पहाड़ों में खिलने वाला बुरांश, अब अर्थव्यवस्था को खिला रहा 

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Published By Pawan Singh Kunwar
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पवन सिंह कुंवर, हल्द्वानी 
अमृत विचार : उत्तराखंड के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में खिलने वाला बुरांश अब केवल प्रकृति की खूबसूरती तक सीमित नहीं रह गया है। यह अब गांवों की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाला एक सशक्त माध्यम बन गया है। इसकी पंखुड़ियों से बनाई जाने वाली बुरांश की चाय न सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक है, बल्कि हजारों ग्रामीणों के लिए रोजगार का साधन भी बनती जा रही है। पहाड़ों में वर्षों से पूजा और पारंपरिक औषधि के रूप में प्रयोग होने वाला बुरांश अब हर्बल उत्पादों के राष्ट्रीय बाजार में अपनी जगह बना चुका है। 


विशेष रूप से दिल्ली, मुंबई, बंग्लुरु जैसे महानगरों में इसे हर्बल सुपरड्रिंकके रूप में पहचान मिल रही है। बुरांश की पंखुड़ियों से तैयार चाय में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और हृदय के लिए लाभकारी तत्व पाए जाते हैं। यह चाय रक्तचाप को नियंत्रित रखने, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और थकान को दूर करने में प्रभावी मानी जाती है। इसके स्वाद और स्वास्थ्य लाभों ने इसे शहरी जीवनशैली में तेजी से लोकप्रिय बना दिया है। बुरांश की चाय के बढ़ते चलन ने उत्तराखंड के कई गांवों में स्वरोजगार के नए द्वार खोल दिए हैं। 


गांव की महिलाएं अब बुरांश के फूलों को इकट्ठा करती हैं, उनकी सफाई और सुखाने की प्रक्रिया के बाद उन्हें चाय के रूप में पैक किया जाता है। यह पूरी तरह जैविक प्रक्रिया है, जिसमें कोई रसायन नहीं होता। अक्सर बाजारों में बुरांश का स्क्वैश तो मिल जाता है, लेकिन उसमें रासायनिक मिलावट होती है। इसके विपरीत, बुरांश की चाय पूरी तरह शुद्ध, प्राकृतिक और स्वास्थ्यवर्धक है। इसकी कीमत 50 रुपये से शुरू होती है।
 मानिक मेहरा, निवासी  निगलाट, नैनीताल


सरकार और एनजीओ दे भी रहे बढ़ावा 
राज्य सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन भी इस पहल को मजबूत कर रहे हैं। स्थानीय स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण, पैकेजिंग और मार्केटिंग की मदद दी जा रही है, जिससे यह उत्पाद न केवल घरेलू, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी पहुंच सके। आज बुरांश की चाय केवल एक औषधीय पेय नहीं, बल्कि उत्तराखंड की प्राकृतिक विरासत, पारंपरिक ज्ञान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुकी है। यह पहाड़ों की गोद से निकलकर देश और दुनिया में अपनी खुशबू फैला रही है।