रामपुर: बच्चों और बड़ों की आंखों का दुश्मन बन रहा मोबाइल फोन

रामपुर: बच्चों और बड़ों की आंखों का दुश्मन बन रहा मोबाइल फोन

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रामपुर, अमृत विचार। बच्चों और बड़ों की आंखों का सबसे बड़ा दुश्मन मोबाइल फोन बन रहा है। मई-जून की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं, बच्चों को मोबाइल से दूर रखें। क्योंकि छुट्टियों में बच्चे मोबाइल पर कई-कई घंटे गेम खेलते हैं। 

प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक डॉ. विक्रम लाल बताते हैं कि स्‍मार्टफोन देखने की आदत की वजह से लोगों की आंखों में सबसे ज्‍यादा रिफरेक्टिव एरर और मायोपिया की शिकायत देखने को मिल रही है और इन बीमारियों की वजह से बड़ों ही नहीं बच्‍चों को भी कम उम्र में चश्‍मा लग रहा है।  

कोरोना के दौरान वर्ष 2021 में बच्चों को स्मार्ट क्लासेज अटेंड कराने के लिए अभिभावकों ने बच्चों को स्मार्ट फोन खरीदकर दिए। इसके बाद से बच्‍चों और बड़ों दोनों का मोबाइल देखने का समय बढ़ गया है। उस समय ऑनलाइन पढ़ाई और ऑनलाइन वर्क की वजह से करीब छह से आठ घंटे तक बच्‍चे और बड़े लोग मोबाइल फोन स्‍क्रीन पर रहते थे। यह टाइम चार से छह घंटे हो गया है तो पेरेंट्स निश्चिंत हैं कि स्‍क्रीन टाइम कम हो गया है। 

जबकि यह अभी भी खतरे के निशान से ऊपर है, इतनी देर तक फोन देखने की वजह से विजन गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है और आंखों का नंबर भी बढ़ रहा है। नेत्र चिकित्सक बताते हैं कि अगर किसी का काम  फोन, लैपटॉप और कंप्‍यूटर पर है, तो उसको स्‍क्रीन टाइम कम करने की सलाह कैसे दी जा सकती है। फिर भी उनके लिए जरूरी है कि काम के बाद वे फोन न देखें या कम से कम देखें। इसके अलावा हर 20 मिनट से आधा घंटे के बीच पांच मिनट का गैप जरूर करें। इस दौरान स्‍क्रीन से आंखें हटाकर लंबी दूरी तक देखें।

बोले विशेषज्ञ-
 लगातार फोन इस्तेमाल करने से स्मार्ट फोन विजन सिंड्रोम जैसी परेशानी हो सकती है। जिसके कारण आंखों की रोशनी तक जा सकती है। इसलिए बच्चों के हाथों में मोबाइल नहीं दें उन्हें मोबाइल से दूर ही रखें। स्‍मार्टफोन देखने की आदत की वजह से आंखों में सबसे ज्‍यादा रिफरेक्टिव एरर और मायोपिया की शिकायत देखने को मिल रही है और इन बीमारियों की वजह से बड़ों ही नहीं बच्‍चों को भी कम उम्र में चश्‍मा लग रहा है।-डॉ. किशोरी लाल, डायरेक्टर डालमिया नेत्र चिकित्सालय

 मोबाइल चलाने से आंख की सिर्फ समीप का दिखाने वाली मांसपेशी ही सक्रिय रहती है जिसके कारण दूर का दिखाने वाली मासपेशी लंबे समय तक निष्क्रिय रहने के कारण कमजोर हो जाती है। जिसकी वजह से हमें दूर की वस्तुएं ठीक से दिखाई देना कम हो जाती हैं।  जिनको चश्मा लगा हुआ है वे ब्लू कट ग्लास का प्रयोग कर सकते हैं। यह आंखों को हानिकारक प्रकाश किरणों से बचाव करता है।-डॉ. विक्रम लाल, नेत्र चिकित्सक, डालमिया नेत्र चिकित्सालय

एक से डेढ़ साल से कम उम्र के बच्चों को दिनभर में बिल्कुल भी टीवी या मोबाइल स्क्रीन पर वक्त नहीं बिताना चाहिए। एक दिन में एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर वक्त बिताने से उनकी सेहत पर नकारात्मक असर पड़ता है।  डिप्रेशन, अनिद्रा, सिर दर्द, भूख न लगना व चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। बच्चे जितनी जल्दी आदत पकड़ते हैं, उतनी ही जल्दी छोड़ भी सकते हैं।-डॉ.  कुलदीप सिंह चौहान आयुर्वेद मनोचिकित्सक

30 प्रतिशत से अधिक बच्चे मायोपिया से ग्रस्त निकलते हैं। मायोपिया में नजदीक का दिखता है और दूर का दिखना बंद हो जाता है। मोबाइल देखने के कारण बच्चों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों के हाथों में मोबाइल नहीं दें और व्यस्क भी मोबाइल स्क्रीन पर कम समय बिताएं। स्मार्टफोन, टैबलेट्स और कंप्यूटर स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट रेडिएशन ब्राइटनेस आंखों के लिए बहुत नुकसानदायक हैं।-डॉ. शम्मी कपूर, नेत्र चिकित्सक, जिला अस्पताल रामपुर  

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