नैनीताल: स्वतंत्र विशेषज्ञ सदस्यों की समिति गठित करे सरकार

Amrit Vichar Network
Published By Babita Patwal
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नैनीताल, अमृत विचार। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने जोशीमठ में लगातार हो रहे भू-धंसाव को लेकर दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की।

खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि इसकी जांच के लिए राज्य सरकार स्वतंत्र विशेषज्ञ सदस्यों की समिति गठित करे। समिति में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला और उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के निदेशक एमपीएस बिष्ट भी होंगे।

समिति दो माह में जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट में पेश करेगी। कोर्ट ने जोशीमठ में निर्माण पर लगी रोक के आदेश को प्रभावी रूप से लागू करने को कहा है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार व एनटीपीसी की तरफ से कहा गया कि सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है। यहां पर सभी निर्माण कार्य रोक दिए गए हैं। प्रभावितों की हरसंभव मदद दी जा रही है। भू-धंसाव को लेकर सरकार वाडिया इंस्टीट्यूट के एक्सपर्ट की मदद ले रही है। 

याचिका में यह कहा गया
अल्मोड़ा निवासी उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी व चिपको आंदोलन के सदस्य पीसी तिवारी ने वर्ष 2021 में दायर याचिका में कहा था कि वर्ष 1976 में मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ को लेकर विस्तृत रिपोर्ट सरकार को दी थी, जिसमें कहा गया था कि जोशीमठ शहर मिट्टी, रेत व कंकर से बना है। यहां कोई मजबूत चट्टान नहीं है। कभी भी भू-धंसाव हो सकता है।

निर्माण कार्य करने से पहले इसकी जांच की जानी आवश्यक है। जोशीमठ के लोगो को जंगल पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों की व्यवस्था भी करनी चाहिए। याचिका के अनुसार, 25 नवंबर 2010 को पीयूष रौतेला व एमपीएस बिष्ट ने एक शोध जारी कर कहा था कि सेलंग के पास एनटीपीसी टनल का निर्माण कर रही है जो अति संवेदनशील क्षेत्र है।

टनल बनाते वक्त एनटीपीसी की टीबीएम फंस गयी, जिसकी वजह से पानी का मार्ग अवरुद्ध हो गया और 700-800 लीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से पानी ऊपर बहने लगा। यह पानी इतना अधिक बह रहा है कि इससे रोजाना 2-3 लाख लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। पानी की सतह पर बहने के कारण निचली भूमि खाली हो जाएगी और भू-धंसाव होगा इसलिए इस क्षेत्र में भारी निर्माण कार्य बिना सर्वे के न किये जाएं। 

आपदा से निपटने को तैयारियां हैं अधूरी
याचिका में यह भी कहा गया कि राज्य सरकार के पास आपदा से निपटने की सभी तैयारियां अधूरी हैं। सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जो आपदा आने से पहले उसकी सूचना दे। वहीं, उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं।

उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट अभी तक काम नहीं कर रहे हैं, जिस वजह से बादल फटने जैसी घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती। याचिका में यह भी कहा गया कि हाइड्रो प्रोजेक्ट टीम के कर्मचारियों की सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। कर्मचारियों को सुरक्षा के नाम पर केवल हेलमेट  दिए गए हैं। कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग तक नहीं दी गई और न ही कर्मचारियों के पास कोई उपकरण मौजूद हैं।

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