मणिपुर की स्थिति को गंभीरता से ले केंद्र, सामुदायिक नेताओं से बातचीत शुरू की जाए: कांग्रेस

मणिपुर की स्थिति को गंभीरता से ले केंद्र, सामुदायिक नेताओं से बातचीत शुरू की जाए: कांग्रेस

नई दिल्ली। कांग्रेस ने मणिपुर में पिछले दिनों हुई हिंसा को लेकर केंद्र सरकार में शीर्ष स्तर की ‘चुप्पी’ पर सवाल खड़े करते हुए बुधवार कहा कि यह एक सीमावर्ती राज्य है और वहां की स्थिति को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। पार्टी प्रवक्ता अजय कुमार ने यह आग्रह भी किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को मेइती और आदिवासी समुदायों के नेताओं को बुलाकर बातचीत शुरू करनी चाहिए ताकि परस्पर विश्वास और सौहार्द बढ़ सके। कांग्रेस ने मणिपुर की स्थिति का जायजा लेने के लिए हाल में तीन सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति को वहां भेजा था। इसमें अजय कुमार भी शामिल थे। 

कुमार ने संवाददाता सम्मेलन में दावा किया, मणिपुर में 54,000 लोग बेघर हो गए, 20 थाने जला दिए गए और 2,000 मकान जल गए। हिंसा के दौरान 6,000 गोलियां, 1,000 सेमी-ऑटोमेटिक, ऑटोमेटिक हथियार लूट लिए गए। पांच मंदिरों, 200 गिरजाघरों को जला दिया गया। उन्होंने कहा, इस स्थिति के बावजूद प्रधानमंत्री चुनाव में व्यस्त थे। अब तक कोई केंद्रीय मंत्री मणिपुर नहीं गया। यह चुप्पी क्यों है? उन्होंने दावा किया कि मणिपुर में विमर्श चरमपंथियों के हाथ में चला गया है। कुमार ने कहा, हमारी मांग है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों को बुलाकर बात करें। कांग्रेस नेता ने कहा, मणिपुर एक सीमावर्ती राज्य है। वहां की स्थिति को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। 

उनका यह भी कहना था, विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास होना चाहिए। पर्वतीय और मैदानी इलाके के बीच जितने भी गांव हैं वहां सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। सरकार से हमारी मांग है कि मारे गए लोगो के परिवार को 25 लाख रुपये दिए जाएं और घायलों को पांच-पांच लाख रुपये दिए जाएं। गौरतलब है कि मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग के विरोध में तीन मई को पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद मणिपुर में हिंसक झड़पें शुरू हो गई थी मणिपुर में हुए इस जातीय संघर्ष में 70 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी और पूर्वोत्तर राज्य में सामान्य स्थिति की बहाली के लिए लगभग 10,000 सैन्य और अर्ध-सैन्य कर्मियों को तैनात करना पड़ा। 

ये भी पढे़ं- हिमाचल का हरित आवरण 2030 तक 30 प्रतिशत करने का लक्ष्य: सुक्खू