बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?

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छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? भूल अभी से इस जग को! तज कर तरल तरंगों को, इन्द्रधनुष के रंगों को, तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन? भूल अभी से इस जग को! कोयल का वह कोमल बोल, …

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?

भूल अभी से इस जग को!
तज कर तरल तरंगों को,
इन्द्रधनुष के रंगों को,
तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन?

भूल अभी से इस जग को!
कोयल का वह कोमल बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
कह तब तेरे ही प्रिय स्वर से कैसे भर लूँ, सजनि, श्रवण?

भूल अभी से इस जग को!
ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा-रश्मि से उतरा जल,
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
भूल अभी से इस जग को!

  • सुमित्रानंदन पंत

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