धुंध-क्षेत्र से पहले ही नियंत्रित किया जाना चाहिए था। सुरक्षित स्थानों पर वाहनों को रोकना, गति सीमा को सख्ती से लागू करना और चरणबद्ध तरीके से यातायात को बहाल करना- ये मानक प्रोटोकॉल हैं। 

सवाल यह है कि जब मौसम विभाग को क्षेत्र विशेष में कोहरे की सघनता का पूर्वानुमान होता है, तो उसे रियल-टाइम ट्रैफिक मैनेजमेंट से क्यों नहीं जोड़ा जाता? आज जाम, दुर्घटना या मरम्मत के अलर्ट तुरंत मोबाइल ऐप्स और इलेक्ट्रॉनिक साइनबोर्ड्स पर प्रसारित हो जाते हैं, तो कोहरे के लिए क्यों नहीं? जिन सेक्शनों में दृश्यता कम होने की आशंका थी, वहां पहले से चेतावनी, गति-सीमा में कटौती और अस्थायी अवरोध बनाकर वाहनों को रोका जा सकता था। राजमार्गों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी बहु-स्तरीय है- केंद्र और राज्य सरकारें, सड़क निर्माता, नियामक और संचालन एजेंसियां। 

राष्ट्रीय राजमार्गों पर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की भूमिका निर्णायक है, वहीं राज्य यातायात पुलिस का प्रवर्तन भी उतना ही आवश्यक। टोल वसूलने वाली कंपनियां यदि शुल्क लेती हैं, तो उन्हें केवल गड्ढे-मुक्त सड़क तक सीमित नहीं रहना चाहिए। सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करना उनकी संविदात्मक और नैतिक जिम्मेदारी है। जरूरी है कि भारी और हल्के वाहनों में आधुनिक एंटी-कोलिजन सिस्टम, फॉरवर्ड-कोलिजन वार्निंग, ऑटोमैटिक इमरजेंसी ब्रेकिंग, लेन-असिस्ट, रडार/लिडार आधारित सेंसर और फॉग-लैंप हों, पर हाईवे स्तर पर विजिबिलिटी-सेंसर, वेरिएबल मैसेज साइन और रियल-टाइम स्पीड कंट्रोल भी लागू होना चाहिए। 

सर्दियों में उड़ानों के विलंब की तरह सड़कों पर भी ‘फॉग प्रोटोकॉल’ लागू होना चाहिए- पूर्वानुमान, चरणबद्ध बंदी, वैकल्पिक मार्ग और यात्रियों को समय पर इसकी सूचना। इसके अलावा इसके दोषियों की पहचान भी आवश्यक है, चाहे वह लापरवाह चालक हो, चेतावनी न देने वाली एजेंसी हो या सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू न करने वाला ऑपरेटर। मुआवजा ही पर्याप्त नहीं दंडात्मक कार्रवाई और सुधारात्मक आदेश भी अत्यावश्यक हैं। हादसा सरकार और यात्रियों दोनों को यह सीख देता है कि रफ्तार पर संयम एवं स्वयं सतर्कता, तकनीक पर भरोसा और प्रशासनिक तत्परता- तीनों का संतुलन ही सुरक्षित यात्रा की कुंजी है।