धरती-अम्बर

बाहर देखा, अन्दर फिर भूखे का भूखा मन…

बाहर देखा, अन्दर फिर भूखे का भूखा मन। सुन्दरता के लेकर मंजर फिर भूखे का भूखा मन।। धरती-अम्बर, दौलत-शोहरत, प्यार-मुहब्बत लेकर भी, फिर ना मानें ऐसा कंजर फिर भूखे का भूखा मन। अपने दिल की हर इक इच्छा पूरी करके बैठा है, फिर भी जाता है यह मन्दर फिर भूखे का भूखा मन। बस्ती अन्दर …
साहित्य 

साथ चलो तो बात बने…

क्या होगा कहने भर से मात्र दिखावा ऊपर से। मन से साथ निभाओ तो साथ हमारे आओ तो। सुख-दुख मिलकर सह लेंगे काँटों में भी रह लेंगे। मेरे गीत तुम्हारा स्वर गूँजेगा धरती-अम्बर। मागूँ साथ मुझे वह दो कुछ मत सोचो हाँ कह दो। मन में मत दुविधा पालो और न कुछ देखो-भालो। इस मन …
साहित्य