जानें क्यों मनाते हैं लोहड़ी का पर्व? पढ़े इससे जुड़ी पौराणिक कथा…

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मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी के त्योहार का संबंध फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा है। इस दिन पंजाब और हरियाणा में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। वहीं रात के समय लोहड़ी जलाई जाती है। इसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी, मूंगफली को हर …

मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी के त्योहार का संबंध फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा है। इस दिन पंजाब और हरियाणा में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। वहीं रात के समय लोहड़ी जलाई जाती है। इसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी, मूंगफली को हर कोई चढ़ाता है। पुरुष लोहड़ी की आग के पास भांगड़ा करते हैं, वहीं महिलाएं गिद्दा करती हैं. सभी रिश्तेदार एक साथ मिलकर डांस करते हुए हुए बहुत धूम-धाम से लोहड़ी का जश्न मनाते हैं।

इस पर्व के मनाये जाने के पीछे एक प्रचलित लोक कथा भी है कि मकर संक्रांति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे कृष्ण ने खेल–खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व ‘लाल लाही’ के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।

लोहड़ी के बाद कम होती हैं सर्दियां
मान्यता के अनुसार लोहड़ी का त्योहार शीतकालीन संक्रांति के गुजरने का प्रतीक है। यही कारण है इस खास पर्व को सर्दियों के अंत का प्रतीक भी माना जाता है। चंद्र सौर विक्रमी कैलेंडर के सौर भाग के अनुसार और आमतौर पर लोहड़ी के पर्व को हमेशा ही 13 जनवरी को घरों में मनाया जाता है।

धार्मिक महत्व
माना जाता है इस दिन धरती सूर्य से अपने सुदूर बिन्दु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारम्भ कर देती है। यह पर्व खुशहाली के आगमन का प्रतीक भी है। साल के पहले मास जनवरी में जब यह पर्व मनाया जाता है उस समय सर्दी का मौसम जाने को होता है। इस पर्व की धूम उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में ज्यादा होती है।

कृषक समुदाय में यह पर्व उत्साह और उमंग का संचार करता है क्योंकि इस पर्व तक उनकी वह फसल पक कर तैयार हो चुकी होती है जिसको उन्होंने अथक मेहनत से बोया और सींचा था। पर्व के दिन रात को जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालों से ही की जाती है।

 दुल्ला भट्टी की कहानी
आपको बता दें कि लोहड़ी के त्योहार पर दुल्ला भट्टी की कहानी को खास रूप से सुना जाता है. दुल्ला भट्टी मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के वक्त पर पंजाब में रहता था. मध्य पूर्व के गुलाम बाजार में हिंदू लड़कियों को जबरन बेचने के लिए ले जाने से बचाने के लिए उन्हें आज भी पंजाब में एक नायक के रूप में माना और याद किया जाता है. कहानी में बताया गया है कि उन्होंने जिनको बचाया था उनमें दो लड़कियां सुंदरी और मुंदरी थीं, जो बाद में धीरे-धीरे पंजाब की लोककथाओं का विषय बन गईं थीं.

लोहड़ी के गीत
लोहड़ी का त्योहार बिना गीत के अधूरा माना जाता है। लोहड़ी जलाकर  बच्चे या फिर बड़े आग के आस पास घूम-घूम कर गीत गाते हैं। इन गीतों में “दुल्ला भट्टी” का नाम भी शामिल होता है। घरों में लोहड़ी को मांगने की रिवाज होती है।
पारंपरिक गीत- सुंदर मुंदरिये ! …………हो तेरा कौन बेचारा, …………हो दुल्ला भट्टी वाला, ………हो दुल्ले घी व्याही, …………हो सेर शक्कर आई, ……………हो कुड़ी दे बाझे पाई, …………हो कुड़ी दा लाल पटारा, ………हो

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