एक ही मंदिर में सारे देवी-देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा क्यों

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Published By Anjali Singh
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पहले के समय में आपने देखा होगा कि शहर में हनुमान जी का मंदिर, मां काली का, मां दुर्गा का मंदिर, भैरव का मंदिर, भगवान शिव का, भगवान विष्णु लक्ष्मी का आदि देवी-देवताओं के नाम पर मंदिरों की पहचान हुआ करती थी और आदमी अपनी श्रद्धा के अनुसार अपना ईष्ट, अपना देवता और अपनी देवी की पूजा करता था, एक मंदिर में एक ही देवता अधिक से अधिक दो देवताओं की स्थापना होती थी।  वर्तमान समय में एक मंदिर में सारे देवी -देवताओं का निवास और प्राण प्रतिष्ठा की जाने लगी, जिसके कारण कई बार साधक भटक जाता है कि किसकी पूजा करें और किसकी न करें, किसका भोग लगाएं और किसका न लगाएं?

क्या पता कौन सा देवता नाराज हो जाए, इस डर के कारण वह एक ही भोग सारे देवताओं को लगता फिरता है ताकि उसकी साधना उसकी आराधना से सभी देवी देवता प्रसन्न हो जाएं और उसको उसके परिवार को तरक्की उन्नति खुशहाली का आशीर्वाद दें। एक बार पूजा करने बैठता है, तो सारे देवी-देवताओं कि माला फेरता है और आरती गाता है, फिर भी इस दुविधा में रहता है कि पता नहीं कि उसकी प्रार्थना स्वीकार हुई या नहीं? अंत में इसका परिणाम यह निकलता है कि कई बार उसे अपनी पूजा में, अपनी साधना में, सफलता नहीं मिलती और धीरे-धीरे इस स्थिति में उसका अपने भगवान के ऊपर से, देवी-देवताओं के ऊपर से, विश्वास उठने लगता है। 

इसका मुख्य कारण यह है कि उसे किसी भी एक देवी-देवता पर विश्वास नहीं है, कभी इसको पूजता है, कभी उसको पूजता है, कभी इसको प्रसाद चढ़ाता है, कभी उसको प्रसाद चढ़ाता है, कभी किसी देवता को अपना ईष्ट बनाता है, कभी उसे अपना आराध्य बनाता है और कई बार इतना भ्रमित हो जाता है कि उसे न तो अपनी पूजा पर भरोसा रहता न ईश्वर की शक्ति पर? आपने हमेशा से देखा होगा, बड़े-बड़े साधकों को पढ़ा और सुना होगा,

उन्होंने एक देवी या देवता की साधना करके पर ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त कर लिया, उदाहरण के तौर पर महाकवि वाल्मीकि, जिन्होंने मरा-मरा जपकर पूर्ण ब्रह्म को प्राप्त कर लिया। हनुमान जी ने राम-राम जप कर साक्षात राम को पा लिया, नीम करोली बाबा ने हनुमान जी की साधना करके उनकी शक्ति प्राप्त कर ली, परमहंस जी महाराज ने महाकाली की सेवा करके साक्षात उनका साक्षात्कार किया। सुदामा ने और मीरा ने कृष्णा-कृष्णा कृष्ण को पा लिया। ऐसे उदाहरणों से वेद और पुराण भरे पड़े हैं। 

इसलिए मेरा आप सभी भक्तों से अनुरोध है कि एक देवता, एक देवी या एक ईश्वर की आराधना करें, क्योंकि ईश्वर एक ही है, उसके रूप अनेक हैं, आपको जिसके प्रति श्रद्धा और विश्वास महसूस हो, उसी को अपना ईष्ट अपना आराध्य बना लीजिए और मन-क्रम-वचन और पूर्ण-श्रद्धा-विश्वास के साथ उनकी साधना कीजिए, निश्चित रूप से जीवन में सफलता के द्वार खुल जाएंगे, जीवन से सारे कष्ट-क्लेश खत्म हो जाएंगे, तरक्की और उन्नति के रास्ते खुल जाएंगे, संसार के सभी भौतिक सुखों और भोगों के साथ-साथ मोक्ष भी प्राप्त होगा।

एक ईष्ट, एक गुरु, एक तंत्र, एक मंत्र, एक यंत्र की पद्धति पर चलिए, यदि आप ऐसा नहीं करते हैं और बार-बार उपरोक्त चीजों को बदलते हैं, तो जीवन में कभी भी आपको सफलता नहीं मिल सकती। आपकी तरक्की उन्नति नहीं होगी, दुर्भाग्य और असफलता, कभी आपका पीछा नहीं छोड़ेगी और आप भ्रम कि इस स्थिति में, यह नहीं जान पाएंगे कि क्या सही है और क्या गलत है? इसलिए अपनी श्रद्धा और विश्वास, एक देवी, एक देवता, एक ईश्वर, एक गुरु, एक तंत्र, एक मंत्र, एक यंत्र पर पूर्ण रूप से पूरी दृढ़ता के साथ विश्वास रखिए और मन में सोचिए कि एक ही की साधना आपको परमात्मा का एकाकर करा देगी, यही अध्यात्म का सच्चा मार्ग है।

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