मुरादाबाद: हे भगवान! बिटिया की छोटी सी गलती, मां-बाप देने पर तुले जहन्नुम की सजा

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मुरादाबाद, अमृत वचचार। अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो। प्रेम और ममता की मूर्ति, पूरी तो गढ़ जाने दो।। अभी खेलने के दिन इसके, हुआ न बचपन पूरा है। कच्ची कली अभी बगिया की, यौवन अभी अधूरा है।। अभी वृद्धि की ओर बेल है, थोड़ी-सी बढ़ जाने दो। अभी ब्याहने की क्या …

मुरादाबाद, अमृत वचचार। अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो। प्रेम और ममता की मूर्ति, पूरी तो गढ़ जाने दो।। अभी खेलने के दिन इसके, हुआ न बचपन पूरा है। कच्ची कली अभी बगिया की, यौवन अभी अधूरा है।। अभी वृद्धि की ओर बेल है, थोड़ी-सी बढ़ जाने दो। अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।
बाल विवाह की कुप्रथा को जड़ से समाप्त करने का बीड़ा उठाने वाली मुरादाबाद की टास्क फोर्स ने मंगलवार को कवि संतोष कुमार सिंह की उक्त पक्तियों को करीब से महसूस किया।

अपनी ही मासूम बेटी को बाल विवाह की बेदी पर चढ़ाने पर तुले मां-बाप को टास्क फोर्स की टीम ने समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन टास्क फोर्स की कार्रवाई का विरोध करने पर आमादा मां-बाप बिटिया की छोटी से गलती को आधार बनाकर उसे दोषी करार दे रहे थे। मां-बाप का अड़ियल रुख भांपने में सफल टास्क फोर्स के सदस्य समझ चुके थे कि मासूम को यदि उन्होंने अकेले छोड़ा तो मंगलवार का दिन किशोरी के जीवन का काला अध्याय बनेगा। मां-बाप की नजर में मुजरिम बेटी अपनी तकदीर पर तोहमत जड़ने को बाध्य है।

अज्ञात युवक से फोन पर बात करना मां-बाप को नहीं था पसंद
छापेमारी के दौरान टास्क फोर्स जानने में जुटी कि आखिरकार मां-बाप 14 वर्ष की अपनी बड़ी बेटी को 40 वर्ष के युवक के हाथ में सौंपने पर क्यों अड़े हैं? वह कौन सा कारण है, जिसने नाबालिग बेटी के खिलाफ उसके ही मां-बाप के मन में जहर भर दिया। पूछताछ में पता चला कि अज्ञात युवक से फोन पर बात करना किशोरी पर भारी पड़ा। मां-बाप को अपनी ही बिटिया के चरित्र पर संदेह हो गया। मन में बैठे संदेह ने मां-बाप की नजर में मासूम बेटी का किरदार कब खलनायक के रूप में गढ़ा, इसका अहसास किशोरी को न हो सका। नादान किशोरी की छोटी सी चूक व जज बने मां-बाप द्वारा मासूम को मुकर्रर की गई कठोर सजा की तुलना करते ही टास्क फोर्स का दिल कांप उठा।

मौसा समझ गए थे किशोरी नहीं करना चाहती शादी, कर रहे विरोध
छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी पीड़िता शादी को ख्वाब दिखाए जाने लगे। किशोरी के मन की बात समझने की कोशिश किसी ने नहीं की। बाल विवाह से विरोध में उतरे किशोरी के मन को मौसा ही भांप सके। वह पांच दिनों से किशोरी के रिश्ते का मुखर विरोध करते रहे। उन्होंने साढू को खरीखोटी तक सुनाई। टास्क फोर्स के सामने लताड़ते हुए किशोरी की परवरिश का भार खुद के कंधे पर उठाने की इच्छा तक जताई। मौसा से मिले स्नेह ने मासूम को भाव विह्वल किया। जबकि मां-बाप के रुखे बर्ताव से किशोरी का दिल दरक गया। बाल कल्याण समिति के समक्ष किशोरी ने मौसा के घर जाने की इच्छा जताई। हालांकि न्यायपीठ मां-बाप के साथ ही उन लोगों का रुख भी भांपने में जुटी है, जिन्होंने 14 वर्ष की कन्या के साथ फेरे लेने का मंसूबा पाला।

एक साल में 18 बाल विवाह की सूचना
मुरादाबाद में बेटियां मां-बाप की संवेदनहीनता का शिकार हो रही हैं। अपने ही बच्चों से बर्बर बर्ताव जहां मां-बाप के रिश्ते पर सवाल खड़ा करता है, वहीं बेटियों की धरातल पर दशा की स्याह तस्वीर भी बयां करता है। चाइल्ड लाइन की समन्वयक श्रद्धा शर्मा के मुताबिक चार वर्षों में बाल विवाह के 60 से भी अधिक मामले आए। बाल विवाह की घटनाओं में लगातार वृद्धि से 2020 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने टास्क फोर्स बनाया। 2021 में बाल विवाह के सर्वाधिक 18 मामले आए, जिन्हें रोका गया। यह आंकड़ा सिर्फ मुरादाबाद का है। मंडल की तस्वीर और भयावह है। बाल विवाह की घटनाओं को रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है।

बाल विवाह की घटनाओं पर करीब से नजर फेरें तो पर्दे के पीछे की जो तस्वीर सामने आती है वह रिश्तों में विश्वसनीयता की कमी होने की गवाही देती है। कुछ मामलों में गरीबी भी बाल विवाह का कारण बनती है। ऐसे हालात से निजात तभी संभव है जब मां-बाप बच्चों से लगाव रखें। चूक हर इंसान से होती है। जरूरत बाल मन को समझाने व सही दिशा में लेकर जाने की है। बच्चों का साथ देने की बजाय मां-बाप अपने दायित्व से किनारा कसने की कोशिश करते हैं। ऐसे हालात से उबरने के लिए सम्यक प्रयास की जरूरत है। इसमें प्रशासनिक मशीनरी की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।-अंजली महलके, बाल मनोविज्ञानी

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