Republic Day 2023 : अंग्रेजों में था नवाब मज्जू खां के नाम का खौफ, मुरादाबाद से नैनीताल तक खदेड़ी थी गोरों की फौज 

Amrit Vichar Network
Published By Bhawna
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मुरादाबाद, अमृत विचार। शहीदे वतन नवाब मज्जू खां का नाम आते ही मन में उनकी वीरता के चर्चे फूट पड़ते हैं। उनके नाम का अंग्रेजों में खौफ था। क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी सल्तनत को चुनौती दी थी। मई 1857 में में वह अंग्रेजों को यहां से निकालने मे कामयाब हो गए थे। अंग्रेजी फौज को नैनीताल तक खदेड़ा था। नवाब मज्जू खां खानदानी नवाब और मुरादाबाद के शासक थे। 

नवाब का पूरा नाम मजीउददीन खां उर्फ नवाब मज्जू खां था। मोहम्मद दीन अहमद खां उनके पिता थे। नवाब मज्जू बेशुमार दौलत और तोपखाने के भी मालिक थे। उन्हें अंग्रेजों की गुलामी मंजूर नहीं थी। इतिहास के जानकार बताते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने 10 नवंबर 1801 को लखनऊ के नवाब सआदत अली खां से अवध का आधा इलाका छीन लिया। इसके बाद जो जिले कंपनी को मिले उसमें रोहिलखंड का इलाका शामिल था।1802 में पहली बार मिस्टर डब्लू लेसिस्टर नाम के अंग्रेज अफसर को यहां का पहला कलेक्टर बनाया गया। 9 मई 1857 को आजादी की पहली एलानिया जंग शुरू हुई। 

18 मई 1857 को अंग्रेजों ने रात के अंधेरे में आजादी के मतवालों पर हमला कर दिया और उनसे 10, 000 रुपये भी लूट लिए। 19 मई 1857 को नवाब मज्जू खां के नेतृत्व में लड़ाई योजनाबद्ध रूप से चली। इसमें 29 वीं बटालियन भी शामिल हो गई। जिसका सामना अंग्रेजी कारिंदे नहीं कर पाए। उधर, वाहजुद्दीन उर्फ मौलवी मन्नू के नेतृत्व में इन्कलाबियों ने जेलखाना तोड़ दिया। डर के मारे अंग्रेज जेलर डॉ.हेंस बरु जेल की छत पर छिपा रहा जिसे क्रांतिकारी पकड़ लाए और जेल के दरवाजे के साथ बांधकर आग लगा दी। मगर जेलर वहां से किसी तरह भागने में कामयाब हो गया। अपने आलाधिकारियों को इन्कलाबियों के हालत बताए तो अंग्रेजों के पैर उखड़ गए। मज्जू खां व उनके साथियों ने अंग्रेजी सेना को नैनीताल तक खदेड़ा।

बहादुरी की वजह से नवाब मज्जू खां को बादशाह बहादुर शाह जफर की ओर से मुरादाबाद की सनद ए हुकूमत लिख दी गई जो जनरल बख्त खान के माध्यम से 18 जून 1857 को हज़रत बहाउद्दीन फरीदी रजबपुर में सौपी गई। अंग्रेजों को अपनी यह हार बर्दाश्त नहीं हुई उन्होंने मुरादाबाद पर आक्रमण की साजिश शुरू कर दी। 22 अप्रैल 1858 बहादुरशाह जफर के बेटे फिरूजशाह जब मुरादाबाद आए तो नवाब रामपुर ने मुरादाबाद पर आक्रमण कर दिया और मुरादाबाद की अवाम पर अंग्रेजी फौज टूट पड़ी। इस वजह से फिरूजशाह मुरादाबाद से बाहर निकल गए।

25 अप्रैल 1858 को सर क्रोक्राफ्ट विल्सन जज के नेतृत्व में नवाब मज्जू खां के एक नौकर की गद्दारी का सहारा ले कर सात अंग्रेज सिपाही नवाब के महल में दाखिल होकर उन पर हमला कर दिया। नवाब बहादुरी से अकेले लड़े ओर सातों को मार गिराया। बाद में बड़ी तादाद में फौज पहुंची और नवाब पर हमला कर दिया इसमें नवाब को गोली लगी और वह शहीद हो गए। उनकी लाश को दफन करने की इजाजत नहीं थी। जिस बाबा ने उन्हें दफन किया उनको भी फांसी पर चढ़ा दिया गया। कब्रिस्तान के सामने उनकी मजार है जो जो गलशहीद बाबा के नाम से मशहूर है।

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