घरेलू हिंसा पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश, कहा- IPC की धारा 498 के तहत शिकायत दर्ज नहीं करा सकती दूसरी पत्नी

घरेलू हिंसा पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश, कहा- IPC की धारा 498 के तहत शिकायत दर्ज नहीं करा सकती दूसरी पत्नी

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि आईपीसी की धारा 498-ए (क्रूरता के अपराध के लिए) के प्रावधानों के अनुसार मामला तब स्थापित होता है, जब महिला ने अपने पति या उसके रिश्तेदारों के हाथों क्रूरता का सामना किया हो। 

हालांकि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 के तहत विवाह को वैध बनाने के लिए विवाह के समय किसी भी पक्ष के पास जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। अगर पहली पत्नी जीवित है तो किसी अन्य महिला के साथ विवाह वैध नहीं माना जाता है। ऐसी स्थिति में दूसरी पत्नी आईपीसी की धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज नहीं करा सकती है, क्योंकि कानून की दृष्टि में उनका वैवाहिक संबंध शून्य और अमान्य है। 

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर विवाह अमान्य है तो कथित पत्नी के कहने पर पति के खिलाफ आईपीसी की उक्त धारा के तहत मुकदमा पोषणीय नहीं होगा। इसके अलावा घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 3/4 के तहत पति पर मुकदमा चलाया जा सकता है, क्योंकि उक्त धारा दहेज लेने, देने या मांगने से संबंधित है। दहेज के लिए विवाह का निष्पादन आवश्यक नहीं है, केवल विवाह अनुबंध ही पर्याप्त है। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल की एकल पीठ ने अखिलेश केसरी और तीन अन्य की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर आईपीसी की धारा 498-ए के तहत चल रही कार्यवाही को रद्द करते हुए पारित किया। हालांकि याची के खिलाफ आईपीसी की अन्य धाराओं और घरेलू हिंसा की धारा 3/4 के तहत कार्यवाही बरकरार रखने का निर्देश दिया। 

सभी आरोपियों के खिलाफ पुलिस स्टेशन महिला थाना जिला सोनभद्र में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। मामले के अनुसार याची और शिकायतकर्ता पति-पत्नी रूप के रूप में रहते हुए तीन बच्चों के माता-पिता भी थे। शिकायतकर्ता के अनुसार याची ने उससे दहेज की मांग करते हुए उसके साथ मारपीट की, जिससे वर्तमान मामला उत्पन्न हुआ, जबकि कोर्ट ने माना कि याची ने अपनी पहली पत्नी से तलाक की डिक्री प्राप्त नहीं की थी, इस कारण शिकायतकर्ता के साथ उसका विवाह वैध नहीं माना जाएगा।

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