मजदूर दिवस: अमेठी में भुला दिए गए श्रमिक, सरकारी और गैर सरकारी तौर पर नहीं हुआ कोई कार्यक्रम

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Published By Jagat Mishra
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राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया पर भी मजदूरों को याद नहीं किया

रमन पाण्डेय/ अमेठी, अमृत विचार। मजदूर दिवस पर बुधवार को सरकारी और गैर सरकारी तौर पर कोई कार्यक्रम नहीं हुए। भाकपा माले-रेड‌ स्टार और वामपंथी और अम्बेडकरवादी सामाजिक संगठनों को छोड़ कर किसी भी राजनीतिक दल ने सोशल मीडिया पर भी मजदूरों को याद नहीं किया। कार्यस्थलों पर काम करने निर्माण श्रमिक मंहगाई से सबसे अधिक परेशान हैं। चुनाव में मजदूरों का ग़ुस्सा सत्ता में बैठे हुए दलों को नुक़सान कर सकता है।

बुधवार को मजदूर दिवस के अवसर पर अमृत विचार ने जिले में मजदूरों की स्थिति की पड़ताल की। रोज की तरह बुधवार को भी मजदूर हाड़ तोड़ मेहनत करते दिखे। रामलीला मैदान और गौरीगंज की सब्जी मंडी में काम की तलाश में आए सभी मजदूरों को काम नहीं मिल पाया, अधिकांश मजदूरों को बिना काम के वापस लौटना पड़ा।

राज्य सरकार से 250रु कम है मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी
विकास भवन से प्राप्त जानकारी के अनुसार  बुधवार को मनरेगा में 11263मजदूरों को काम मिला है। हीट वह और लू के मौसम में काम अधिकांश गांवों में बंद हैं, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के लाभार्थियों के मास्टर रोल फीड करके सभी विकास खंडों में मनरेगा की गाड़ी खींची जा रही है। बुधवार को काम प्राप्त करने वाले मजदूरों की सबसे कम संख्या अमेठी विकास खंड में और सबसे अधिक संख्या जामों विकास खंड में रही। दस विकास खंडों में मजदूरों की संख्या एक हजार से कम रही है। मनरेगा में श्रमिकों को भारत सरकार की ओर से प्रतिदिन 237रु मजदूरी दी जा रही है।राज्य सरकार की ओर से अकुशल श्रमिकों को 395रू, अर्द्धकुशल श्रमिकों को 435रू और कुशल श्रमिकों को 487रू न्यूनतम मजदूरी के भुगतान के निर्देश है। मजदूरों को काम देने वाले अधिकांश निजी प्रतिष्ठान और ठेकेदार चार सौ रुपए से अधिक मजदूरी नहीं दे रहे हैं।

मजदूर हितों पर चोट पर चोट मार रही सरकार -वासुदेव मौर्य
भाकपा माले रेड स्टार के वरिष्ठ नेता कामरेड वासुदेव मौर्य ने कहा कि एक मई को मजदूर दिवस शिकागो में 1886, में मजदूरों की ओर से काम के घंटों को कम करने के लिए शुरू किए गए ऐतिहासिक आंदोलन की स्मृति में मनाया जाता है ‌इस आन्दोलन में आठ मजदूर शहीद हुए थे।आज भी मजदूरों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। भारत का मजदूर वर्ग अपनी श्रमशक्ति को सस्ती दर पर बेचने के लिए अभिशप्त है। मशीनीकरण ने मजदूरों के हाथ के काम छीन लिए हैं। मौजूदा फासीवादी और पूंजीवादी सरकार  कारपोरेट पूंजी के साथ गठजोड़ करके मजदूरों के हितों पर लगातार चोट पर चोट मार रही है। लोक कल्याणकारी और मजदूर वर्ग के हितों को सुरक्षित करने वाली वैकल्पिक राजनीति के लिए भारत के मजदूरों को एक जुट होने की जरूरत है।

कोट-
डबल इंजन की सरकार मजदूरों हितों के लिए समर्पित है। पंजीकृत मजदूरों को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है।ईंट भट्ठों और अन्य प्रतिष्ठानों पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति सरकार गंभीर है।
-गोविंद यादव, सहायक श्रमायुक्त, अमेठी

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