राजस्थान के किले जीवंत संस्कृति की विरासत
राजस्थान अपनी समृद्ध और जीवंत सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, जिसमें भव्य किले और महल, अद्वितीय कलाकृतियां, हस्तशिल्प और 'घूमर' व 'कालबेलिया' जैसे प्रसिद्ध लोक नृत्य इसे पूरी दुनिया में चर्चित करते हैं। यहां के किले स्थापत्य भव्यता, जटिल नक्काशी और विभिन्न स्थापत्य शैलियों के मिश्रण के लिए भी जाने जाते हैं। यहां कई ऐसे किले हैं, जो भारत नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटकों के बीच खासे प्रसिद्ध हैं। उन्हें देखने के लिए हर मौसम में विदेशों से बड़े पैमाने पर पर्यटक आते हैं। राजस्थान के जैसलमेर शहर में एक किला है, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र है। त्रिकुटा हिल पर बने जैसलमेर किला अपनी बेहतरीन संरचना के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। अगर आप घूमने के शौकीन हैं, तो इस किले को देखने जरूर जाएं।--- डॉ. विकास शुक्ला, कानपुर
1156 में स्थापित हुआ किला
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जैसलमेर किले की स्थापना वर्ष 1156 में भाटी राजपूत महाराजा रावल जैसल ने कराया था। 1294 के आसपास इस साम्राज्य पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था और उसकी सेना ने इसे करीब नौ साल तक घेर कर रखा। 1551 के आसपास रावल लूनाकरण के शासन के दौरान, किले पर अमीर अली ने हमला किया था।
इसके बाद ही तत्कालीन महाराजा ने अपनी पुत्री की शादी अकबर से कर दी थी। मुगलों का संरक्षण मिलने से किला बच गया था। यह किला दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तान में स्थापित किला है। यह राजस्थान का दूसरा अति प्राचीन किला भी है। यह किला 1762 तक मुगलों के नियंत्रण में रहा, उसके बाद महारावल मूलराज ने किले पर नियंत्रण कर लिया। दिसंबर 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी और महारावल मूलराज के बीच संधि हुई थी। इसमें तय हुआ था कि किले का नियंत्रण मूलराज के पास ही रहेगा। 1820 में मूलराज की मृत्यु के बाद, उनके पोते गज सिंह को किले का नियंत्रण विरासत में मिला था।
पीले बलुआ पत्थर से निर्मित यह किला यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। पर्यटक विशेष रूप से यहां सूर्यास्त देखने आते हैं। सूर्य की किरणें पूरे किले की शोभा बढ़ातीं हैं। पीली दीवारें, सूरज की किरणों से मानों नहा सी जाती हैं। इस खूबसूरती के कारण ही इसे सोनार किला या स्वर्ण किला भी कहा जाता है। यहां कुछ हवेलियां भी हैं, जिनमें पटवाओं की हवेली, नथमल की हवेली, सलाम सिंह की हवेली शामिल हैं। इस किले में राजपुताना और इस्लामी शैली एक साथ दिखती है।
उदयपुर का किला
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उदयपुर का किला अब सिटी पैलेस के नाम से जाना जाता है। यह पिछोला झील के किनारे स्थित है। इसका निर्माण 16 वीं शताब्दी में राजा उदयसिंह द्वितीय ने कराया था। इसके अंदर कई भव्य महल व एक भगवान जगदीश का मंदिर भी है।
चित्तौड़ किला
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ऐतिहासिक किले का निर्माण मौर्य वंश के राजा चित्रांगद ने सातवीं शताब्दी में करवाया था। इस किले पर मौर्य, गुहिलवंश, परमार, सोलंकी आदि अनेक वंशों ने शासन किया। 1174 ई. के आसपास पुनः गुहिलवांशियों ने इस पर अधिकार कर लिया था। इस किले को 2013 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान दिया गया है।
मेहरानगढ़ किला
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जोधपुर में स्थित मेहरानगढ़ किला 124 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। इसकी नींव जोधपुर के 15 वें शासक राव जोधा ने 1459 में रखी थी। बाद महाराज जसवंत सिंह ने 1638 से 78 के मध्य किले के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। 10 किलोमीटर लंबी दीवार किले को घेरे हुए है। किले के अंदर कई भव्य महल स्थित हैं, जिनमें मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना आदि शामिल हैं।
सिटी पैलेस
महाराजा सवाई जयसिंह ने 1729 से 1732 के मध्य किले का निर्माण कराया था, अब इसे सिटी पैलेस के रूप में जाना जाता है। यह एक राजस्थानी व मुगल शैलियों की मिश्रित रचना है। यहां घूमने के लिए बड़े पैमाने पर पर्यटक आते हैं।
आमेर का किला
जयपुर से 11 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी के ऊपर आमेर का किला स्थित है। इसकी स्थापना का कार्य 1592 में राजा मानसिंह प्रथम ने करवाया था। यह लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना है, जिसमें हिंदू और मुगल वास्तुकला का मिश्रण दिखता है। किले के प्रमुख आकर्षणों में शीश महल (आईना महल), दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, और सुख निवास शामिल हैं।
उम्मेद भवन
उम्मेद भवन राजस्थान की शान है। इसका निर्माण राठौर राजवंश के शासक राजा उम्मेद सिंह ने बनवाया था। इसके निर्माण की योजना तैयार करने के लिए वास्तुकार हेनरी लोनचेस्टर को चुना गया था। महल के तीन हिस्से हैं। एक में उम्मेद होटल है, तो दूसरा हिस्सा शाही परिवार के पास है, जबकि तीसरे हिस्से में संग्रहालय स्थापित है।
हवा महल
जयपुर स्थित जल महल के समीप ही हवा महल है। 799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने इसकी स्थापना कराई थी। यह एक पांच मंजिला इमारत है। इसका आकार मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखता है।
रणथंभौर किला
सवाई माधोपुर में स्थित रणथंभौर किला की स्थापना राजा सज्जन वीर सिंह ने कराया था। दो पहाड़ियों के मध्य में स्थित यह किला अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इस दुर्ग की सबसे अधिक ख्याति हम्मीर देव चौहान के शासनकाल 1282-1301 में रही। 1301 में इस किले पर अलाउद्दीन खिलजी ने कब्जा कर लिया। इसके पश्चात 18 वीं सदी के मध्य तक इस पर मुगलों का अधिकार रहा।
