प्रयागराज: मऊ हिंसा के आरोपी की याचिका खारिज, जानिए क्या है मामला 

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 में सीएए/ एनआरसी के विरोध में प्रदर्शनकारियों द्वारा मऊ में दंगा किए जाने की घटना में दर्ज प्राथमिकी और मुकदमे की कार्यवाही रद्द करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि केस डायरी पर उपलब्ध साक्ष्यों को देखते हुए इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। ये आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकल पीठ ने दंगे में नामजद मोहम्मद ताल्हा व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया है। 

मामले के तथ्यों के अनुसार 16 दिसंबर 2019 को मऊ के दक्षिण टोला थाना क्षेत्र में मीरजहादीपुरा में लगभग 800 से 900 प्रदर्शनकारी एनआरसी बिल के विरोध में प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए थे। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे| मौके पर मौजूद जिलाधिकारी, एसपी व अन्य आला अधिकारियों ने लोगों को समझाने का प्रयास किया, मगर कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था। इमाम और कुछ संभ्रांत नागरिकों ने भी लोगों को समझाने की कोशिश की मगर उसका कोई नतीजा नहीं निकला। देखते-देखते भीड़ हिंसक हो गई तथा पत्थर व पेट्रोल बम से पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों तथा उधर से गुजर रहे नागरिकों पर हमला कर दिया। इस दौरान अवैध हथियारों से फायरिंग भी की गई थी। घटना से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई और दुकानें बंद हो गई थी। लोग अपने वाहन छोड़कर भाग गए थे। दंगाइयों ने पुलिस और प्रशासन की गाड़ियों में आग लगा दी थी। जनता के वाहनों को भी तोड़ दिया था। स्थिति नियंत्रण से बाहर होती देखकर पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे थे। यह सारा मामला लगभग 4 घंटे तक चला था। घटना के बाद एसएचओ दक्षिण टोला ने 84 नामजद सहित 600 अज्ञात लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कराई। याची भी नामजद लोगों में शामिल है। 

याची के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्राथमिकी थाना प्रभारी ने दर्ज की है, जिसमें बाद में अन्य पुलिस अधिकारियों ने विवेचना की, इसलिए चार्जशीट दूषित है। याची को जमानत मिल चुकी है। वह छात्र है, इसलिए उसके साथ नरमी बरती जाए। वहीं दूसरी तरफ याचिका का विरोध कर रहे अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि प्राथमिकी में घटना का बहुत स्वाभाविक ब्यौरा दिया गया है। सरकारी अधिवक्ता ने आगे यह भी कहा कि लगभग 600 दंगाइयों की भीड़ में से 84 लोगों को नामजद किया गया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि बिना पहचान के नामजद किया गया है। 

दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि यह मामला प्रदर्शन के दौरान हिंसा करने का है। संविधान हर नागरिक को शांतिपूर्वक बिना हथियार के प्रदर्शन करने की अनुमति देता है।  विधि विरुद्ध जमानत की अनुमति नहीं है। मुख्य रूप से कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकार के नाम पर दंगा करने व हिंसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। नागरिक अधिकारों का कानूनी तरीके से सही प्रयोग किया जा सकता है। उक्त टिप्पणी के साथ याचिका खारिज कर दी गई।

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