मौलिक अधिकारों का उल्लंघन पर ही रिट याचिका पोषणीय... उपभोक्ता आयोग के फैसले के विरुद्ध याचिकाओं को लेकर HC का महत्वपूर्ण निर्णय

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Published By Muskan Dixit
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विधि संवाददाता, लखनऊ, अमृत विचार: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उपभोक्ता आयोगों के निर्णयों के विरुद्ध रिट याचिका की पोषणीयता पर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि ऐसे निर्णयों को हाईकोर्ट के समक्ष संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत तभी चुनौती दी जा सकती है, जब उक्त निर्णय से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो अथवा ऐसे निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत हों।

यह निर्णय न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ़ व न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने साहू लैंड डेवलपर्स की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याचिका में जिला, राज्य व राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों के आदेशों को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया कि बीकेटी तहसील के शिवपुरी ग्राम में साहू सिटी फेज- टू नाम से 29 अगस्त 2012 को आवासीय भूमि योजना लॉन्च की थी। जिसमें तमाम उपभोक्ताओं ने प्लॉट बुक किए, लेकिन 5 जुलाई 2013 से गांव में चकबंदी शुरू हो गई। जिसकी वजह से याची कंपनी उपभोक्ताओं को जमीनों पर कब्जे नहीं दे सकी। कहा गया कि तीन उपभोक्ताओं ने जिला उपभोक्ता आयोग में परिवाद दर्ज कराया जिस पर जिला उपभोक्ता आयोग ने नौ प्रतिशत ब्याज की दर के साथ उक्त तीन उपभोक्ताओं की बुकिंग धनराशि वापस करने का आदेश दिया। तत्पश्चात उपभोक्ताओं ने ब्याज की दर बढ़ाने व कंपनी ने जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश को निरस्त करने के लिए अलग-अलग अपीलें दाखिल की। जिन पर फैसला देते हुए राज्य आयोग ने उपभोक्ताओं की अपीलें मंजूर कर लीं तथा कंपनी की अपील खारिज हो गई। इसके बाद कंपनी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दाखिल किया जो कि वहां से भी खारिज हो गई। कहा गया कि 4 जनवरी 2025 को संबंधित तहसीलदार ने कंपनी को डिमांड नोटिस जारी किया व 18 फरवरी 2025 को संबंधित एसडीएम ने कंपनी के बैंक खाते अटैच कर दिए। कोर्ट ने मामले में विस्तृत निर्णय पारित करते हुए कहा कि कंपनी ने आज तक उक्त तीन उपभोक्ताओं को जमीनों पर कब्जे नहीं दिए हैं। चकबंदी की जानकारी कंपनी को थी अथवा नहीं, यह तथ्य का जिसे रिट याचिका के क्षेत्राधिकार में नहीं तय किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में याची के मौलिक अधिकारों का अथवा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन का प्रश्न नहीं है लिहाजा याचिका को खारिज किया जाता है।
आईसीपी योजना के तहत निधि में देरी पर हाईकोर्ट सख्तअमृत विचार लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम (आईसीपी योजना) के तहत निधि जारी होने में देरी पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा है कि अप्रैल से शुरू हुए वित्त वर्ष की आंशिक निधि अक्टूबर महीने में जारी की गई, ऐसे रवैये से बाल गृह बच्चों की जरूरतों को कैसे पूरा करेंगे और क्या इस प्रकार की देरी बच्चों के हितों से समझौता नहीं है।

कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 11 दिसम्बर की तिथि नियत करते हुए, केंद्र सरकार के सम्बंधित के किसी जिम्मेदार अधिकारी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित होने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश वर्ष 2008 में अनूप गुप्ता शीर्षक से दर्ज एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। बाल गृहों के बच्चों के हित से जुड़ी उक्त याचिका पर यह पीठ सुनवाई कर रही है।

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