भवाली का सेनेटोरियम जब टीबी के इलाज के लिए पूरे एशिया में जाना जाता था
हल्द्वानी, अमृत विचार। नैनीताल के भवाली में स्थित सेनेटोरियम को 100 साल से ज्यादा का समय हो गया है। यहां टीबी का इलाज किया जाता है। एक समय था जब एशिया में इस सेनेटोरियम की गिनती होती थी। आज भी कई राज्यों से लोग यहां इलाज के लिए आते हैं। इस टीबी सेनेटोरियम की खासियत …
हल्द्वानी, अमृत विचार। नैनीताल के भवाली में स्थित सेनेटोरियम को 100 साल से ज्यादा का समय हो गया है। यहां टीबी का इलाज किया जाता है। एक समय था जब एशिया में इस सेनेटोरियम की गिनती होती थी। आज भी कई राज्यों से लोग यहां इलाज के लिए आते हैं। इस टीबी सेनेटोरियम की खासियत है यहां की साफ हवा। चीड़ के जंगलों में स्थित यह सेनेटोरियम अपनी इसी खासियत की वजह से बेहद मशहूर रहा है।

वर्ष 1912 में भवाली सेनेटोरियम की स्थापना किंग जॉर्ज एडवार्ड सप्तम के कार्यकाल में हुई थी। समुद्रतल से 1680 मीटर की ऊंचाई पर बसी यह जगह चारों ओर से चीड़ के जंगल से घिरा हुआ है। स्थानीय लोग बताते हैं कि वर्तमान में स्थित टीबी सेनेटोरियम की जमीन रामपुर के नवाब की थी। नवाब की पत्नी को टीबी हो गयी थी और इलाज न मिलने की वजह से उनकी मौत हो गई जिसके बाद नवाब ने अपनी जमीन अंग्रेजों को टीबी का अस्पताल बनाने के लिए दी। सेनेटोरियम करीब 18 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें स्टाफ क्वार्टर, वॉर्ड और बाकी का हिस्सा जंगल का है। जिस तरह आज लोग कोरोना की वजह से मुंह पर मास्क लगाए घूमते हैं, उसी तरह तब टीबी की बीमारी से बचने के लिए मास्क लगाने का चलन था और यी सेंटर अपनी आबोहवा के लिए जाने जाने लगा।

सेनेटोरियम के पहले चिकित्सक कर्नल कौक्रेन रहे जो यहां के सबसे पहले चिकित्सा अधीक्षक भी थे इस जगह पहले टीबी के ऑपरेशन भी हुआ करते थे। इस अस्पताल में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू जब टीबी से ग्रसित हुईं, तब उनका इलाज भी यहीं हुआ था।
कमला नेहरू यहां 10 मार्च 1935 से 15 मई 1935 तक करीब 2 महीने के लिए भर्ती रही थीं। उनके नाम पर एक महिला वार्ड भी बना है । पं. नेहरू जो उस समय नैनी जेल में कैद थे, पत्नी की देखरेख के लिए उन्हें अल्मोड़ा जेल स्थानान्तरित किया गया। इस दौरान वे कई बार कमला नेहरू का हाल जानने यहां आया करते थे। बताते हैं कि सुभाषचन्द्र बोस भी जब क्षयरोग से ग्रसित हुए तो चिकित्सकों ने उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए पहाड़ी क्षेत्र में प्रवास करने की सलाह दी। इसी सिलसिले में वे सेनेटोरियम आये, लेकिन उस समय टीबी की कोई दवा नहीं थी इसलिए बाद में वे उपचार के लिए बाहर चले गये।

अपको बता दें कि अपने उपचार के लिए यहां आने वाले देश के प्रमुख व्यक्तियों में क्रान्तिकारी एवं साहित्यकार यशपाल, ख्यातिप्राप्त गायक कुन्दन लाल सहगल, खिलाफत आन्दोलन के नेता मोहम्मद अली व शौकत अली, उ.प्र. के मुख्यमंत्री सम्पूर्णानन्द की धर्मपत्नी तथा क्रान्तिकारी नेता गया प्रसाद शुक्ल का नाम भी आता है। बहरहाल आज अस्पताल की स्थिति दयनीय हो चुकी है। कभी पूरे एशिया में विख्यात टीबी अस्पताल आज खुद बीमार है। शासन की ओर से इसकी दशा को सुधारने के लिए व्यापक इंतजाम नहीं किए जा रहे, यहां रखी मशीनें खराब हो चुकी हैं। लेकिन यह अस्पताल आज भी अपनी पहचान बनाए हुए अड़िग खड़ा है।
