सूर्य चिकित्सा : खरी है आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर 

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Published By Anjali Singh
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आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में धूप स्नान या सूर्य की किरणों से उपचार की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है, जिसे आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर भी खरा पाया गया है। युवा वैज्ञानिक और शोधार्थी डॉ. प्रभात उपाध्याय ने इस विषय पर गहराई से अध्ययन किया तो सुखद व आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। प्रकाश चिकित्सा विज्ञान (मेडिकल साइंस) में क्रांतिकारी हथियार के रूप में उभर रहा है। इसे फोटोमेडिसिन  या प्रकाश चिकित्सा कहा गया है, जिससे प्रकाश की किरणें बीमारियों से लड़ने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। यह न केवल त्वचा की समस्याओं का इलाज करती है, बल्कि मांसपेशियों को मजबूत करने, आंतों के सूक्ष्म जीवों को संतुलित करने और यहां तक कि कैंसर जैसी जटिल बीमारियों पर नियंत्रण पाने में सहायक सिद्ध हो रही है। शोधार्थी डॉ. उपाध्याय के शोध ने आंतों के सूक्ष्म जीवों और मांसपेशियों के बीच के रहस्य को उजागर किया है। साथ ही प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति से जुड़ाव और भारत में इसके उपयोगी अनुप्रयोगों पर विस्तार से बताया है। हाल ही में प्रकाशित शोध “प्रकाश संवर्धन द्वारा आंतों के सूक्ष्म जीवों के माध्यम से मांसपेशियों को मजबूत करना” ने फोटो मेडिसिन को एक नई दिशा दी है। यह अध्ययन लखनऊ विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय(बीएचयू) के शोधार्थी डॉ. प्रभात उपाध्याय और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया।--- मार्कण्डेय पाण्डेय

शोध में निकले नतीजे

-गैर आक्रामक फोटो बायोमॉडुलेशन थेरेपी मांसपेशी सहनशक्ति बढ़ाती है।
-पेट पर प्रकाश लागू करने से आंत मांसपेशी अक्ष पुनर्गठित होता है।
-यह उपचार तीव्र व्यायाम से बिगड़े आंत माइक्रोबायोटा को संतुलित करता है।
-शॉर्टचेन फैटी एसिड उत्पादक बैक्टीरिया को बढ़ाता है।
-रोगजनक जीवाणुओं को घटाता है और जैव विविधता में वृद्धि करता है।
-इससे मांसपेशियों की थकान घटती है और माइटोकॉन्ड्रिया की ऊर्जा उत्पादन
क्षमता बढ़ती है।

पहली बार सिद्ध हुआ है कि बाहरी प्रकाश बिना किसी औषधि या शल्य-प्रक्रिया के आंतों के सूक्ष्मजीवों को प्रभावित कर सकता है। यह खोज आयुर्वेद की “सूर्य चिकित्सा” की आधुनिक पुनर्व्याख्या के समान है।

आयुर्वेद से जुड़ाव : प्राचीन ज्ञान व आधुनिक विज्ञान का संगम 

भारत में प्रकाश चिकित्सा का इतिहास प्राचीन है। आयुर्वेद में सूर्य चिकित्सा या सूर्योपासना का उल्लेख मिलता है, जिसमें सूर्य की किरणों से शरीर के दोषों- वात, पित्त और कफ को संतुलित करने की विधियां बताई गई हैं। ‘त्राटक’ जैसी विधियां, जहां दीपक की लौ पर दृष्टि केंद्रित की जाती है। यह सभी विधियां आधुनिक फोटोथेरेपी के सिद्धांतों से मेल खाती हैं। हाल के अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि सूर्य प्रकाश शरीर के चक्रों को सक्रिय कर ऊर्जा संतुलन स्थापित करता है, जो फोटो बायोमॉडुलेशन के सिद्धांतों के समान है।

लेजर कृत्रिम प्रकाश पर आधारित है आधुनिक विज्ञान

आधुनिक विज्ञान लेज़र और कृत्रिम प्रकाश पर केंद्रित है, वहीं आयुर्वेद प्राकृतिक प्रकाश को उपचार का साधन मानता है। त्रिफला जैसी औषधियों के साथ प्रकाश चिकित्सा का संयोजन भविष्य की समग्र (होलिस्टिक) चिकित्सा प्रणाली का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

भारत में सस्ती, सुरक्षित चिकित्सा विकल्प

भारत में जहां लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है, फोटो मेडिसिन विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है। प्रकाश आधारित उपचार गैर आक्रामक हैं, इनमें न दर्द है न दवा का दुष्प्रभाव। उपकरण भी किफायती हैं। साधारण एलईडी युक्त चिकित्सा उपकरण 5 हजार से 10 हजार रुपये तक में उपलब्ध हैं। यह चिकित्सा विधि वृद्धावस्था में मांसपेशी कमजोरी, आंत-संबंधी विकार, थकान, मधुमेह और संक्रमण जैसी स्थितियों में सहायक सिद्ध हो सकती है। व्यायाम के साथ इनका प्रयोग मांसपेशियों की पुनःस्थापना की गति को लगभग 30 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह घाव भरने और संक्रमण नियंत्रण के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकती है। डॉ. प्रभात उपाध्याय जैसे शोधकर्ता इस क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टि से योगदान के साथ आयुर्वेदिक परंपराओं को आधुनिक प्रमाणों से जोड़ रहे हैं। भारत में प्रकाश चिकित्सा करोड़ों लोगों के लिए सुलभ, सस्ती और सुरक्षित स्वास्थ्य प्रणाली का रूप ले सकती है। वास्तव में प्रकाश ही भविष्य है, भारत उसका उज्ज्वल अध्याय लिखने की दहलीज पर है।

आधुनिक फोटो मेडिसिन का प्रारंभ

भारत में हजारों वर्ष से सूर्य चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियां प्रचलित हैं, लेकिन आधुनिक दौर में 1970 के दशक में अमेरिका के मैसाचुसेट्स में लेजर तकनीक सामने आई। यहां पर स्थित वेलमैन सेंटर ने इसे चिकित्सा क्षेत्र में इसका प्रयोग शुरू किया। अब यह सेंटर विश्व का सबसे बड़ा शैक्षणिक अनुसंधान केंद्र है, जो प्रकाश के जीवविज्ञान और चिकित्सा पर प्रभावों की जांच करता है। यहां प्रकाशिकी, फोटॉनिकी, अभियंत्रण, रसायन विज्ञान, भौतिकी और उन्नत जैविक तकनीकों पर शोध चल रहे हैं। इस केंद्र के अनुसंधान से विकसित 26 से अधिक चिकित्सीय नवाचार वर्तमान में उपयोग में हैं। इनमें लगभग 20 प्रमुख प्लेटफ़ॉर्म तकनीकें शामिल हैं, जिनके अनेक अनुप्रयोग हैं और 40 से अधिक स्टार्टअप कंपनियां इन पर आधारित हैं। उदाहरण के तौर पर लेजर द्वारा बाल हटाने, टैटू मिटाने, ऊतक मरम्मत (झुर्रियां, निशान और त्वचा की रंगत सुधारने) जैसी तकनीकें अब सामान्य चिकित्सा का हिस्सा बन चुकी हैं।