हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश, कहा- किसी व्यक्ति को शराब पीने का दोषी ठहराने के लिए केवल बाहरी जांच पर्याप्त सबूत नहीं

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Published By Sachin Sharma
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कांस्टेबल द्वारा अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के साथ नशे की हालत में दुर्व्यवहार करने के मामले में अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति को शराब पीने का दोषी ठहराने के लिए केवल बाहरी जांच पर्याप्त सबूत नहीं है और ऐसी जांच के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि आरोपी नशे की हालत में था।

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने यूपी सरकार द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली कांस्टेबल जयमंगल राम की याचिका पर सुनवाई करते हुए दी। कोर्ट ने कहा कि डीआइजी, वाराणसी द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस में बताया गया है कि याची के पिछले आचरण के आधार पर याची के खिलाफ बर्खास्तगी की कड़ी सजा प्रस्तावित की गई, जो स्पष्ट रूप से याची के प्रति पूर्वाग्रह दर्शाता है, इसलिए न्यायालय की राय में उक्त कारण बताओ नोटिस अवैध नोटिस है।

इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पूछताछ के दौरान याची के खिलाफ नशे के कारण वरिष्ठों/सहकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार का कोई आरोप साबित नहीं हुआ। मामले के अनुसार याची पुलिस लाइन, वाराणसी में कांस्टेबल के रूप में कार्यरत था। उसके खिलाफ आरोप है कि उसने नशे की हालत में अपने वरिष्ठ अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया, जिसके लिए उसके खिलाफ शिकायत कर उसे निलंबित कर दिया गया।

आरोपों के जवाब में याची ने अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हुए कहा  कि कथित घटना की तारीख पर उसने शराब का सेवन नहीं किया था और न ही उसने अपने वरिष्ठ के साथ दुर्व्यवहार किया है। याची ने विशेष रूप से प्रस्तुत किया है कि वह कुछ समय से बीमार था, जिसके लिए वह आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करता था और कथित घटना के दिन भी उसने उक्त दवा का सेवन किया था।

याची द्वारा यह भी कहा गया है कि उसकी नशे की स्थिति के संबंध में रिपोर्ट तैयार करने से पहले न तो उसका मूत्र परीक्षण और न ही रक्त परीक्षण किया गया, जिससे यह पता लगाया जा सके कि उसने शराब का सेवन किया था या नहीं। क्षेत्राधिकारी, कोतवाली, वाराणसी द्वारा जांच रिपोर्ट के अनुसार, जांच अधिकारी ने याची के खिलाफ आरोपों को सही पाया और उसे बर्खास्त कर दिया गया।

याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि सजा आदेश पारित करते समय वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने याची की चरित्र पंजिका में की गई पिछली प्रविष्टियों के आचरण को ध्यान में रखा है। अगर कारण बताओ नोटिस में उक्त प्रविष्टियों को दर्शाया गया होता तो याची उसका उचित उत्तर दे सकता था।

सभी तथ्यों पर विचार करते हुए अंत में कोर्ट ने कहा कि सज़ा आदेश वैधानिक नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया था। इसके साथ ही कोर्ट ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और याची को सेवा में निरंतरता के साथ उस अवधि के लिए 50% बकाया वेतन के साथ सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया।

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