Kanpur: संस्थापक साहित्य मनीषी समाजसेवी डॉ बद्रीनारायण तिवारी का निधन… साहित्य सेवा में गुजार दिया पूरा जीवन

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Published By Nitesh Mishra
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संस्थापक साहित्य मनीषी समाजसेवी डॉ बद्रीनारायण तिवारी का निधन

संस्थापक साहित्य मनीषी समाजसेवी डॉ बद्रीनारायण तिवारी का निधन हो गया। संस्थापक साहित्य मनीषी समाजसेवी डॉ बद्रीनारायण तिवारी का निधन

कानपुर, अमृत विचार। मानस संगम के संस्थापक साहित्य मनीषी समाजसेवी डॉ बद्रीनारायण तिवारी नहीं रहे। उनकी इच्छा के अनुसार उनका पार्थिव शरीर शुक्रवार को जीएसवीएम मेडिकल कालेज को सौंपा जाएगा। सनातन धर्म को मानने वाले डॉ तिवारी चाहते थे उनका शरीर चिकित्सा छात्रों के शोध में काम आए। उन्होंने अपना पूरी जीवन साहित्य सेवा में गुजार दिया।

विद्यावाचस्पति मानद उपाधि से सम्मानित डॉ बद्रीनारायण तिवारी का जन्म 13 दिसंबर 1934 को प्रयागनारायण शिवाला गिलिस बाजार में हुआ था। जब मात्र डेढ़ साल के थे तभी उनके पिता समाजसेवी शेषनारायण तिवारी उन्हें छोड़कर परलोक सिधार गए। वह म्युनिसिपल कमिश्नर थे। उनके करीबी बताते हैं कि डॉ बद्रीनारायण तिवापी ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव तक खासी उपलब्धियां हासिल कर चुके थे।

सांस्कृतिक सद्भाव, राष्टीय एकीकरण, सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर अब 75 से भी ज्यादा पुस्तकों का संपादन एवं लेखन कर चुके उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिली तो उन्हीं पर शोध करके डॉक्टरेट पाने वालों की खासी संख्या है। इनमें मुस्लिम कलाकारों की इंद्रधनुषी रामकथा और मुस्लिम साहित्यकार, विश्वकवि तुलसी और मुस्लिम कलमकार, बोल्गा और गंगा के सेतु वारान्निकोव, रूस के तुलसीदास जैसी पुस्तकें शामिल हैं।

वर्ष 2011 से 2015 तक भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग, हिंदी भाषा उत्थान के लिए गठित कमेटी के मनोनीत सदस्य रहे। उनका नाम सुनते ही हर किसी के आंखों के सामने ऐसी आकृति घूम जाती है जो साधारण जीवन जीने वाले तपस्वी का स्वरूप लगती है। युवाओं के लिए भी उन्होंने काफी काम किया। फ्रीडम मूवमेंट  में देश के लिए जान देने वालों, 1857 के कांतिवीरों और वीरांगनाओं के लिए नानाराव पार्क में 1992 में शहीद उपवन स्थापित किया जहां पर 51 क्रांतिवीरों की मूर्तियां स्थापित करायीं और शिलालेख लिखाए।

उन्होंने 25 सितंबर 1981 तुलसी उपवन का निर्माण कराके नगर निगमको समर्पित किया। यह लोगों के लिए प्रेरक और दर्शनीय स्थल है। यहां पर हर साल तुलसी जयंती मनायी जाती है। यहां तुलसीदास की प्रतिमा के साथ ही शबरी, राम-केवट, जटायु मिलन आदि प्रतिमाएं संदेश देती हैं। डॉ बद्रीनारायण तिवारी हिंदी साहित्य के मूर्धन्य सेवक थे तो दूसरी तरफ राम के आदर्शों को देश-विदेश में जन-जन तक पहुंचाने के लिए वर्षों से मानस संगम के जरिये प्रयासरत रहे।

रामचरितमानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास के अनन्य उपासक हैं तो साफ-सुथरी राजनीति और समाजसेवा के प्रतिमान भी। 87 साल की उम्र में भी हर जाति, वर्ग के साहित्यकारों को मंच देकर उनकी प्रतिभा को सामने लाने की कोशिशें परवान चढ़ा रहे हैं। छवि के विपरीत उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर मेयर का चुनाव लड़ा पर कानपुर ने उन्हें उनकी पवित्र छवि तक ही सीमित रखा। यह चुनाव उनके लिए राजनीति के छिछलेपन से दूर रहने का सबक भी दे गया।

हालांकि उनके व्यक्तित्व के आगे पुरस्कार फीके हैं पर मॉरीशस ने जो उन्हें हिंदी सेवा का सम्मान दिया वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर का था। राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल अंशुमान सिंह के हाथों नेशनल इंट्रीगेशन आफ इंडिया इलाहाबाद द्वारा राष्ट्रीय एकता सम्मान। मारीशस सरकार द्वारा पोटलुई में महर्षि अगस्त्य-2003 सम्मान।

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से हिंदी सेवा सम्मान। हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति मानद उपाधि। गुजरात हिंदी विद्यापीठ, अमदाबाद गुजरात की ओर से साहित्य श्री उपाधि। मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन ग्वालियर की ओर से सम्मान। समय-समय पर देश के अलग-अलग राज्यों में सम्मानित किए गए। यही सब उनके नाम हैं। यह सूची तो संक्षिप्त है।

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