कैंपस का पहला दिन: सीनियर का रहा खौफ, बाद में बने दोस्त

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Published By Anjali Singh
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इंजीनियरिंग कॉलेज में मेरा पहला दिन आंखों में तैरते भविष्य के सपनों के बीच काफी सहमा, सकुचा रहा। आज का एचबीटीयू उस वक्त का एचबीटीआई में मेरा सलेक्शन हुआ। यहां पर आने से पहले मैंने सीनियर्स के बारे में काफी सुन रखा था। इन्हीं सीनियर्स के खौफ और आंखों में सपने लेकर मैं पहले दिन कैंपस पहुंचा। सीनियर्स का डर इस कदर था कि कैंपस में जाने के बाद मैंने उनसे अपने डिपार्टमेंट का रास्ता तक पूछना उचित नहीं समझा, खैर एक टीचर मिले उनसे जानकारी लेकर मैं अपनी क्लास तक पहुंचा। काफी दिन तक सीनियर्स से अनायास ही दूरी बनाता रहा, लेकिन जब उन लोगों से बात हुई तो वे काफी सपोर्टिव निकले। कुछ के साथ मित्रता ऐसी हुई कॉलेज में उन लोगों ने पढ़ाई में भी सहायता की। आज उनमें से कई मेरे बहुत अच्छे मित्र भी हैं। 

कॉलेज का पहला दिन मेरे जीवन का एक अविस्मरणीय क्षण था। उच्च शिक्षा प्राप्त करना बचपन से मेरा सपना था और उस दिन मैं दिल में बड़े सपने और उम्मीदें लेकर कॉलेज के द्वार पर पहुंचा था। अपने पिता को एक इंजीनियर के रूप में कड़ी मेहनत करते हुए देखता आया था। उन्हीं के पदचिह्नों पर चलना हमेशा से मेरी आकांक्षा रही। उन्हें हर संभव तरीके से सहायता करने की इच्छा ही मेरे भीतर इंजीनियर बनने का जुनून जगाती थी। इस सपने को पूरा करने के लिए मैंने अत्यंत परिश्रम किया। कई बार बिजली न होने पर मंद रोशनी में पढ़ाई की। खुद को व्यवधानों से दूर रखने के लिए अक्सर अकेला बैठकर सिर्फ अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। मेरे इन निरंतर प्रयासों का फल मुझे तब मिला जब मेरा चयन एचबीटीआई, कानपुर में हुआ। एक ऐसा परिसर, जिसने मेरे जीवन की दिशा बदल दी। उस समय न तो करियर काउंसलर थे और न ही इंटरनेट जैसी सुविधाएं। फिर भी, मुझे हमेशा विश्वास था कि एचबीटीआई ही वह स्थान है, जहां मुझे होना चाहिए। 

परिसर को देखने और ज्ञान से परिपूर्ण प्रोफेसरों से मिलकर यह विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि यही वह विश्वविद्यालय है, जिसके लिए मैं बना हूं। कॉलेज जीवन शुरू हुआ, तो पढ़ाई का असली अध्याय भी शुरू हुआ। माता-पिता से दूर, एक ऐसे शहर में जहां कुछ ही लोग परिचित थे। अकेलापन कई बार चुनौती बना, पर इंजीनियर बनने की मेरी प्यास और अपने सपने को पूरा करने की लगन ने मुझे कभी रुकने नहीं दिया। मेरे प्रोफेसर वास्तव में असाधारण व्यक्तित्व थे। आज भी उनके पढ़ाए हुए सिद्धांत और अवधारणाएं मुझे उतनी ही स्पष्टता से याद हैं। पढ़ाई में मेरी रुचि केवल अंकों तक सीमित नहीं थी। मुझे यह समझने में आनंद आता था कि कोई सिद्धांत वास्तव में क्या कहता है, उसका मूल क्या है और वह वास्तविक जीवन में कैसे काम आता है। 

शिक्षा मेरे लिए केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि उसका व्यावहारिक उपयोग थी। इसी दृष्टिकोण का लाभ मुझे आज भी मिलता है। अपने कार्यस्थल पर बैठकर जब मैं नवाचार या किसी उत्पाद को और बेहतर बनाने के बारे में सोचता हूं, तब बचपन और कॉलेज के दिनों में सीखे गए अनेक सिद्धांत स्वतः ही मेरी आंखों के सामने उभर आते हैं। कॉलेज जीवन मित्रता, मनोरंजन और स्वतंत्रता का पहला अनुभव देता है। पर इससे भी अधिक, यह वह समय है जब हम ज्ञान की वह नींव बनाते हैं, जिस पर हमारा पूरा जीवन टिका रहता है। 

आज मैं कई विद्यार्थियों को केवल अच्छे अंकों के पीछे भागते देखता हूं। देश के सभी प्रतिभाशाली युवाओं से मैं यही कहना चाहता हूं, केवल अंक प्राप्त करने के लिए न पढ़ें। ज्ञान को समझिए, उसे अपनाइए और उसके वास्तविक जीवन में उपयोग को पहचानिए। देखें कि जो आप आज सीख रहे हैं, उसे अपने जीवन के अन्य क्षेत्रों में कैसे लागू कर सकते हैं। यदि आप यह दृष्टिकोण अपनाएंगे, तो सफलता स्वयं आपके कदम चूमेगी। - हरेंद्र मूरजानी, एमडी, यूपी पंप प्राइवेट लिमिटेड, कानपुर

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