Christmas Special: क्रिसमस पुडिंग की मीठी आग और जादुई स्वाद का राज... वैज्ञानिकों ने खोला रसायन विज्ञान का रहस्य!
सिडनीः क्रिसमस हर किसी के लिए अलग-अलग मायनों में खास होता है। मेरे लिए यह वह समय है जब मैं साल भर न मिलने वाले खास व्यंजन खा सकता हूं जैसे कि ग्लेज्ड हैम और खासतौर पर पकाई गई क्रिसमस पुडिंग। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस पारंपरिक डेज़र्ट के पीछे कौन-सी रासायनिक प्रक्रियाएं काम करती हैं? आइए जानते हैं क्रिसमस पुडिंग के विज्ञान के बारे में।
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जटिल स्वाद प्रोफ़ाइल
क्रिसमस पुडिंग भाप में पकाई जाने वाली मिठाई है जिसमें सूखे मेवे, चीनी, आटा, वसा, मसाले, अंडे और अल्कोहल होता है। इसे आमतौर पर पहले से बनाकर रखा जाता है और फिर परोसने से पहले दोबारा भाप में गर्म किया जाता है। आधुनिक पुडिंग में किशमिश, करंट, सुल्ताना जैसे सूखे अंगूर और ग्लेज़्ड चेरी व साइट्रस पील जैसे कैन्डी फ्रूट का उपयोग किया जाता है। सूखे फलों में ताजे फलों की तुलना में अलग स्वाद होते हैं। कई स्वाद यौगिक तो खो जाते हैं, लेकिन एंजाइमेटिक ब्राउनिंग, वसा अम्लों और प्राकृतिक रंगों के रासायनिक रूपांतरण से नए स्वाद बनते हैं। कैन्डी फ्रूट को चीनी की चाशनी में गर्म किया जाता है जिससे उसमें मौजूद पानी चीनी से बदल जाता है और वह एक मीठा लेकिन कम रंगीन फल बन जाता है। यह मीठा वातावरण सूक्ष्मजीवों के लिए प्रतिकूल होता है। सूखे फलों को अक्सर ब्रांडी, रम या कॉन्यैक जैसी शराब में कई घंटों से लेकर हफ्तों तक भिगोया जाता है। इससे फल नम रहते हैं और पुडिंग का स्वाद भी बढ़ता है। शराब में मौजूद इथेनॉल सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को भी रोकता है।
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मसालों और वसा का रासायनिक योगदान
पुडिंग में सामान्यत: दालचीनी, जायफल, ऑलस्पाइस, मेस और लौंग जैसे मसाले मिलाए जाते हैं। इनमें मौजूद रसायन जैसे सिनामैल्डिहाइड (दालचीनी), यूजेनॉल (लौंग) और सैबिनीन (जायफल) इसका विशिष्ट स्वाद तय करते हैं। हालांकि पुडिंग केक नहीं होती, लेकिन उसमें केक जैसी सामग्रियां प्रयुक्त होती हैं — जैसे मैदा, बेकिंग पाउडर, अंडे और वसा। मैदा नमी सोखता है और संरचना देता है, जबकि बेकिंग पाउडर फूलने में मदद करता है। अंडे की जर्दी से मिलने वाला लेसिथिन मिश्रण को एकसाथ बनाए रखता है। इसमें आजकल वानस्पतिक तेलों का चलन अधिक है।
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भाप से पकाना: वैज्ञानिक दृष्टिकोण
पुडिंग मिश्रण को एक बाउल में डालकर सील कर दिया जाता है और भाप में पकाया जाता है। उबलते पानी की 100 डिग्री सेल्सियस की स्थिर गर्मी से स्टार्च जिलेटिनाइज हो जाते हैं, अंडे के प्रोटीन टूटते होते हैं और बेकिंग पाउडर सक्रिय होता है। इससे पुडिंग सेट हो जाती है और फूलती है। पकने के बाद इसे कई हफ्तों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। कुछ लोग हफ्तों तक इसमें अल्कोहल डालते रहते हैं ताकि यह स्वादिष्ट भी रहे और खराब भी न हो।
‘फ्लेमिंग पुडिंग’: जरूरत से ज़्यादा न करें
यह एक नाटकीय लेकिन गैर ज़रूरी परंपरा है — पुडिंग पर अल्कोहल डालकर उसे जलाना। जलती हुई इथेनॉल की लौ नीली होती है, जो पूरी तरह से दहन होने का संकेत है। नारंगी रंग की लौ अधूरे दहन से बनती है, जिसमें कार्बन चमकने लगता है। ऐसी अदृश्य नीली लौ बेहद ख़तरनाक हो सकती है। इसलिए जलती हुई मिठाई को कभी भी न घुमाएं और ध्यान रखें: ज़्यादा ईंधन हमेशा बेहतर नहीं होता।
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सिक्के और परंपराएं
पुरानी परंपरा के अनुसार, पुडिंग में शुभ संकेतक जैसे सिक्के आदि डाले जाते थे। ऑस्ट्रेलिया में तीन और छह पेंस के चांदी और तांबे के मिश्र धातु से बने सिक्के मिलाए जाते थे। जब ऑस्ट्रेलिया में 1960 के दशक में दशमलव मुद्रा आई और सिक्कों में चांदी की जगह निकल-तांबा आया, तो यह पाया गया कि यह धातु पुडिंग को हरा कर देती है और स्वाद भी बिगाड़ती है। इसलिए पकने के बाद इन सिक्कों को डालने की सिफारिश की गई, हालांकि इन्हें निगलने का खतरा बना रहता है। आज भी चांदी के पुडिंग सिक्के उपलब्ध हैं, लेकिन मेहमानों को इसके बारे में पहले से बताना जरूरी है ताकि दांत और पाचन दोनों सुरक्षित रहें।
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एक वैज्ञानिक की मीठी यादें
एक युवा रसायन छात्र के रूप में मैंने जे. जे. थॉमसन के ‘प्लम पुडिंग’ परमाणु मॉडल के बारे में पढ़ा था जो अब अप्रचलित है। थॉमसन ने इलेक्ट्रॉनों को एक गोले में “प्लम्स” की तरह फैला हुआ माना था। हालांकि विज्ञान अब आगे बढ़ चुका है, लेकिन मैं अब भी अपनी पसंदीदा पुडिंग के साथ जुड़ा हूं। चाहे आप पारंपरिक पुडिंग खाएं या आधुनिक पैव्लोवा, इस क्रिसमस के दौरान उस रसायन को जरूर समझें, जो आपके स्वाद को यादगार बनाता है।
