गलती से मिली सीख बनी सच्ची पहचान

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
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वर्ष 1980 की बात है। पिता चंपावत जिले के सुदूर गांव तरकुली के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। मैं तब कक्षा एक में था। शाम के समय पिताजी खाना बनाने की तैयारी करते और मैं पास ही बैठकर बीबीसी रेडियो पर समाचार लगाया करता। उन्होंने मुझे एक एटलस देकर कहा कि समाचार में जिस देश का नाम आए, उसे नक्शे पर खोजकर दिखाना है। यह रोजाना का क्रम था। एक दिन वेस्टइंडीज के क्रिकेट मैच की चर्चा चल रही थी। मैं नक्शे में उसे ढूंढने लगा, पर कहीं नहीं मिला, जब मैंने पिताजी को बताया कि यह देश नहीं मिल रहा, तो उन्होंने गुस्से में एक थप्पड़ लगा दिया। 

बाद में जब खुद उन्हें भी वेस्टइंडीज नहीं मिला, तो वे शर्मिंदा हुए। अगले दिन वे पास के जूनियर हाईस्कूल गए, जानकारी जुटाई और विद्यालय में सभी के साथ साझा की। तभी उन्होंने सिखाया कि गलती मानना और उससे सीखना ही सच्चे शिक्षक की पहचान है। वेस्टइंडीज कोई देश नहीं, बल्कि कैरेबियाई द्वीपों का समूह है, जो खेलों में एक इकाई के रूप में भाग लेते हैं। यह ज्ञान तो बाद में मिला, पर उस घटना ने मुझे सीख दी कि सच्ची शिक्षा वही है, जो जिज्ञासा को जीवित रखे और सत्य की खोज में ईमानदारी बरते।

एक और घटना मेरे बचपन की यादों में दर्ज है। जब मैं कक्षा तीन में था, पिताजी ने मुझे ब्लैकबोर्ड पर गणित का सवाल हल करने को कहा-एक भैंस का मूल्य सात सौ पच्चीस रुपये है। मैंने लिखा 70025 रुपये, उस समय समझ नहीं पाया कि सात सौ पच्चीस का अर्थ 725 होता है, न कि सत्तर हजार पच्चीस। गलती पर डांट और कुछ थप्पड़ भी पड़े, पर बाद में वही गलती मेरे जीवन की सबसे बड़ी सीख बनी। आज, जब मैं स्वयं गणित का प्राध्यापक हूं, तो समझ पाता हूं कि बच्चों को सिखाने का अर्थ सिर्फ सही उत्तर दिलाना नहीं, बल्कि उन्हें समझाने और दृश्य रूप में दिखाने का हुनर सिखाना है। शिक्षा संस्थानों में आज भी कई चुनौतियां हैं, लेकिन यदि हम ईमानदारी और लगन से अपना कार्य करते रहें, अपनी गलतियों से सीखते रहें और उस सीख को साझा करें तो यही सच्ची शिक्षा है।

डॉ. नरेंद्र सिंह सिजवाली
असिस्टेंट प्रोफेसर गणित 
एमबीपीजी कॉलेज, हल्द्वानी