Allahabad High Court: अतीक अहमद के नाबालिग बेटों के मामले में दाखिल याचिका खारिज

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। बहुचर्चित माफिया अतीक अहमद के नाबालिग पुत्रों के मामले में उनकी मां शाइस्ता परवीन की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका को पोषणीय ना मानकर खारिज कर दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह (प्रथम) की खंडपीठ ने पारित किया। 

याचिका में दावा किया गया था कि याची ऐजम और अबान अहमद क्रमशः 12वीं और 9वीं कक्षा के छात्र हैं और वर्तमान में नाबालिग हैं। उनके पिता अतीक अहमद वर्ष 2017 से जेल में हैं और याचियों के सगे चाचा खालिद अजीम उर्फ अशरफ भी वर्ष 2020 से बरेली जेल में निरुद्ध हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे अपनी मां के साथ रह रहे थे। 

बसपा नेता राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या के बाद 24 फरवरी 2023 को सायं 6 बजे थाना खुल्दाबाद, धूमनगंज और पुरामुफ्ती की पुलिस उनके घर आई और दरवाजा तोड़कर जबरन अवैध रूप से याचियों को उठा लिया। याचियों को बिना किसी समन, वारंट या किसी अन्य सरकारी दस्तावेज के गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिसकर्मियों ने बच्चों की मां के साथ भी दुर्व्यवहार किया। 

याचियों के अधिवक्ता ने बताया कि याची निर्दोष हैं और किसी भी आपराधिक मामले में वांछित नहीं हैं, फिर भी उन्हें बिना किसी कानूनी अधिकार या किसी कारण से मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है, जो उनके संवैधानिक के साथ-साथ वैधानिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। 

याचिका का विरोध करते हुए मनीष गोयल, अपर महाधिवक्ता ने कहा कि वर्तमान याचिका पोषणीय नहीं है, क्योंकि याचियों ने पहले ही सीआरपीसी की धारा 97 के प्रावधानों के तहत सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने पहले ही वैकल्पिक वैधानिक प्रावधान का इस्तेमाल कर लिया है। 

इसके अलावा जब पुलिस द्वारा कार्यवाही की गई तो याचियों की मां शाइस्ता परवीन ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, इलाहाबाद के समक्ष आवेदन दाखिल किया, जिसके अनुपालन में निचली अदालत ने प्रशासन से पूछा था कि बच्चे कहां हैं, जिस पर पुलिस प्रशासन ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में निचली अदालत को यह अवगत कराया था की दोनो बच्चे बाल संरक्षण गृह में है और वे सुरक्षित है।

इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि याचियों को अगर बाल संरक्षण गृह में रखा गया तो अनुमान लगाया जा सकता है कि किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) 2015 के प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ यह कार्यवाही की गई। अंत में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान की गई है।

 किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन राज्य द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों के आलोक में याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि याचियों ने वैकल्पिक उपाय का लाभ उठा लिया है। अतः पोषणीयता के अभाव में याचिका खारिज की जाती है।

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