लखीमपुर-खीरी: थानों से गायब हो गए सीनियर सिटीजन चार्ट
लखीमपुर-खीरी,अमृत विचार। नागरिकों को उनके अधिकारों की जानकारी हो। इसके लिए थानों पर सीनियर सिटीजन चार्ट के साथ मानवाधिकार की गाइड लाइन के बोर्ड लगाए गए थे लेकिन अधिकतर और थानों में अब यह बोर्ड लगे नहीं दिखाई देते हैं। कहीं यह बोर्ड कबाड़ में डाल दिये गए तो कहीं कोनों में खड़े धूल फांक …
लखीमपुर-खीरी,अमृत विचार। नागरिकों को उनके अधिकारों की जानकारी हो। इसके लिए थानों पर सीनियर सिटीजन चार्ट के साथ मानवाधिकार की गाइड लाइन के बोर्ड लगाए गए थे लेकिन अधिकतर और थानों में अब यह बोर्ड लगे नहीं दिखाई देते हैं। कहीं यह बोर्ड कबाड़ में डाल दिये गए तो कहीं कोनों में खड़े धूल फांक रहे हैं।
कोतवाली और थानों में हिस्ट्रीशीटर की सूची, सीनियर सिटीजन चार्ट और मानवाधिकार के दिशा-निर्देशों के बोर्ड लगाये जाने के आदेश काफी अर्से से हैं। शासन के आदेश पर सभी थानों और कोतवाली में बोर्ड लगवाए भी गए थे। इसके पीछे सरकार की मंशा थी कि थाना और कोतवाली आने वाले हर व्यकित को थाने के हिस्ट्रीशीटर की जानकारी रहेगी कि कौन शातिर अपराधी है।
वह कहां का रहना वाला है और उसका नाम क्या है? इसके अलावा सीनियर सिटीजन चार्ट से थाना व कोतवाली आने वाले हर व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों की जनकारी हो सकेगी। जिससे पुलिस भी पूछताछ आदि के नाम पर ऐसे लोगों से अधिकारों के विपरीत कार्रवाई करने से गुरेज कर करेगी।
कोतवाली, थानों और चौकियों पर हिस्ट्रीशीटर बोर्ड आपको कहीं न कहीं किसी कोने में लगे तो चमक जाएंगे, लेकिन सीनियर सिटीजन चार्ट और मानवाधिकार के दिशा निर्देश वाले बोर्ड अधिकतर कोतवाली और थानों से गायब है। वह या तो कोतवाली या थानों के कबाड़ में पड़े हैं या फिर किसी कोने में रखे धूल फांक रहे हैं। सदर कोतवाली में सीनियर सिटीजन चार्ट का कोई अतापता नहीं है।
मानवाधिकारों को प्रदर्शित करने वाला बोर्ड थाना गेट, दफ्टर के सामने या ऐसे स्थान पर लगाना था जहां आनेवाले लोगों की नजरें उस पर पड़ सकें, लेकिन सदर कोतवाली में यह बोर्ड एक कोने में रखा धूल फांक रहा है। यह हाल केवल कोतवाली सदर का ही नहीं है, जिले के कई थाना और चौकियां ऐसी हैं, जहां या तो बोर्ड है ही नहीं, यदि है भी तो वह कोने में पड़ा है।
अभी भी थर्ड डिग्री देने से नहीं चूकती पुलिस
शासन और अफसर भले ही पुलिस को मानवाधिकारों की याद दिलाते हों और उत्पीड़नात्मनक कार्रवाई से बचने के निर्देश देते हों, लेकिन पुलिस मानवाधिकारों को दरकिनार कर थर्ड डिग्री देने से बाज नहीं आती है। पुलिस के थर्ड डिग्री देने से आज भी आदमी खाकी वर्दी देखकर सहम जाता है। डरा सहमा व्यक्ति थाना पहुंचता तो है लेकिन उसके जेहन में पुलिस का खौफ झलकता है। वहीं वर्दी की हनक कम न हो जाए, इसके लिए पुलिस भी बर्ताव भी कुछ इसी अंदाज में करती है।
पुलिस पिटाई से हो चुकी हैं मौतें
जिले में पुलिस के थर्ड डिग्री दिए जाने से अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है। वर्ष 2013 में थाना नीमगांव के गांव अंडूबेहड़ निवासी 55 वर्षीय अधेड़ की पुलिस पिटाई से मौत हो गई थी। पुलिस उसे गांव में पकड़े गई थी। इस मामले में दरोगा एसएन सिंह व सिपाही पर रिपोर्ट दर्ज हुई थी। पिछले महीने थाना संपूर्णानगर क्षेत्र की खजुरिया पुलिस चौकी पर पुलिस की पिटाई से कमलापुरी निवासी 19 वर्षीय राहुल की मौत हो गई थी। थाना व कस्बा निघासन में दुष्कर्म के बाद सोनम की हत्या मामले में भी पुलिस पर हत्या के आरोप लगे थे और मुकदमा दर्ज हुआ था। हत्यारोपी पुलिस वाले जेल भी गए थे। एक दशक में जिले में 14 से अधिक लोगों की पुलिस पिटाई से मौत हो चुकी है।
सभी थानों पर नागरिक चार्ट, मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देश संबंधी बोर्ड लगे हुए हैं। यदि कहीं बोर्ड नहीं है तो इसकी जांच की जाएगी और बोर्ड को लगवाया जाएगा। सभी थाना प्रभारियों को पहले से ही सख्त निर्देश दिए जा चुके हैं कि किसी के साथ गलत बर्ताव न करें।
—अरुण कुमार सिंह, एएसपी
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