Mukhtar Ansari Death: मुख्तार की मौत के बाद शुरू हुई वोट बैंक की राजनीति, सपा, बसपा और कांग्रेस मुसलमानों को साधने में जुटी, हिंदू वोट सहेज रही भाजपा

माफिया को ‘मुजाहिद’ बताते थे समर्थक, देश-विदेश के मौलानाओं से था रिश्ता

Mukhtar Ansari Death: मुख्तार की मौत के बाद शुरू हुई वोट बैंक की राजनीति, सपा, बसपा और  कांग्रेस मुसलमानों को साधने में जुटी, हिंदू वोट सहेज रही भाजपा

लखनऊ, अमृत विचार। माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद वोट बैंक मजबूत करने के लिए सियासत भी तेज हो गई है। सबसे पहले सवालों की बौछार सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने शुरू की, देखते ही देखते बसपा प्रमुख मायावती, कांग्रेस समेत तमाम दलों और नेताओं की ओर सरकार पर आरोप और जांच की मांग शुरू हो गई। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्ष ने जैसे ही मुसलमान वोट साधने की कवायद तेज की, भाजपा ने मुख्तार की जरायम की दुनिया गिनाने के साथ मारे गए लोगों की संवेदनाओं के जरिए हिंदू वोट बैंक सहेजना शुरू कर दिया है।

माफिया मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में सजा काट रहा था। गुरुवार देर शाम हार्ट अटैक से उसकी मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम के बाद शव को पुश्तैनी कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक करने की तैयारी शुरू हो गई है। जुमा की नमाज की वजह से प्रदेश में हाई अलर्ट रहा। मुख्तार अंसारी की मौत ऐसे समय में हुई है जब लोकसभा चुनाव की तपिश तेज है। मुख्तार की मौत के सहारे विपक्षी दलों की कोशिश मुस्लिम वोटों के विश्वास को जीतना है, क्योंकि मुख्तार मुस्लिम समुदाय से आते हैं। पूर्वांचल के कई जिलों में मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में हैं।

अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक मुस्लिम वोटों को सियासी संदेश देने के लिए ही मुख्तार की मौत पर सवाल खड़े कर सरकार को घेर रहे हैं। इसके बहाने यह बताने की कोशिश हो रही है कि मुख्तार अंसारी की मौत स्वाभाविक नहीं है बल्कि एक साजिश के तहत उसे मारा गया। ऐसा मुस्लिम समुदाय के लोग मान भी रहे हैं, जिसे समझते हुए विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं।

सरकार ने न्यायिक और मजिस्ट्रेटी दोनों जांच को हरी झंडी दे दी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर तमाम मंत्री और नेता मुख्तार की मौत को स्वाभाविक बताते हुए विपक्ष के आरोपों को राजनीतिक करार दे रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी से लेकर बड़े नेता विपक्ष के गढ़े जा रहे नैरेटिव को तोड़ने के बजाय खामोशी अख्तियार किए हैं। चुप रहते हुए बहुसंख्यकों को राजनीतिक मैसेज दिया जा रहा है। मगर सोशल मीडिया में खूब सियासी दांव-पेच चल रहे हैं।

19 साल जेल में रहते हुए मुख्तार ने लड़े तीन चुनाव

मुख्तार को सियासत विरासत में मिली है। उनके दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे। महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार उन के नाना थे। मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी कम्युनिस्ट नेता थे। इतना ही नहीं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं। मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने पिता की तरह कम्युनिस्ट पार्टी से सियासी पारी शुरू की थी, लेकिन मुख्तार ने बसपा के हाथी पर सवारी कर सियासत में कदम रखा।

पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की। 19 साल से अलग-अलग जेल में रहते हुए आखिरी तीन चुनाव जीते। बाद में मऊ की विरासत बेटे को सौंप दी। पूर्वांचल की राजनीति में मुख्तार अंसारी का उतना ही असर है जितना कि बिहार की राजनीति में शहाबुद्दीन का हुआ करता था। 2005 में बिहार की सत्ता के बदलते ही शहाबुद्दीन के बुरे दिन शुरू हो गए थे, वैसे ही उप्र. में 2017 में सत्ता बदलते ही मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कसने लगा था।

जहां दफन हैं कई पीढ़ियां, वहीं होगा सुपुर्द-ए-खाक होगा मुख्तार

गाजीपुर के कालीबाग कब्रिस्तान में मुख्तार अंसारी के परिवार में अब तक जितने भी पूर्वजों का इंतकाल हुआ है, सभी को दफनाया गया है। मुख्तार को भी इसी कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। विधायक मन्नू अंसारी ने शुक्रवार को कब्रिस्तान पहुंच कर साफ-सफाई कराई। वे फोन पर उस जगह के लिए सांसद अफजाल अंसारी से दिशा निर्देश ले रहे हैं, जहां मुख्तार के शव को दफनाया जाएगा। मुख्तार के अब्बू, अम्मी, चाचा और चाची की कब्रें भी यहीं हैं।

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