उत्तराखंड में यहां बसता है शिमला , नैनीताल को बसाने वाले ट्रैवलर पी बैरन ने की थी यहां ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की वकालत

Amrit Vichar Network
Published By Amrit Vichar
On

देवभूमि उत्तराखंड में मानो प्रकृति और परमेश्वर का संगम सा हो। यही वजह है कि यहां की वादियां और देवों के धाम बरबस ही देश-दुनिया के लोगों को अपनी तरफ खिंचते हैं। तीन ओर काली, सरयू और पनार नदियों से घिरा और मध्य में लोहावती व लधिया नदियों को लिए हुए उत्तराखंड के पूर्वी किनारे …

देवभूमि उत्तराखंड में मानो प्रकृति और परमेश्वर का संगम सा हो। यही वजह है कि यहां की वादियां और देवों के धाम बरबस ही देश-दुनिया के लोगों को अपनी तरफ खिंचते हैं। तीन ओर काली, सरयू और पनार नदियों से घिरा और मध्य में लोहावती व लधिया नदियों को लिए हुए उत्तराखंड के पूर्वी किनारे पर स्थित काली कुमाऊं क्षेत्र का विस्तार माल (भाबर) से मध्यवर्ती पहाड़ियों तक है। यह क्षेत्र भी प्रकृति की खूबसूरत सौगात से कम नहीं है। यही वजह है कि नैनीताल को बसाने वाले गन्ना व्यापारी, ट्रैवलर और शिकारी पीटर बैरन ने 1841 में अपनी यात्रा के दौरान यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य से प्रभावित होकर इस सुंदर स्थान को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में विकसित करने की वकालत की थी।

काली कुमाऊं क्षेत्र के एक गांव का नजारा।

कत्यूरी राज्य के हिस्से, चंद राज्य के प्रारंभिक क्षेत्र से औपनिवेशिक काल में एक पट्टी, एक तहसील और आज चम्पावत जिले के रूप में उभरा काली कुमाऊं दरअसल बड़ी सीमा तक कुमाऊंनी समाज का प्रारंभिक स्थान है। इसमें मुख्यधारा के साथ लूल रावत, मुस्लिम और ईसाई शामिल हैं और इस समाज का रिश्ता पड़ोसी थारुओं और नेपालियों से भी जुड़ा है।

कभी काली कुमाऊं का यह क्षेत्र कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पड़ता था, जो भारत-तिब्बत व्यापार का मार्ग भी था। विभिन्न मिथकों (जैसे कूर्म ऋषि, बाणासुर, घटोत्कच, हिडिम्बा आदि) से संबंधित होने के कारण काली कुमाऊं को जाना जाता है और विद्रोही गोरिल (गोरिलचौड़) तथा ऐड़ी (ब्यानधुरा) देवताओं की मूल स्थली के कारण भी। गोरखनाथ, गुरुनानक, विवेकानंद और जिम कार्बेट जैसी प्रतिभाओं ने यहां की यात्रा की थी। कालू महरा, आनंद सिंह फर्त्याल जैसे क्रांतिकारियों ने 1857 के संग्राम में शहादत भी दी थी।

काली कुमाऊं क्षेत्र की वादियों में स्थित एक घर।

अनेक कोटों-किलों, सूर्य-प्रतिमाओं, मंदिरों, नौलों, बिरखमों के लिये प्रसिद्ध काली कुमाऊं अनेक मेलों (देवीधुरा, पुल्ला, पुण्यागिरी, पंचेश्वर), उत्सवों (चैतोल, बग्वाल, होली, गौरा-महेश्वर) तथा लोक-देवताओं (चम्पावती देवी, गोरिल, ऐड़ी, संग्राम कार्की, बफौल) के लिए भी चर्चित रहा है। यही नहीं पुण्यागिरी और देवीधुरा जैसे प्रख्यात शक्तिस्थल, गोरिल तथा ऐड़ी के मूल स्थान, बालेश्वर जैसा मंदिर परिसर सेनापानी जैसी प्रस्तर प्रतिमाएं तथा स्तंभ, रमक जैसी सूर्य प्रतिमाएं और एक हथिया जैसा नौला ही नहीं रीठासाहब, बरमदेव (अब उजड़ गया है), मायावती, मंच और एबटमाउन्ट जैसे स्थान भी यहां स्थित है।

काली कुमाऊं साल, हल्दू, चीड़, बांज, देवदार और बुरांश के जंगलों के लिये जाना जाता है तो च्यूर जैसा बहुउपयोगी दुर्लभ वृक्ष यहां पाया जाता है। अदरक, गडेरी, मिर्च, मूंगफली भी यहां बहुतायत उगाई जाती है। लोहे के बर्तन और चमड़े के जूते भी यहां की पहचान है।

संबंधित समाचार