बुंदेलखंडी दीवारी नृत्य: जमकर चटकीं लाठियां, बाजीगरों ने दिखाए करतब
बांदा, अमृत विचार। दीवारी नृत्य के लिये समूचे देश में विख्यात बुंदेलखंड में इस बार भी नृत्य का शानदार प्रदर्शन हुआ। महेश्वरी देवी चौक में बुधवार को सारा दिन इस अजीबोगरीब करतब के हुनरमंदों ने दीवारी नृत्य का बेहतरीन प्रदर्शन कर बुंदेलखंड की परंपरा को जीवंत किया। परीवा के दिन लाठी-डंडों से लैस युवाओं, बुजुर्गों …
बांदा, अमृत विचार। दीवारी नृत्य के लिये समूचे देश में विख्यात बुंदेलखंड में इस बार भी नृत्य का शानदार प्रदर्शन हुआ। महेश्वरी देवी चौक में बुधवार को सारा दिन इस अजीबोगरीब करतब के हुनरमंदों ने दीवारी नृत्य का बेहतरीन प्रदर्शन कर बुंदेलखंड की परंपरा को जीवंत किया। परीवा के दिन लाठी-डंडों से लैस युवाओं, बुजुर्गों और बच्चों ने माता महेश्वरी देवी मंदिर के सामने ढोल की थाप और नंगाड़ों कड़कड़ाहट की मधुर संगत पर जमकर लठ्ठबाजी की। दीवारी नृत्य के प्रदर्शन को देखने के लिये शहर व देहात क्षेत्रों से जनसैलाब उमड़ पड़ा।
बरसों पहले दुश्मनों से अपनी रक्षा के लिये आरंभ हुआ बुंदेलखंड का दीवारी नृत्य अब केवल इस इलाके तक सीमित नहीं रहा। अजब-गजब करतबों से भरे इस नृत्य को देखने वालों का दीपावली की परीवा को महेश्वरी चौक में जमघट लगा। जिले के सुदूर गांवों से आने वाले नर्तकों ने रंग-बिरंगी विशेष पोशाकों में अपनी बेहतरीन अनूठी कलाबाजी का प्रदर्शन किया। एक के बाद एक टीम लाठी-डंडों से लैस होकर मैदान में उतरती रही और रक्षात्मक तरीके से लाठियां चटकाती रहीं। इसके बाद कुछ टीमों ने केवल करतब का भी प्रदर्शन किया।
इसके अलावा दीवारी नृत्य के कलाकार बारी-बारी से लोगों के घरों में भी जाकर इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्य के कद्रदान उनकी कला से प्रभावित होकर उन्हें अच्छा-खासा ईनाम भी देते हैं। दीवारी कलाकारों के करतब देखकर लोगों ने अपने दांतों तले उंगलियां दबा लीं। उधर, सुबह से लेकर शाम तक दीवारी नृत्य के कलाकार और मोरपंख के मूठे हाथों में लेकर बजरंगबली के दर्शनों को आये मौनिहों का जमघट सिविल लाइन स्थित संकट मोचन मंदिर में लगा रहा।
दीवारी नृत्य के कलाकार और मौनिहा बजरंगबली को अपना इष्ट मानते हैं। चिल्ला थाने में भी दीवारी कलाकारों ने प्रतिभा का प्रदर्शन किया और परंपरा का निर्वहन किया। गांव के बुजुर्ग देवीदीन बताते हैं कि द्वापर युग से दीवारी नृत्य की परंपरा चली आ रही है। भगवान श्रीकृष्ण अपने ग्वालबालों के साथ दीवारी नृत्य का न सिर्फ आनंद लेते थे, बल्कि राक्षसराज कंस के भेजे गये राक्षसों से अपनी रक्षा के लिये उन्हें लाठी भांजने का बेहतरीन प्रशिक्षण देते थे। इस खेल की एक विशेषता यह भी है कि दूसरे पर प्रहार करने से कहीं ज्यादा रक्षात्मक कदम कैसे उठाना चाहिये सिखाया जाता है। इसके साथ ही जनपद के कस्बा पैलानी, जसपुरा के कानाखेड़ा और भुइयांरानी, तनगामऊ, गलौली, गाजीपुर, शेरपुर, पड़ेरी, मरझा, चौकीपुरवा, चंदवारा, बड़ागांव, तिंदवारी, नरैनी, अतर्रा, बबेरू आदि क्षेत्रों में दीवारी नृत्य का देर शाम तक जमकर प्रदर्शन किया गया।
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