Special Story : आंखों देखी...धमाकों से दहल गई थी धरती और धूल के गुबार से भर गया था पूरा क्षेत्र

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Published By Bhawna
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बजरंग दल के जिला संयोजक के रूप में टीम संग 15 दिन पहले पहुंचे थे अयोध्या, छह दिसंबर 1992 की घटना के गवाह दीपक कुछ बोलते नहीं, सिसकने लगते हैं

आशुतोष मिश्र, अमृत विचार। छह दिसंबर 1992 की कारसेवा में शामिल महानगर निवासी दीपक गोयल 22 जनवरी के अनुष्ठान को लेकर खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। अयोध्या में प्रभु श्रीराम को मंदिर में विराजने की तैयारी की चर्चा के दौरान दीपक भावुक हो गए। सिलसिलेवार कारसेवा में टीम के किस्से सुनाते हैं। बात गंभीर होते ही उनकी आखों से आंसू छलक पड़ते हैं।

महानगर के दिनदारपुरा निवासी दीपक गोयल कारसेवकों में एक है। तब मुरादाबाद में बजरंग दल के जिला संयोजक थे। छह दिसंबर 1992 के 15 दिन पहले यहां के 10-12 लोगों के साथ अयोध्या गए थे। वहां वाल्मीकि भवन में बहुतेरे कारसेवक ठहरे थे। मुरादाबाद जिले की टीम भी थी। साथ में दाताराम, सर्वेश, राकेश फोटे सहित अन्य लोग गए थे। 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर में विराजने और अनुष्ठानों की तैयारी के बीच बातचीत में वह कहते हैं कि छह दिसंबर (1992) से पहले रात को बैठक में तय हुआ कि कल सुबह हम लोगों को कारसेवा नहीं करनी है। एक दल जो नरम था वह चाहता था कि सांकेतिक कारसेवा हो और काम यहीं खत्म हो जाए।

उधर महाराष्ट्र, गुजरात और कुछ उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं ने निर्णय लिया कि हमें सुबह तीनों गुंबदों को खत्म करना है। कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर तब दिखी जब यह सुबह कारसेवा हुई और दिन में दो बजे के बाद गुंबदों में धुआं उठने लगा। लोग समझे कि बम ब्लास्ट हुआ है पर, बम ब्लास्ट नहीं वहां गुंबद नीचे गिर गई थी। जब धूल और गुबार फैला तो लोग ताज्जुब में पड़ गए कि आखिर यह क्या और कैसे हो गया? शिविर में उमा भारती मौजूद थीं। सबसे अधिक खुशी उन्हें हुई। वह पार्टी प्रमुख डा.मुरली मनोहर जोशी के पास दौड़कर पहुंच गयीं, खुशी में बोलीं कि भाई साहब काम हो गया। जब कारसेवा हो गई तो सरकार की तरफ से स्पेशल ट्रेनें लगाईं गईं ताकि, कारसेवक अयोध्या खाली कर दें। हर जगह रेलवे स्टेशन पर स्वागत होता था। कारसेवकों को माला पहनाकर भोजन कराया जाता था।

बताते हैं कि वापसी में यहां रेलवे स्टेशन पहुंचा तो देखा कि महानगर में कर्फ्यू लग गया था। तीन- चार दिन हम स्टेशन पर ही रहे। घर आने पर पता लगा पुलिस हम लोगों को तलाश रही है। भाजपा नेतृत्व की सरकार बर्खास्त हो चुकी थी। राष्ट्रपति शासन लग गया था। कुछ दूसरे राजनीतिक दल के लोग हमारी मुखबिरी करके हमें पकड़वाना चाहते थे। तब लगता था कि उस जमाने की तपस्या बेकार गई। अब भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बन गया। हमने जो संघर्ष किया वह सफल हो गया।

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