बाराबंकी: पिता ने पुत्र की अर्थी को दिया कांधा तो फट पड़ा कलेजा, गमगीन माहौल में मृतकों का हुआ अंतिम संस्कार

नहीं जले घरों के चूल्हे, शोक में डूबा रहा पूरा गांव

बाराबंकी: पिता ने पुत्र की अर्थी को दिया कांधा तो फट पड़ा कलेजा, गमगीन माहौल में मृतकों का हुआ अंतिम संस्कार

बाराबंकी, अमृत विचार। कुटी गांव में अजीब सा सन्नाटा पसरा था, सुबह की शांति दो युवाओं की मृत देह के पास बैठे परिजनों के विलाप से भंग हो चुकी थी, कई घरों में चूल्हा नहीं जला। हर किसी को जो भी नीतेश व सुनील को जानता था, इस घटना को लेकर गहरा अफसोस था। दोनों के अंतिम संस्कार के दौरान पुलिस बल मौजूद रहा। 

अभी उम्र ही क्या थी, परिवार भी पूरा नहीं हुआ, अरे अभी तो सुनील का गौना भी नहीं आया था जैसी दुखद चर्चा ग्रामीणों के बीच थी, एक ओर मृत देह के पास बैठे माता पिता अश्रुपूरित नेत्रों से अपने लाल को निहार रहे थे तो दोनों युवाओं की पत्नियां बेसुध हो गईं। रूदन क्रंदन के दुखदायी माहौल के बीच अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी हुई, बड़े ही भारी मन से भाईयों, अपनों व पिता ने सुपूत को कांधा देकर अंतिम यात्रा को रवाना किया। भारी भीड़ के बीच दोनों युवाओं की मृत देह को आग के हवाले कर दिया गया। गुजरे दिन जहांगीराबाद थाना क्षेत्र के कुटी गांव निवासी चचेरे भाई नीतेश, सुनील के अलावा अंबेडकरनगर निवासी धर्मेन्द्र की एक के बाद एक डीजल टैंक में दम घुटने से मौत हो गई थी। 

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अनहोनी तीनों के साथ ऐसा रुख अपनाएगी यह कोई नहीं जानता था। घटना के बाद तीनों शव पोस्टमार्टम पहुंचे तो धर्मेन्द्र को छोड़कर नीतेश व सुनील के पिता बेसुध हो गए थे। उधर रात में ही पोस्टमार्टम के बाद शव घर पहुंचे तो वह दृश्य सख्त कलेजे वाले का भी दिल दहलाने के लिए काफी था। घटना की जानकारी होते ही मृतकों के सभी परिजन एकत्र हो गए। ग्रामीण भी माहौल देख खुद के आंसू रोक नहीं सके। रोते बिलखते रात बीती, तो सुबह धीरे धीरे अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू हो गई। रिश्तेदारों व अपनोें के आते ही रस्में पूरी की गईं। आखिरकार अंतिम संस्कार भी हाे गया। पता चला कि मृतक सुनील की ससुराल अंबेडकरनगर जिले के रहने वाले मृतक धर्मेन्द्र के गांव में ही है। वहीं आगामी 7 सितंबर को उसका गौना आना था। 

बिना सुरक्षा उपाय क्यों उतरे मजदूर?
फैक्ट्री के डीजल टैंक में तीन की दम घुटने से मौत की घटना के बाद यहां के महाप्रबंधक अशोक द्विवदी का बयान सामने आया कि तीनों मृतक कुशल श्रमिक थे। उन्होंने लापरवाही बरती, जिससे यह घटना हुई। उनके कथन के अनुसार लापरवाही नीतेश, सुनील व धर्मेंद्र की थी, तो प्रबंधन की जिम्मेदारी क्या यह नहीं थी कि तीनों को उतरने से पहले सावधानी बरतने की सलाह दी जाती। या यह मान लिया जाए कि वह हमेशा से ही बिना सुरक्षा उपाय अपनाए ही टैंक में उतर जाते थे। अगर फैक्ट्री बंद रहने की स्थिति या फिर लंबे समय बाद डीजल टैंक खोले जाने के हालात भी थे, तो सबसे पहले टैंक के आक्सीजन लेवल की जांच होनी चाहिए थी। 

कर्मी को गैस मास्क व बेल्ट पहनाकर उतारा जाना चाहिए। इसके साथ ही टैंक के साथ शौचालय टैंक की तरह एक गैस पाइप भी लगा होना चाहिए, जिससे टैंक के भीतर बनती जानलेवा गैस निकलती रहे। एक मानक के अनुसार भूमिगत टैंक होने की दशा में उसकी हालत एक मिनी पेट्रोल पंप जैसी रहती है, जहां सुरक्षा के सभी उपाय अपनाए जाते हैं। जानकार बताते हैं कि यदि टैंक के भीतर बहुत कम तेल बचा है तो गैस का बनना तय है। इसका एक उपाय यह कि टैंक को बिल्कुल खाली रहने न दिया जाए। इन हालात में सिर्फ मृतक ही दोषी हैं, कहना गलत होगा।

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