Exclusive: बूथ के रण से निकलेगा जीत का समीकरण, अखिलेश यादव के लिए समर्थन तो दिख रहा, लेकिन भाजपा का वोटर भी लामबंद

Exclusive: बूथ के रण से निकलेगा जीत का समीकरण, अखिलेश यादव के लिए समर्थन तो दिख रहा, लेकिन भाजपा का वोटर भी लामबंद

इरा अवस्थी, कन्नौज। भाजपा और सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी कन्नौज लोकसभा सीट पर अंतिम समय में हार-जीत के समीकरण करीबी संघर्ष की तरफ बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव माना जा रहा है कि यहां भाजपा प्रत्याशी सांसद सुब्रत पाठक से पिछले चुनाव में मिली नजदीकी हार का बदला चुकाने उतरे हैं। 

2019 के चुनाव में सुब्रत ने सपा अध्यक्ष की पत्नी डिंपल यादव को 12 हजार मतों से हरा दिया था। इस बार भी यहां भाजपा और सपा में सीधी और कांटे की टक्कर नजर आ रही है, कोई मुकाबला भाजपा, तो कोई सपा के पक्ष में जाता बता रहा है, ऐसे में माना जा रहा है कि जातीय समीकरणों के साथ जो बूथ जीतेगा, उसके ही चुनाव जीतने की संभावनाएं बलवती हो जाएंगी।  

दो दिन पहले केके इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित प्रत्याशी अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की सभा में भीड़ उमड़ी थी, तो प्रचार के अंतिम दिन शनिवार को भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में झींझक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हुंकार भरी। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक जोर लगा गए हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश के यहां से चौथी बार चुनाव मैदान में हैं। उनके लिए यह सीट नाक का सवाल है। 

ऐसे में राष्ट्रीय नेता के रूप में राहुल का कन्नौज आना सपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। इस सभा में राहुल गांधी का संविधान को लेकर जनता को उद्वेलित करने का प्रयास अखिलेश का कन्नौज से पुराना नाता जोड़कर लोगों से सीधे जुड़ने का प्रयास और कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी व आप सांसद संजय सिंह द्वारा सपा अध्यक्ष के अपमान की बात उठाकर जातीय समीकरण बैठाने की कोशिश की चर्चा गली और चौराहों में गूंज रही है। 

इस हाल में भले ही समीकरण थोड़े गड़बड़ाते दिख रहे हों, लेकिन भारतीय जनता पार्टी किसी भी कीमत पर यह सीट हाथ से निकलने नहीं देना चाहती है। शनिवार को शहर में बड़ी बाइक रैली निकालकर पार्टी ने अपनी ताकत दिखाई। माना जा रहा है कि लड़ाई कांटे की है और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। 

भाजपाइयों का भितरघात कर सकता नुकसान

प्रचार बंद होने के साथ ही भाजपा के छाते के नीचे आक्रोश पनपने की चर्चा जोर पकड़ती सुनाई दी। सांसद व मौजूदा प्रत्याशी द्वारा पिछले पांच साल तक की गई अनदेखी व विकास के प्रति बेरुखी से कुछ निष्ठावान भाजपाइयों की  नाराजगी को हवा देने की कोशिश की गई। हालांकि भाजपा नेताओं ने ऐसी खबरों को बकवास बताकर खारिज किया और कहा कि पूरा संगठन एकजुट होकर सुब्रत पाठक की जीत सुनिश्चित करने में लगा है। 

जातीय गणित का जोड़-तोड़ 

चुनाव कोई भी हो मुद्दों से बात शुरू होती है और अंत में पूरा दारोमदार जाति और धर्म पर टिक जाता है। इस चुनाव में भी जाति और धर्म का गणित किसी का खेल बनाएगा तो किसी का बिगाड़ने का काम करेगा। समाजवादी पार्टी गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ रही है। 

कांग्रेस के साथ होने तथा  संविधान की रक्षा का मुद्दा उठाए जाने से दलित वोटर गोलबंद होता नजर आ रहा है।  ठाकुर और पाल बिरादरी के मतों में सेंध लगने की बात कही जा रही है। यादव और मुस्लिम मतदाता पहले ही अखिलेश की जीत के लिए मुखर है। ऐसे में ब्राह्मण और ओबीसी मतदाताओं का बंटवारा परिणाम पर असर डाल सकता है।

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