जरनैल सिंह भिंडरावाले की क्रूर कहानी, खालिस्तान समर्थक अमृतपाल को कहा जा रहा 'Bhindranwale 2.0', क्या है 'वारिस पंजाब दे'
अमृतर (पंजाब)। अमृतसर के अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर भारी पुलिस बल की तैनाती हुई। वारिस पंजाब दे प्रमुख अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने सहयोगी लवप्रीत तूफान की गिरफ्तारी के विरोध में कल पुलिस स्टेशन के बाहर धरना किया था। 'वारिस पंजाब दे' के प्रमुख अमृतपाल सिंह के करीबी लवप्रीत तूफान को शुक्रवार को अमृतसर जेल से रिहा किया गया। लवप्रीत तूफान को पुलिस ने बरिंदर सिंह को अगवा करने और मारपीट करने के आरोप में हिरासत में लिया था। उससे पूछताछ की जा रही थी।
ये पूरा बवाल अमृतपाल के समर्थक लवप्रीत तूफान की रिहाई की मांग को लेकर हुआ था। अमृतपाल और उसके समर्थकों ने अजनाला पुलिस थाने को कब्जे में ले लिया। समर्थकों के हाथ में बंदूक, तलवार और लाठी-डंडे थे। करीब आठ घंटे तक चले बवाल के बाद पुलिस लवप्रीत तूफान को रिहा करने को राजी हो गई, जिसके बाद प्रदर्शनकारी लौट गए।
इस पूरे बवाल का मास्टरमाइंड अमृतपाल सिंह रहा। उसकी तुलना जरनैल सिंह भिंडरावाले से की जा रही है। उसे भिंडरावाला 2।O भी कहा जा रहा है। उसकी वजह ये है कि वो भी भिंडरावाले की तरह ही खालिस्तानी समर्थक है। भिंडरावाले की तरह ही नीली पगड़ी पहनता है। इतना ही नहीं, अमृतपाल ने पिछले साल 29 सितंबर को मोगा जिले के रोडे गांव में 'वारिस पंजाब दे' की पहली वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम किया था। भिंडरावाले का ये पैतृक गांव है। भिंडरावाले वही शख्स था, जिसने पंजाब में चरमपंथ फैला दिया था। वो लगातार भड़काऊ भाषण देता था।
वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह ने कहा, खालिस्तान के हमारे उद्देश्य को बुराई और वर्जित के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसे बौद्धिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए कि इसके भू-राजनीतिक लाभ क्या हो सकते हैं और इसके सिखों के लिए क्या लाभ हैं।
कौन था जरनैल सिंह भिंडरावाले?
जरनैल सिंह भिंडरावाले का जन्म 2 जून 1947 को रोडे गांव में हुआ था। उसका नाम जरनैल सिंह ही था। जब वो सिध धर्म और ग्रंथों की शिक्षा देने वाली संस्था 'दमदमी टकसाल' का अध्यक्ष चुना गया तो उसके नाम के साथ भिंडरावाले जुड़ गया।
जब भिंडरावाले को दमदमी-टकसाल का अध्यक्ष चुना गया था, तब उसकी उम्र 30 साल के आसपास थी। दमदमी-टकसाल की कमान संभालने के कुछ ही महीनों बाद भिंडरावाले ने पंजाब में उथल-पुथल पैदा कर दी थी।
13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई। इस झड़प में 13 अकाली कार्यकर्ताओं की मौत हो गई। इसके बाद रोष दिवस मनाया गया। इसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले ने हिस्सा लिया। भिंडरावाले ने पंजाब और सिखों की मांग को लेकर कड़ा रवैया अपनाया। वो जगह-जगह भड़काऊ भाषण देने लगा।
80 के दशक की शुरुआत में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगीं। 1981 में पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हो गई। पंजाब में बढ़ती हिंसक घटनाओं के लिए भिंडरावाले को जिम्मेदार ठहराया गया, लेकिन उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने के कारण गिरफ्तार नहीं किया जा सका।
अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। कुछ दिन बाद पंजाब रोडवेज की बस में घुसे बंदूकधारियों ने कई हिंदुओं को मार दिया। बढ़ती हिंसक घटनाओं के बीच इंदिरा गांधी ने पंजाब की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत
1982 में भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना घर बना लिया। कुछ महीनों बाद भिंडरावाले ने सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त से अपने विचार रखने शुरू कर दिए।
पंजाब में बढ़ती हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए भिंडरावाले को पकड़ना बहुत जरूरी था। इसके लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' लॉन्च किया। इस ऑपरेशन के सैन्य कमांडर मेजर जनरल केएस बराड़ का कहना था कि कुछ ही दिनों में खालिस्तान की घोषणा होने जा रही थी और उसे रोकने के लिए इस ऑपरेशन को जल्द से जल्द अंजाम देना जरूरी था।
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया। एक जून से ही सेना ने स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी शुरू कर दी थी। पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों को रोक दिया गया। बस सेवाएं रोक दी गईं। फोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर जाने को कह दिया गया।
3 जून 1984 को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया। 4 जून की शाम से सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी। अगले दिन सेना की बख्तरबंद गाड़ियां और टैंक भी स्वर्ण मंदिर पर पहुंच गए। भीषण खून-खराबा हुआ। 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया।
स्वर्ण मंदिर पर केंद्र सरकार की इस कार्रवाई का देशभर में विरोध हुआ। सिख समुदाय ने इसकी आलोचना की। कांग्रेस में भी फूट पड़ गई। इस कार्रवाई में आम लोगों की मौत के विरोध में कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कांग्रेस के कई नेताओं ने इस्तीफा दे दिया। कई सिख लेखकों ने अपने पुरस्कार लौटा दिए।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस ऑपरेशन में 83 सैनिक शहीद हुए थे और 249 घायल हुए थे। वहीं, 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए थे और 86 लोग घायल हुए थे। 1592 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
ये बना इंदिरा गांधी की हत्या की वजह
इस ऑपरेशन के चार महीने बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने कर दी। इंदिरा गांधी पर इतनी गोलियां चलाई गईं थीं कि उनका शरीर क्षत-विक्षत हो चुका था।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अकेले दिल्ली में ही 2,733 सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया। वहीं देशभर में 3,350 सिख मारे गए थे। ऐसा आरोप लगा था कि इन सिख विरोधी दंगों को कांग्रेस नेताओं ने ही हवा दी थी।
23 जून 1985 को कनाडा के मोन्ट्रियल से लंदन जा रही एअर इंडिया की फ्लाइट को हवा में ही बम से उड़ा दिया गया। इससे विमान में सवार सभी 329 यात्रियों और क्रू मेंबर्स की मौत हो गई। बब्बर खालसा ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसे भिंडरावाले की मौत का बदला बताया था।
10 अगस्त 1986 को ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल एएस वैद्य की पुणे में हत्या कर दी गई। खालिस्तान कमांडो फोर्स ने इसकी जिम्मेदारी ली।
वारिस पंजाब दे क्या है?
सबसे पहले जानते हैं वारिस पंजाब दे संगठन के बारे में। पंजाबी अभिनेता और कार्यकर्ता दीप सिद्धू ने सितंबर 2021 में 'वारिस पंजाब दे' संगठन की स्थापना की थी। इसका मकसद बताया गया- युवाओं को सिख पंथ के रास्ते पर लाना और पंजाब को 'जगाना'। इस संगठन के एक मकसद पर विवाद भी है वह है- पंजाब की 'आजादी' के लिए लड़ाई।
दीप सिद्धू 26 जनवरी 2021 को लालकिले पर खालसा पंथ का झंडा फहराने को लेकर सुर्खियों में आए थे। 15 फरवरी 2022 को एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई। दीप सिद्धू की मौत के बाद संगठन के प्रमुख का पद खाली था। सितंबर 2022 में अमृतपाल सिंह 'वारिस पंजाब दे' के प्रमुख बने। यह कमान उसे खालिस्तानी विद्रोही जनरैल सिंह भिंडरावाले के गांव रोडे में सौंपी गई थी।
कौन है अमृतपाल सिंह?
अमृतपाल सिंह खुद को खालिस्तानी आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाले का अनुयायी होने का दावा करता है। हालांकि, दीप सिद्धू का परिवार यह मानता है कि अमृतपाल सिंह खालिस्तान के नाम पर सिख युवाओं को गुमराह कर रहा है।
अमृतपाल सिंह पंजाब के अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा गांव का रहने वाला है। उसने 12 वीं तक पढ़ाई की। खालिस्तान, भिंडरावाले और इससे जुड़ा तमाम ज्ञान उसने इंटरनेट की बदौलत हासिल किया। वह दुबई में रहकर ट्रांसपोर्ट का बिजनस कर रहा था। पिछले साल सितंबर महीने में वह दुबई में कामकाज समेटकर वापस पंजाब आ गया।
भिंडरावाले जैसा लुक चर्चा में
संगठन के मुखिया की ताजपोशी पर अमृतपाल सिंह ने कहा था, 'भिंडरावाले मेरी प्रेरणा हैं। मैं उनके बताए रास्ते पर चलूंगा। मैं उनके जैसा बनना चाहता हूं क्योंकि ऐसा हर एक सिख चाहता है लेकिन मैं उनकी नकल नहीं उतार रहा। मैं उनके पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूं।'
उसने आगे कहा, 'मैं पंथ की आजादी चाहता हूं। मेरे खून का हरेक कतरा इसके लिए समर्पित है। बीते समय में हमारी जंग इसी गांव से शुरू हुई थी। भविष्य की जंग भी इसी गांव से शुरू होगी। हम सभी अब भी गुलाम हैं। हमें अपनी आजादी के लिए लड़ना होगा। हमारा पानी लूटा जा रहा है। हमारे गुरु का अपमान किया जा रहा है। पंथ वास्ते जान देने के लिए पंजाब के हरेक युवा को तैयार रहना चाहिए।'
अमृतपाल ने दीप सिद्धू कौमी शहीद बताया था। उसने कहा था, हम जानते हैं उनकी मौत कैसे हुई है। उन्हें किसने मारा है।'अमृतपाल ने भिंडरावाले की याद में बने गुरुद्वारा संत खालसा के पास ही इस सभा को संबोधित किया। इस मौके पर 15 प्रस्ताव भी पास हुए थे। इसमें यह भी कहा गया कि कोई भी व्यक्ति सिखों के धार्मिक मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
अमृतपाल सिंह पर संगठन में विवाद
अमृतपाल कुल 6 साल के बाद सितंबर 2022 में भारत आया। न ही किसान आंदोलन के समय, न ही वारिस पंजाब दे की घोषणा के समय और न ही फरवरी 2022 में दीप सिद्धू की मौत के समय। जाहिर तौर पर अमृतपाल और दीप सिद्धू की मुलाकात नहीं हुई और दोनों ने सोशल मीडिया के जरिए ही बातचीत की थी। अमृतपाल के समर्थकों का दावा है कि दीप सिद्धू अमृतपाल सिंह के करीबी थे और एक वैध प्रक्रिया के माध्यम से 'वारिस पंजाब दे' से जुड़े थे। हालांकि संगठन के उनके नेतृत्व पर दीप सिद्धू के कुछ सहयोगी और परिवार के कुछ सदस्य संतुष्ट नहीं हैं। यह भी सामने आया कि सिद्धू ने अमृतपाल को सोशल मीडिया पर ब्लॉक तक कर दिया था।
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