दिल को छु लेने वाली अमृता प्रीतम की कविता- ‘आज सूरज ने कुछ घबरा कर’
लखनऊ। अमृता प्रीतम की कविताओं में जो शब्दों की माला है वो दिलों के छु लेती है, कविता की गहराई में उतरकर अमृता के व्यक्तित्व का भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उनका जन्म पाकिस्तान के गुजरांवाला में 31 अगस्त 1919 को हुआ था। निधन 31 अक्टूबर 2005 को हुआ था मगर उनके लिखे किमती …
लखनऊ। अमृता प्रीतम की कविताओं में जो शब्दों की माला है वो दिलों के छु लेती है, कविता की गहराई में उतरकर अमृता के व्यक्तित्व का भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उनका जन्म पाकिस्तान के गुजरांवाला में 31 अगस्त 1919 को हुआ था। निधन 31 अक्टूबर 2005 को हुआ था मगर उनके लिखे किमती शब्द आज भी अमृता को जीवित रखें हुए है।
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया…
आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया…
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है…
साथ हजारों ख्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं
वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये…
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया…
‘अमृता प्रीतम’
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