चाय में स्वाद और इत्र में महक घोलेगी कासगंज की कैमोमाइल फसल, औषधि गुणों से है भरपूर

चाय में स्वाद और इत्र में महक घोलेगी कासगंज की कैमोमाइल फसल, औषधि गुणों से है भरपूर

फोटो : कासगंज में तैयार होती कैमोमाइल की फसल।

गजेंद्र चौहान, कासगंज। जिले में हर ओर नित नए विकास के प्रयास हो रहे हैं। हर क्षेत्र में जिला समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। खेती की बात करें तो अब मिश्र और अफ्रीका की प्रमुख फसल माने जाने वाली फसल कैमोमाइल को कासगंज में मुकाम मिल गया है। यहां एक किसान औषधिक गुणों से भरपूर यह फसल तैयार की है। इस फसल से कई लाभ हैं। यह चाय का स्वाद भी बढ़ाएंगी, इत्र में महक घोलेगी साथ ही तमाम रोगों से लड़ने के लिए औषधीय तैयार कराएगी।

लेमन व ग्रीन टी की तरह कैमोमाइल टी की मांग अब बढ़ती जा  रही है। इसके सेवन से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है। साथ ही कई प्रकार की बीमारियों से भी यह चाय बचाती है। कैमोमाइल चाय इस फसल के फूल से तैयार होती है। इस फसल के लिए जागरुकता दिखाई है पटियाली क्षेत्र के किसान श्यामा चरन ने। जो जिले के प्रगतिशील किसान हैं और लेमन ग्रास, सतावर सहित कई औषधीय फसल पिछले तीन साल से तैयार कर रहे हैं। 

इन्हीं फसलों की कड़ी में उन्होंने कैमोमाइल को भी जोड़ लिया है। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश के कई जिलों से कैमोमाइल की मांग किसान के पास आई है। इन दिनों किसान इस फसल को तैयार करने में जुटे हुए हैं। माना जा रहा है कि मई तक फसल तैयार हो जाएगी। इस फसल के फूल का प्रयोग चाय के लिए होता है। पत्ती का प्रयोग इत्र के लिए होता है।

यहां भी होता है उपचोग
चाय और इत्र के अलावा कैंसर जैसी गंभीर बीमार, इम्युनिटी पावर बढ़ाने की औषधि में भी इसका प्रयोग होता है। वहीं साबुन, शैंपू व क्रीम बनाने में भी इसका इसका उपयोग किया जाता है। हर्बल, स्नान, सुगंधियों व सजावट के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं। माऊथ वास में भी इसे उपयोग में लाया जाता है।

आंकड़ों की नजर से
- 10 से 12 हजार रुपये प्रति एकड आती है खेती में लागत।
- 600 से 700 किलोग्राम फूल की होती है पैदावार।
-  35 से 40 हजार रुपये लीटर है इसके तेल की कीमत।
- 06 से 08 लीटर तेल एक एकड़ में हो जाता है तैयार।

प्रधानमंत्री कर चुके हैं संबोधित
औषधीय खेती के लिए किसान श्यामा चरन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डेढ़ साल पहले संबोधित कर सम्मानित कर चुके हैं। वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से उन्होंने श्यामा चरन से सीधे बातचीत की और अन्य किसानों के लिए प्रेरणा देने की बात कही।

इस तरह ली प्रेरणा
किसान श्यामा चरन का कहना है कि वे औषधीय गुणों से भरी खेती के लिए एक तो समय-समय पर विशेषज्ञों से सलाह लेते हैं। दूसरा इंटरनेट का भी सहारा लेते हैं। जिले में कहीं भी कैमोमाइल की खेती नहीं हो रही है। आस पड़ोस प्रदेश के सहयोगी किसानों से चर्चा की तो किसानों ने बताया कि इस खेती से अच्छा लाभ होता है फिर इस खेती को करने की प्रेरणा ली।

किसान श्यामा चरन के प्रयास काफी बेहतर हैं। उनके प्रयासों से औषधीय खेती जिले में हो रही है। अन्य किसानों को भी उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। विभाग उन्हें समय-समय पर प्रोत्साहित करता है--- सुबोध कुमार, उद्यान निरीक्षक।

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