मेरा शहर मेरी प्रेरणा : परंपरा बदली, पहचान नहीं...नई अर्थव्यवस्था का मजबूत केंद्र बरेली
बरेली। एक समय था जब कुमाऊं की रोजमर्रा की जरूरतों की सबसे बड़ी सप्लाई बरेली से ही पूरी होती थी। हल्द्वानी, काठगोदाम, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ तक हर तरह का सामान अनाज, कपड़ा, दवाइयां, मसाले, निर्माण सामग्री बरेली की मंडियों से ही निकलता था। पहाड़ों की रोजमर्रा की जरूरतें, निर्माण सामग्री, कपड़ा, दवाइयां, मसाले, अनाज, मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुएं बरेली की मंडियों से ही निकलकर काठगोदाम और हल्द्वानी होते हुए पहाड़ों तक पहुंचती थीं। लंबे समय तक यह संबंध इतना मजबूत था कि बरेली को कुमाऊं की आर्थिक जीवन-रेखा तक कहा जाता था।
वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, तो वह पुरानी व्यापारिक परंपरा में बदलाव आने लगा, जिसके बाद कुमाऊं के बाजार अपने नए व्यापारिक केंद्र खोजने लगे और व्यापार का एक बड़ा हिस्सा बरेली की पकड़ से दूर चला गया। कई लोगों को लगा कि इससे बरेली की बाजार पहचान कमजोर हो जाएगी। लेकिन बरेली की असली ताकत केवल उसकी भौगोलिक स्थिति नहीं, बल्कि उसकी अनुकूलन क्षमता है। बरेली ने अपनी पहचान बनाए रखने के लिए नए क्षेत्रों में खुद को और मजबूत किया। आज यह शहर फिर से पश्चिम यूपी की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार बनकर उभर रहा है।
एक समय था जब कुमाऊं के व्यापारिक केंद्र हल्द्वानी और काठगोदाम बरेली की मंडियों पर निर्भर थे। पहाड़ों में निर्माण कार्य से लेकर त्योहारों और शादी-विवाह की सजावटी चीजें, हर तरह का सामान बरेली से जाता था। इस अवधि में बरेली की ग्रेन मंडी, खैराती लाल मार्केट, सर्राफा मार्केट, सिविल लाइन्स और कोहाड़ापीर जैसे इलाकों की गिनती उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण व्यावसायिक क्षेत्रों में होती थी। सामान की खरीद-फरोख्त का रूटीन इतना तयशुदा था कि बरेली के बाजारों पर कुमाऊं की मांग सीधा असर डालती थी। पहाड़ों के लोगों का बरेली सिर्फ व्यापार के लिए नहीं, बल्कि रोजगार, शिक्षा, खरीदारी और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आना आम था।
उत्तराखंड के राज्य बनने के बाद दो बड़े बदलाव हुए। पहला प्रशासनिक और कर व्यवस्था का बंटवारा हुआ और दूसरा कुमाऊं में व्यापारिक केंद्रों का विकास होने लगा। नई राज्य सरकार ने हल्द्वानी, रुद्रपुर, काशीपुर और पंतनगर जैसे क्षेत्रों को विकसित किया। इससे स्वाभाविक रूप से बरेली पर निर्भरता घटने लगी। पहले जहां पहाड़ों की जरुरत के लिए हर बड़े व्यापारी को बरेली का रुख करना पड़ता था, वहीं अब हल्द्वानी और रुद्रपुर में ही बड़े गोदाम, मंडियां और कारोबारी प्रतिष्ठान बनने लगे। टैक्स संरचना बदलने से बरेली से माल भेजना अब पहले जैसा सहज नहीं रह गया। इन कारणों से बरेली का वह पारंपरिक एकाधिकार धीरे-धीरे टूटने लगा। यह बदलाव पूरी तरह स्वाभाविक था।
कुमाऊं का बाजार बरेली से काफी दूर होता चला गया। लेकिन बरेली की असली क्षमता इसी मोड़ पर सामने आई। शहर ने बदलते समय के साथ खुद को ढाल लिया और नए क्षेत्रों में व्यापारिक विकास की राह को तलाशना शुरू किया और एक नई रफ्तार के साथ नई ऊंचाई पाया। बरेली की पुरानी मंडियों ने खुद को आधुनिक व्यापारिक जरूरतों के अनुसार ढाला। अनाज, फल-सब्जी और किराना व्यापार आज भी क्षेत्र में मजबूत स्तंभ हैं। इसके अलावा कपड़ा और सर्राफा बाजार का फैलाव बरेली को पश्चिम यूपी का प्रमुख रिटेल और थोक केंद्र बनाए रखता है।
उप्र उद्योग व्यापार मंडल के संयुक्त महामंत्री राजेश जसोरिया उत्तराखंड के राज्य बनने के बाद बरेली के व्यापार में 20 से 25 प्रतिशत की गिरावट आई। समय के साथ बरेली ने नए केंद्रों की खोज की और खुद को भी बदला लेकिन अपनी परंपरा से दूर नहीं हुआ। बरेली आसपास के सभी नए बाजारों की खोज की और उनमें अपनी गहरी पैठ बनाकर अपनी व्यापारिक क्षमता को साबित किया।
आईआईए बरेली के सचिव रजत मल्होत्रा ने बताया कि एक थे, तब हमारा काम एक ही सिस्टम से होता था। उस समय काम आसान था, लेकिन नए ग्राहकों तक पहुंच सीमित थी। जब उत्तराखंड राज्य बना तो हमें दोनों जगहों पर अलग-अलग काम बढ़ाने का मौका मिला। अब हमारे पास दोनों राज्यों के लिए सप्लाई चैन, तेज डिलीवरी मौजूद हैं।
ज्वेलर्स एंड बुलियन ए. के अध्यक्ष संदीप अग्रवाल मिंटू ने बताया कि उत्तराखंड के राज्य बनने के बाद से बरेली के सर्राफा करोबार में काफी बदलाव आया है, जहां कुमाऊं का मुख्य बाजार बरेली था वहीं आज बरेली अन्य क्षेत्रों के लिए भी बड़ा बाजार बन गया है। कुमाऊं को अलग हुए 25 साल हो गए, लेकिन अब भी कारोबार चल रहा है। बरेली ने खुद को बदला और नए बाजारों की तलाश की।
चेयरमैन उप्रदेश व्यापार मंडल दर्शनलाल भाटिया ने बताया कि 25 साल पहले बरेली से अलग हुए उत्तराखंड के कपड़ों की जरूरतों को बरेली ही पूरा करता रहा, लेकिन उत्तराखंड के राज्य बनने के बाद से यहां के कपड़ा कारोबार में गिरावट तो आई लेकिन दिल्ली और लखनऊ के मध्य होने से बरेली को अन्य स्थानों के व्यापारी मिले, जिससे कपड़ा उद्योग पर कोई विेशेष असर नहीं पड़ा।
