जॉब का पहला दिन: विभागाध्यक्ष की कुर्सी ने कराया जिम्मेदारी का अनुभव
बात 5 सितंबर 2017 की है। माध्यमिक सेवा चयन आयोग से सहायक प्रोफेसर में नौकरी लगी। गोरखपुर होम टाउन था, लेकिन नौकरी ज्वाइन करने के लिए हमें मुरादाबाद के कांठ का डिग्री कॉलेज आवंटित हुआ। मन में तमाम सवाल उठ रहे थे, कैसे कहां क्या करेंगे, मन में नई उमंगें लेकर गोरखपुर से मुरादाबाद के लिए ट्रेन में बैठ गए। नौकरी ज्वाइन करने के पहले दिन ट्रेन से मुरादाबाद जंक्शन पहुंचे, यहां से कांठ के डीएसएम डिग्री कॉलेज जाने के लिए एक बस पकड़ी।
करीब एक घंटे में बस ने कांठ में उतार दिया, काफी खोजबीन के बाद कॉलेज पहुंचे, तब हम इस कॉलेज का पूरा नाम नहीं जानते थे, वहां पहुंचने पर मालूम हुआ कि इस कॉलेज का पूरा नाम ध्यान सिंह मैमोरियल डिग्री कॉलेज है, वो भी बोर्ड देखकर। यह कॉलेज राज घराने से ताल्लुक रखता है, अंग्रेंजो के समय के बने इस कॉलेज में पहले दिन सबसे पहली समस्या भाषा की आई, गोरखपुर और मुरादाबाद की बोलचाल की भाषा में काफी अंतर है।
कॉलेज में हर कोई व्यक्ति अपरिचित की नजर से हमें और हम उन्हें देखते थे, भाषा के साथ परिचय और खानपान की समस्या भी सामने आई। हमारे यहां चाय के साथ मीठा नहीं दिया जाता है, लेकिन कॉलेज में पहले दिन चाय संग मीठा खाने के लिए मिला। यह अनुभव जीवन में पहली बार हुआ। उस दिन कॉलेज में कोई और प्रोफेसर नहीं पहुंचे, तो प्राचार्य ने मुझे पहले दिन राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी, जबकि यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान हम देखते थे कि विभागाध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी होती है।
क्लास में गए और राजनीति विज्ञान के बच्चों से परिचय हुआ, बच्चों से परिचय होने के दौराना उनका रूझान रोजगार की तरफ ज्यादा दिखा, तब पहले दिन बच्चों को पढ़ाई अच्छे से करने के साथ रोजगार के बारे में भी बताया। बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत किया।
जॉब का पहले दिन का अनुभव जीवन का सबसे श्रेष्ठ रहा है। चाय संग मीठा और पहले दिन ही विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाने का अनुभव जीवन के लिए बेहतर साबित हुआ। कांठ डिग्री कॉलेज में कई साल गुजारे और ग्रामीणों को भी विभिन्न योजनाओं के प्रति कार्यक्रम चलाकर जागरूक किया। इसके बाद रुहेलखंड यूनिवर्सिटी में काफी समय तक शिक्षण कार्य किया। - नीरज पाठक, उर्फ यादवेंद्र, सहायक रजिस्टार, फर्म्स सोसाइटीज एवं चिट्स, बरेली
