बरेली: महिला प्रधान संभाल रहीं स्टेयरिंग...पति और बेटे दौड़ा रहे सियासत की 'गाड़ी'

बरेली: महिला प्रधान संभाल रहीं स्टेयरिंग...पति और बेटे दौड़ा रहे सियासत की 'गाड़ी'

अनुपम सिंह, बरेली, अमृत विचार। बरेली जिले की 1188 ग्राम पंचायतों में से 585 ग्राम पंचायतों का नेतृत्व महिलाओं के हाथों में हैं। पुरुष प्रधानों की तुलना में यह आंकड़ा थोड़ा सा ही कम है लिहाजा पंचायतों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के दृष्टिगत इसे सुखद स्थिति माना जा सकता है लेकिन ग्राम पंचायतों का कामकाज संभालने के लिहाज से देखा जाए तो महिला सशक्तीकरण के लिहाज से आशान्वित करने वाला बिल्कुल भी नहीं। 

महिला प्रधानों वाली 585 ग्राम पंचायतों में ऐसी दो-चार ग्राम पंचायतें भी ढूंढना आसान नहीं है जिनमें वास्तविक रूप से वे खुद काम कर रही हों। लगभग शत-प्रतिशत ग्राम पंचायतों में उनके पति या बेटे ही प्रधानी संभाल रहे हैं।

जिले में 603 पुरुष प्रधान हैं और 585 महिलाएं। इस तरह महिला प्रधानों की संख्या पुरुष प्रधानों की तुलना में सिर्फ 18 ही कम है लेकिन अगर ग्राम पंचायतों के नेतृत्व के लिहाज से देखें तो इस कागजी आंकड़े के कोई मायने नहीं हैं। ग्राम पंचायतों में तय आरक्षण से 16-17 प्रतिशत ज्यादा महिलाओं को चुना जाना सिर्फ सियासी समीकरणों और मजबूरियों का खेल है।

दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि ग्राम पंचायतों में महिलाओं के अधिकारों पर पतियों के कब्जा कर लिए जाने को राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर भी भरपूर स्वीकार्यता मिली हुई है। राजनीतिक कामों के लिए नेताओं और प्रशासनिक कामों के लिए अफसरों का संपर्क भी महिला प्रधानों से नहीं बल्कि उनके पतियों से ही रहता है। महिलाएं सिर्फ प्रधान कहलाने भर से खुश हैं।

फोन पर भी संपर्क कर पाना आसान नहीं प्रधान मैं हूं या मेरी पत्नी... फर्क क्या है
अमृत विचार संवाददाता ने फोन पर ही कुछ महिला प्रधानों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। पंचायत विभाग से हासिल हुए फोन नंबरों पर कॉल करने पर हर कॉल उनके पतियों ने ही रिसीव की। काफी कहने के बाद भी प्रधानों से बात कराने को तैयार नहीं हुए। किसी ने घर से बाहर होने का बहाना बनाकर टालमटोल कर दी तो किसी ने सीधे-सीधे कह दिया कि मैं बात करूं या मेरी पत्नी, फर्क क्या है।

केस- 1
क्यारा ब्लॉक की ग्राम पंचायत हिंडोलिया भोलापुर की ग्राम प्रधान गंगा देवी से बात करने के लिए उनके नंबर पर फोन किया तो उनके पति रामविलास ने कॉल रिसीव की। बोले, प्रधान तो पत्नी ही हैं लेकिन बात हमसे होती है। जरूरत होने पर ही वह जाती हैं, बाकी काम हम ही देखते हैं। कहा, स्वच्छ भारत मिशन में मेरा गांव लगा है। लखनऊ बुलाने पर भी हम ही गए थे।

केस- 2
भोजीपुरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत अटापट्टी जनूवी की प्रधान दीपशिखा के फोन नंबर पर भी कॉल करने पर बात नहीं हो सकी। डीपीआरओ कार्यालय में उनके नाम पर दर्ज मोबाइल नंबर पर की गई कॉल को उनके पति नरेश सिंह ने रिसीव किया। बोले, पत्नी घर पर हैं। घर पहुंचकर बात करा दूंगा। कामकाज के संबंध में कहा कि जरूरत पर वह जाती हैं। बाकी सब वह खुद देखते हैं।

केस- 3
भोजीपुरा ब्लॉक की दलपतपुर की प्रधान पुष्पा देवी के फोन नंबर कॉल उनके पति रामप्रकाश ने रिसीव की। उनसे प्रधान से बात कराने को कहा तो बोले, अरे यार मैं ही तो हूं प्रधान। उनसे कहा कि प्रधान तो पुष्पा देवी हैं तो बोले, पुष्पा मेरी पत्नी हैं। मैं बात कर रहा हूं या मेरी पत्नी, क्या फर्क है। झल्लाते हुए बोले, जरूरी होता है तो बैठकों में जाती हैं। हम लोग शहर में रहते हैं।

केस- 4
भोजीपुरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत मकरंदापुर की प्रधान राधा से भी बात नहीं हो सकी। उनका फोन उनके बेटे जागीर सिंह ने उठाया। उन्हें अपना परिचय देकर ग्राम प्रधान से बात कराने को कहा तो उधर से बताया गया कि वह घर से बाहर हैं। इसलिए अभी बात नहीं हो पाएगी। जागीर ने बताया कि बैठकों और कार्यक्रमों में उनकी मां शामिल होती हैं। काम वह देखते हैं।

इतना सा काम... जहां कहो, कर देती हैं हस्ताक्षर
सरकारी कार्यक्रमों, बैठकों, गांव में होने वाले विकास के फैसलों में महिला प्रधानों की कोई भूमिका नहीं होती। प्रधान बनने के बावजूद राजनीति में भी उन्हें कोई नहीं पूछता। फैसले घर के पुरुष ही लेते हैं, उन्हें बस कागजों पर हस्ताक्षर करने भर का काम करना होता है। खुली बैठकों से लेकर शासन-प्रशासन की ओर से आयोजित कार्यक्रमाें में भी उनके पति, बेटे या ससुर शामिल होते हैं। कोई इस पर आपत्ति भी नहीं करता।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी...
यूपी में प्रधानपति बहुत लोकप्रिय शब्द हो गया है। व्यापक पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। बिना किसी अधिकार के प्रधानपति महिला ग्राम प्रधान की शक्तियों का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। महिला प्रधान एक रबर स्टैंप की तरह रह गई हैं। गांव के सभी निर्णय प्रधानपति लेते हैं। चुना हुआ जनप्रतिनिधि मूक दर्शक बना रहता है। यह याचिका इसका सटीक उदाहरण है।

पंचायती राज एक्ट के मुताबिक निर्वाचित प्रधान को ही कामकाज करना चाहिए। एक्ट को प्रभावी करने के लिए महिला प्रधानों को खुद कार्य करने के लिए पत्र लिखा जाएगा। जिले में अभी 75 से 80 फीसदी महिला प्रधानों के काम उनके पति ही कर रहे हैं। - धर्मेंद्र कुमार, डीपीआरओ

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