दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- मानवीय बुद्धि का स्थान नहीं ले सकती कृत्रिम बुद्धिमत्ता

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Published By Moazzam Beg
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नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि न्यायिक प्रक्रिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) न तो मानवीय बुद्धि का और न ही मानवीय तत्व का स्थान ले सकती है। अदालत ने कहा कि चैटजीपीटी किसी अदालत में कानूनी या तथ्यात्मक मुद्दों के निर्णय का आधार नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि एआई से उत्पन्न डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता अभी भी अस्पष्ट है और ऐसे उपकरण का उपयोग ज्यादा से ज्यादा, प्रारंभिक समझ या प्रारंभिक शोध के लिए किया जा सकता है। 

अदालत ने यह टिप्पणी लक्ज़री ब्रांड क्रिश्चियन लोबोतिन द्वारा एक साझेदारी फर्म के खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई के दौरान की, जो उसके ट्रेडमार्क का कथित तौर पर उल्लंघन करके जूतों के निर्माण और बिक्री से संबंधित है। वादी के वकील ने कहा कि ‘रेड सोल शू’ भारत में इसका पंजीकृत ट्रेडमार्क है और इसकी "ख्याति" के संबंध में चैटजीपीटी के माध्यम से मिली प्रतिक्रियाएं अदालत के समक्ष रखीं। 

अदालत ने अपने हाल में आदेश में कहा, ‘‘उक्त उपकरण (चैटजीपीटी) किसी अदालत में विधिक या तथ्यात्मक मुद्दों के निर्णय का आधार नहीं हो सकता। चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) आधारित चैटबॉट्स की प्रतिक्रिया, जिस पर वादी के वकील द्वारा भरोसा करने का प्रयास किया गया है, कई कारकों पर निर्भर करती है। इनमें उपयोगकर्ता द्वारा पूछे गए प्रश्न की प्रकृति और संरचना, प्रशिक्षण डेटा, आदि। इसके अलावा, एआई चैटबॉट्स द्वारा उत्पन्न गलत प्रतिक्रियाएं, काल्पनिक केस लॉ, काल्पनिक डेटा आदि की भी आशंकाएं हैं।’’ 

इसने कहा, ‘‘एआई जनित डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता अभी भी अस्पष्ट है। अदालत के मन में इसको लेकर कोई संदेह नहीं है कि तकनीकी विकास के वर्तमान चरण में, एआई न्यायिक प्रक्रिया में मानवीय बुद्धि या मानवीय तत्व का स्थान नहीं ले सकती है। इस उपकरण का उपयोग ज्यादा से ज्यादा प्रारंभिक समझ या प्रारंभिक शोध के लिए किया जा सकता है और इससे अधिक कुछ नहीं।’’ 

दोनों पक्षों के उत्पादों के तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर, अदालत ने अंततः फैसला सुनाया कि प्रतिवादी का वादी की "ख्याति का लाभ उठाते हुए नकल करके मौद्रिक लाभ हासिल करने का स्पष्ट इरादा" था। प्रतिवादी इस बात पर सहमत हुआ कि वह वादी के जूते के किसी भी डिज़ाइन की नकल नहीं करेगा और अदालत ने निर्देश दिया कि इस वचन के किसी भी उल्लंघन के मामले में, प्रतिवादी वादी को हर्जाने के रूप में 25 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा। 

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